Sindoor Importance: भगवान की महिमा या विवाह का प्रतीक, जानें सिंदूर की शुरुआत के पीछे की कहानी

punjabkesari.in Thursday, May 08, 2025 - 01:58 PM (IST)

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Sindoor Importance: सिंदूर लगाने की परंपरा भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से चली आ रही है और इसका संबंध हिंदू धर्म से है। सिंदूर हर एक शादीशुदा महिलाओं की पहचान है। सिंदूर को पतिव्रता धर्म और वैवाहिक स्थिति का प्रतीक माना जाता है। कई हिंदू शास्त्रों में सिंदूर लगाने की परंपरा की शुरुआत के बारे में बताया गया है। सिंदूर का एक और महत्व यह है कि इसे लगाना न केवल वैवाहिक स्थिति को दर्शाता है, बल्कि इसे रक्षात्मक और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक भी माना जाता है। मान्यता है कि शादीशुदा महिलाओं के द्वारा सिंदूर लगाने से पति की उम्र लंबी होती है और जीवन में खुशहाली बनी रहती है।  तो आइए जानते हैं कि सिंदूर सबसे पहले कब और किसने लगाया था।

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सिंदूर सबसे पहले किसने लगाया?
सिंदूर का संबंध भगवान शिव और देवी पार्वती से जुड़ा है। शिव पुराण के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए सालों तक तपस्या की थी। जब पार्वती ने शिव से विवाह किया, तो उनके माथे पर सिंदूर लगाने की परंपरा शुरू हुई। साथ ही माता पार्वती ने कहा कि जो विवाहित महिला अपने मांग में सिंदूर लगाएगी। उनके पति की लंबी आयु होगी और वैवाहिक जीवन में खुशहाली बनी रहेगी।  

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रामायण और महाभारत में संदर्भ
रामायण में सीता द्वारा सिंदूर लगाने का उल्लेख मिलता है। माता सीता अपने पति राम की लंबी उम्र की कामना करते हुए सिंदूर लगाती थीं। साथ ही महाभारत में भी देवी द्रौपदी द्वारा सिंदूर लगाने का वर्णन मिलता है।

आयु और स्वास्थ्य के संकेत
सिंदूर लगाने को कई स्थानों पर महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि सिंदूर शरीर के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को उत्तेजित करता है और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।

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Content Editor

Sarita Thapa

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