जातिगत जनगणना क्या होती है, आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी? समझें आसान भाषा में सबकुछ
punjabkesari.in Thursday, May 01, 2025 - 02:27 PM (IST)

नेशनल डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में बड़ा फैसला लेते हुए जाति जनगणना को आगामी जनगणना में शामिल करने की मंजूरी दी गई। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बैठक के फैसलों की जानकारी देते हुए बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह निर्णय लिया गया कि जातियों की गणना अब आधिकारिक जनगणना का हिस्सा होगी। इस अहम कमेटी में प्रधानमंत्री के अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल शामिल हैं।
जातिगत जनगणना क्या होता है?
जातिगत जनगणना (Caste Census) का सीधा मतलब है—देश की जनसंख्या को केवल कुल संख्या तक सीमित न रखकर यह भी गिनती करना कि किस जाति के कितने लोग हैं। यानी हर जाति की आबादी का स्पष्ट डेटा सरकार के पास होना चाहिए। इससे यह जानना आसान हो जाता है कि कौन-सी जाति कितनी संख्या में है और उसे सरकारी योजनाओं में भागीदारी के हिसाब से कितना लाभ मिल रहा है या नहीं।
इतिहास में कब हुई जाति जनगणना?
भारत में जातिगत आधार पर आखिरी आधिकारिक जनगणना 1931 में ब्रिटिश राज में हुई थी। उसके बाद 1951 से हर 10 साल में जनगणना होती है, लेकिन उसमें जातियों की गिनती नहीं होती। हां, SC-ST (अनुसूचित जाति व जनजाति) की जनसंख्या जरूर दर्ज की जाती है। लेकिन OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) की गिनती कभी नहीं हुई, जबकि ये भी आरक्षण पाने वाला बड़ा तबका है।
OBC की गिनती क्यों नहीं होती थी?
आजादी के बाद से सरकारों का यह तर्क रहा कि जाति के आधार पर गणना से सामाजिक तनाव बढ़ सकता है और देश के विकास के बजाय जातिगत राजनीति हावी हो सकती है। लेकिन समय के साथ यह मांग उठने लगी कि जब SC-ST की जनगणना हो सकती है, तो OBC की क्यों नहीं?
जाति जनगणना की मांग क्यों बढ़ी?
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आरक्षण का आधार मजबूत करना:
OBC को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण मिला हुआ है। लेकिन यह तय नहीं है कि उनकी आबादी कितनी है। जातिगत डेटा के बिना आरक्षण की नीति अधूरी मानी जाती है। -
सही प्रतिनिधित्व:
अगर किसी जाति की जनसंख्या ज्यादा है और उन्हें कम राजनीतिक या आर्थिक भागीदारी मिल रही है, तो ये असंतुलन ठीक करने के लिए जरूरी है कि उनकी गिनती की जाए। -
नीतियों का फायदा सही लोगों को मिले:
सरकार की योजनाएं अगर वास्तविक आंकड़ों के आधार पर बनाई जाएं, तो फायदा उसी वर्ग तक पहुंचेगा जिसके लिए योजना बनाई गई है।
इससे पहले भी कई क्षेत्रीय दल और सामाजिक संगठन जातिगत जनगणना की मांग करते रहे हैं। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी एक फैसले में कहा था कि अगर OBC को आरक्षण देना है, तो सटीक जातिगत डेटा जरूरी है।