Renuka Mela 2020: आज भी भगवान परशुराम से मिलने आती हैं उनकी माता रेणुका

punjabkesari.in Wednesday, Nov 25, 2020 - 08:37 AM (IST)

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Renuka Fair 2020: प्राकृतिक भव्यता से सजे हिमाचल में जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन से मात्र 40 किलोमीटर तथा चंडीगढ़ व अम्बाला से क्रमश: 130 किलोमीटर एवं 105 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से लगभग 672 मीटर की ऊंचाई पर स्थित श्री रेणुका तीर्थ के बारे में कहा जाता है कि वहां आज भी भगवान परशुराम से मिलने माता रेणुका आती हैं। महर्षि जमदग्नि, माता रेणुका व भगवान परशुराम की गाथा अंचल के लोगों का अभिन्न अंग बनी हुई है। इसी गाथा को बार-बार दोहराने हेतु प्रतिवर्ष रेणुका तीर्थ पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

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Renuka Fair in Himachal Pradesh: रेणुका मेले का शुभारंभ कब और कैसे हुआ, यह जानने के लिए इस तीर्थ के साथ जुड़ी पौराणिक मान्यताओं का उल्लेख करना आवश्यक है। कहते हैं त्रेता युग में महर्षि जमदग्नि का विवाह राजा प्रसेनजित की पुत्री राजकुमारी रेणुका के साथ हुआ था। उन्हीं दिनों सहस्त्रबाहु नामक आर्यव्रत शासक के अत्याचारों से पीड़ित महर्षि अपनी पत्नी सहित वर्तमान रेणुका झील के निकट ‘तपे के टीले’ पर आकर रहने लगे।

Renuka Mother of Parshuram: यहां आकर दोनों ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की, क्योंकि जमदग्नि जानते थे कि सहस्त्रबाहु का संहार भगवान विष्णु ही कर सकते हैं। तपस्या से प्रसन्न भगवान विष्णु ने महर्षि को वर मांगने को कहा। महर्षि ने भगवान विष्णु से अपने मन की बात कर दी। तब भगवान विष्णु ने महर्षि को स्वयं उनके घर उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। इस तरह मां के गर्भ से परशुराम इस स्थान पर भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जन्मे।

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Renuka Devi Mela at Renuka Lake: जमदग्नि के पांच पुत्र थे, जिनमें परशुराम सबसे छोटे थे। अन्य चार पुत्र रूमणवान, सुषेण, वसु व विशासु थे। परशुराम बचपन से ही तेजस्वी थे और यौवनावस्था तक आते-आते वह अनेक विद्याओं में निपुण हो गए थे। जमदग्नि अपनी पत्नी व पुत्रों के साथ भृगु आश्रम, तपे के टीले पर सुखपूर्वक रहने लगे थे। योगी परशुराम माता-पिता से आज्ञा लेकर महेन्द्र पर्वत पर तपस्या करने चले गए। इस बीच सहस्त्रबाहु के राज्य का विस्तार रेणुका तक हो गया और उसके अत्याचार बढ़ते गए।

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Story of Renuka Lake: सहस्त्रबाहु ने अपनी सेना के साथ रेणुका तीर्थ के पास ही अपना अस्थायी डेरा डाल रखा था। रेणुका प्रतिदिन महर्षि के लिए इस क्षेत्र में बहने वाली गिरि गंगा नामक नदी से पवित्र जल लाया करती थीं। सहस्त्रबाहु ने रेणुका को उसे खाने पर आमंत्रित करने के लिए कहा। रेणुका ने जब यह बात पति जमदग्नि को बताई, तो उन्होंने सहस्त्रबाहु को खाने पर आने का निमंत्रण भेज दिया। कुटिल-मन सहस्त्रबाहु अपनी विशाल सेना के साथ भृगु आश्रम पहुंचा। महर्षि पहले ही इंद्रदेव से प्रार्थना कर कामधेनु व कुबेर को सहायतार्थ मांग लाए थे। कामधेनु व कुबेर के प्रताप से सहस्त्रबाहु व उसकी सेना को राजसी भोज कराया गया। जमदग्नि जैसे साधारण ऋषि द्वारा इतनी सुंदर भोजन व्यवस्था देखकर सहस्त्रबाहु को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने जमदग्नि से इस रहस्य को जानना चाहा, तो सीधे-सीधे महर्षि से कामधेनु को मांग लिया। महर्षि ने कामधेनु को इंद्र देवता की अमानत बताकर उसे देने में असमर्थता जाहिर की।

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Shri Renuka Ji Fair: जैसे ही सहस्त्रबाहु ने कामधेनु को पकड़ना चाहा, वह स्वर्गलोक की ओर उड़ गई। इस पर सहस्त्रबाहु व जमदग्नि के बीच घोर युद्ध हुआ। क्रोधित सहस्त्रबाहु ने जमदिग्न व उनके चारों पुत्रों की हत्या कर दी। रेणुका अपने सतीत्व की रक्षा के लिए चीखती हुई निकट के राम सरोवर में कूद पड़ी। रेणुका के कूदते ही राम सरोवर विशाल मानवाकार झील में तबदील होकर रेणुका झील के नाम से विख्यात हो गया। आज भी ऊंची पहाड़ियों से देखने पर रेणुका झील सोई हुई नारी की आकृति लगती है।

Renuka Mata Darshan: उधर माता रेणुका की चीख सुनकर महेन्द्र पर्वत पर तपस्यारत भगवान परशुराम का ध्यान भंग हो गया और वह तुरंत चीख की दिशा में दौड़े। परशुराम जब सरोवर के निकट पहुंचे, तो मां रेणुका ने सरोवर से बाहर निकलकर उन्हें सारा वृतांत सुनाया और फिर झील में समा गई। पिता के वध की बात सुनते ही महादयालु, महाक्रोधित हो गए। उन्होंने समस्त सेना सहित सहस्त्रबाहु को मार गिराया। पृथ्वी पाप मुक्त हो गई और देव लोक से परशुराम की जय-जयकार हुई।

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Niyati Bhandari

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