#IndependenceDay- नेहरू ने 15 नहीं 16 अगस्त को फहराया था झंडा

punjabkesari.in Sunday, Aug 13, 2017 - 03:42 PM (IST)

नई दिल्लीः भारत को आजाद हुए 70 साल हो चुके हैं और इस 15 अगस्त को हम आजादी की 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। यह आजादी हमें ऐसे ही नहीं मिली है। इस आजादी के पीछे कई महान लोगों की जान की आहुतियां शामिल हैं। देश के प्रधानमंत्री भले ही 15 अगस्त को लाल किले पर तिरंगा हराते हों लेकिन लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक भारत के पहले प्रधानमंत्री ने पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 16 अगस्त, 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था।

-नेहरू ने कांग्रेस के 1929 में आयोजित लाहौर अधिवेशन में पहली बार “पूर्ण स्वराज” को पार्टी का लक्ष्य बताया था।

-26 जनवरी को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से आजादी के दिन के रूप मं चुना गया। 1930 से भारत की आजादी तक भारत इसी दिन स्वतंत्रता दिवस मनाता रहा था। जब भारत आजाद हुआ तो इस दिन के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस घोषित किया गया।

-26 जनवरी 1950 को आजाद भारत का अपना संविधान लागू हुआ और भारत आधिकारिक तौर पर एक संप्रभु राष्ट्र बन गया। तो आखिर 15 अगस्त को ही भारत आजाद क्यों हुआ?

-भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लुईस माउंटबेटन को ब्रिटिश संसद ने 30 जून 1948 तक भारत में सत्ता-हस्तांतरण का दायित्व सौंपा था।

-माउंटबेटन के भेजे सूचनाओं के आधार पर ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस में इंडियन इंडिपेंडेंस बिल चार जुलाई 1947 को पेश किया गया।

-भारत को आजादी देने वाला ये विधेयक एक पखवाड़े में ही ब्रिटिश संसद में पारित हो गया। इस विधेयक के अनुसार 15 अगस्त 1947 को भारत में ब्रिटिश राज समाप्त होना तय हुआ। विधेयक के अनुसार इसके बाद भारत और पाकिस्तान नामक दो डोमिनियन स्टेट (स्वतंत्र-उपनिवेश) बनने तय हुए जिन्होंने ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के तहत रहना स्वीकार किया।

ब्रिटिश हुकूमत ने भारत की 500 से ज्यादा रियासतों का भविष्य भी नए देशों पर छोड़ दिया था। इन रियासतों को भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनना था। कई रियासतें 15 अगस्त 1947 से पहले ही भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बन गई थीं लेकिन कुछ रियासतें आजादी के बाद तक दोनों में से किसी देश में नहीं शामिल हुई थीं। जम्मू-कश्मीर, जोधपुर, जूनागढ़, हैदराबाद और त्रावणकोर की रिसायतें आजादी के बाद देश का हिस्सा बनीं।

फरवरी 1947 में प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने ये घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार जून 1948 से ब्रिटिश भारत को पूर्ण आत्म-प्रशासन का अधिकार प्रदान करेगी लेकिन अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की तारीख को आगे बढ़ा दिया। उन्होंने 15 अगस्त को चुना। माउंटेबेटन का दावा था कि सत्ता-हस्तांतरण पहले करने से खून-खराबा रोका जा सकता है। हालांकि इतिहास ने माउंटबेटन को गलत साबित किया। बाद में माउंटबेटन ने यह कहकर अपना बचाव किया कि “जहां भी औपनिवेशिक शासन खत्म हुआ है, वहीं खून-खराबा हुआ है। ये इसकी कीमत है जो आपको चुकानी पड़ती है।”


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