गोल्ड को खरीदने की दुनियाभर की सरकारों में मची होड़, जानिए किस देश के पास है सबसे ज्यादा सोना

punjabkesari.in Tuesday, Feb 11, 2025 - 03:50 PM (IST)

नेशनल डेस्क: सोने का हमेशा से एक विशेष महत्व रहा है, और यह आज भी आर्थिक अस्थिरता और संकट के समय में सुरक्षा का प्रतीक बनकर उभरता है। पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के केंद्रीय बैंकों के द्वारा सोने की खरीदारी में भारी वृद्धि हुई है, जिससे यह सवाल उठता है कि इसके पीछे क्या कारण हैं। 2024 में दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने 1045 टन सोना खरीदा, जो पिछले तीन सालों की तुलना में सबसे ज्यादा है। इस आंकड़े के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों से केंद्रीय बैंकों की सोने की खरीदारी 1000 टन प्रति वर्ष से अधिक हो गई है। 

RBI का सोने का भंडार
भारत के केंद्रीय बैंक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI), ने 2024 में अपने सोने के स्टॉक में 72.6 टन की वृद्धि की है। इसके साथ ही, दिसंबर 2024 के अंत तक आरबीआई के पास 876.18 टन सोना था, जिसकी कीमत 66.2 बिलियन डॉलर थी। पिछले साल की इसी अवधि में आरबीआई के पास 803.58 टन सोना था, जिसकी कीमत 48.3 बिलियन डॉलर थी। यह स्पष्ट है कि आरबीआई ने अपने भंडार को बढ़ाने के लिए सोने की खरीदारी में तेजी लाई है। 

सभी प्रमुख देश क्यों कर रहे हैं सोने की खरीदारी?
2024 में पोलैंड, तुर्की और भारत जैसे देशों ने सोने की सबसे बड़ी खरीदारी की। पोलैंड के केंद्रीय बैंक ने 2024 में 90 टन सोना खरीदा, जिससे उसका सोने का भंडार 448 टन हो गया। तुर्की ने 75 टन सोना खरीदा, और उसका भंडार 585 टन हो गया। भारत ने 72 टन सोना खरीदा और इसका कुल भंडार 876 टन तक पहुंच गया। चीन ने 2024 में 34 टन सोना खरीदा, और उसका सोने का भंडार 2264 टन तक पहुंच गया, जो भारत से लगभग तीन गुना ज्यादा है। इसका मुख्य कारण वैश्विक अनिश्चितता और आर्थिक संकटों का डर है। जब भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में संकट आता है, निवेशक और केंद्रीय बैंक सोने की ओर रुख करते हैं, क्योंकि यह एक ऐसी संपत्ति है, जिसका मूल्य समय के साथ स्थिर रहता है। 

डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियां से सोने की कीमतों पर हो रहा असर
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी ने भी सोने की कीमतों में बढ़ोतरी को प्रेरित किया है। ट्रंप की आक्रामक व्यापार नीतियों से निवेशकों में असमंजस और अनिश्चितता बढ़ गई है। 2017 में ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभालते ही अमेरिका के व्यापारिक साझेदारों पर भारी टैरिफ लगाने का ऐलान किया था, जिससे वैश्विक व्यापार में अस्थिरता आ गई थी। अब, ट्रंप की वापसी के बाद एक बार फिर ऐसे ही कदम उठाए जाने की संभावना जताई जा रही है। खासकर, ट्रंप द्वारा आयातित वस्तुओं पर 10 फीसदी तक टैरिफ लगाने की धमकी दी जा रही है। इस तरह के निर्णयों से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है, और यही कारण है कि देश सोने को एक सुरक्षित निवेश के रूप में देख रहे हैं। 

अन्य मुद्राओं या संपत्तियों में बढ़ सकता निवेश
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का बढ़ता हुआ सोने का भंडार 'डी-डॉलराइजेशन' का संकेत हो सकता है, यानी डॉलर के बजाय अन्य मुद्राओं या संपत्तियों में निवेश बढ़ सकता है। हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस पर स्पष्ट किया कि भारत के सोने के भंडार का उद्देश्य किसी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा को प्रतिस्थापित करना नहीं है। उन्होंने बताया कि यह कदम केवल भारत के रिजर्व पोर्टफोलियो को संतुलित करने के लिए है, न कि डॉलर से दूर जाने के लिए। 

ट्रंप की नीतियों के असर से बचने के लिए सोने की खरीदारी
सोने की खरीदारी में बढ़ोतरी का एक अन्य कारण यह भी है कि देश अमेरिका की नीतियों से बचने के लिए सोने का भंडार बढ़ा रहे हैं। उदाहरण के लिए, रूस के खिलाफ अमेरिका ने उसके डॉलर भंडार को फ्रीज कर दिया था। इसके बाद, कई देशों को यह डर है कि अमेरिकी नीतियों के कारण उनके भंडार को भी फ्रीज किया जा सकता है, जिससे उन्होंने सोने में निवेश को बढ़ावा दिया है। अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ने के कारण अन्य देश सोने की खरीदारी को अपनी वित्तीय सुरक्षा का एक साधन मान रहे हैं। विशेष रूप से, चीन और रूस जैसे देश सोने के भंडार को बढ़ा रहे हैं ताकि वे किसी भी तरह की अमेरिकी आर्थिक दबाव से बच सकें।

इस प्रकार, गोल्ड की खरीदारी में बढ़ोतरी के पीछे वैश्विक संकटों का डर और अमेरिका की व्यापार नीतियों के प्रभाव का मुख्य हाथ है। देशों के केंद्रीय बैंक सोने के भंडार को बढ़ाकर अपने राष्ट्रीय भंडार को विविध बनाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि वे किसी भी वित्तीय अस्थिरता से बच सकें। पिछले कुछ वर्षों में केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने की खरीदारी में भारी वृद्धि हुई है। 2024 में पोलैंड, भारत और तुर्की जैसे देशों ने सोने का भारी भंडार बढ़ाया। इसके पीछे ट्रंप की व्यापार नीतियों, वैश्विक संघर्षों और आर्थिक अस्थिरता का डर है। भारत का सोने का भंडार बढ़ाने का उद्देश्य 'डी-डॉलराइजेशन' नहीं, बल्कि भंडार में विविधता लाना है। 


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Content Editor

Mahima

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