Srimad Bhagavad Gita- कर्म का फल

punjabkesari.in Sunday, Dec 18, 2022 - 10:54 AM (IST)

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स्वामी प्रभुपाद- साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता 

काङ्क्षन्त: कर्मणां सिङ्क्षद्ध यजन्त इह देवता:। क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : इस संसार में मनुष्य सकाम कर्मों में सिद्धि चाहते हैं, फलस्वरूप वे देवताओं की पूजा करते हैं। नि:संदेह इस संसार में मनुष्यों को सकाम कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है।इस जगत के देवताओं के विषय में भ्रांत धारणा है और विद्वत्ता का दम्भ करने वाले अल्पज्ञ मनुष्य इन देवताओं को परमेश्वर के विभिन्न रूप मान बैठते हैं। 

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वस्तुत: ये देवता ईश्वर के विभिन्न रूप नहीं होते किन्तु वे ईश्वर के विभिन्न अंश होते हैं। ईश्वर तो एक है किन्तु अंश अनेक हैं। वेदों का कथन है नित्यो नित्यानाम् यानी ईश्वर एक है। 

ईश्वर: परम: कृष्ण: यानी कृष्ण ही एकमात्र परमेश्वर हैं और सभी देवताओं को इस भौतिक जगत का प्रबंध करने के लिए शक्तियां प्राप्त हैं। ये देवता जीवात्मा हैं जिन्हें विभिन्न मात्रा में भौतिक शक्ति प्राप्त है। वे कभी परमेश्वर-नारायण, विष्णु या कृष्ण के तुल्य नहीं हो सकते। जो व्यक्ति ईश्वर तथा देवताओं को एक स्तर पर सोचता है वह नास्तिक या पाखंडी कहलाता है। 

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यहां तक कि बड़े-बड़े देवता भी परमेश्वर की समता नहीं कर सकते। वास्तव में भगवान की पूजा ब्रह्मा तथा शिव जैसे देवताओं द्वारा की जाती है। नारायण, विष्णु या कृष्ण जैसे भगवान इस संसार के नहीं हैं। वे भौतिक सृष्टि से परे रहने वाले हैं। कुछ मूर्ख लोग इसलिए पूजा करते हैं क्योंकि वे तत्काल फल चाहते हैं। उन्हें फल मिलता भी है किन्तु वे यह नहीं जानते कि ऐसे फल क्षणिक होते हैं और अल्पज्ञ मनुष्यों के लिए हैं। 

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बुद्धिमान व्यक्ति कृष्णभावनामृत में रहता है और उसे किसी क्षणिक लाभ की इच्छा नहीं होती।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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