Moth Masjid: दाल के एक दाने से बना भव्य मस्जिद, जिसकी कहानी है बेहद दिलचस्प
punjabkesari.in Tuesday, Sep 26, 2023 - 09:38 AM (IST)

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Moth Masjid: हमारा देश कई तरह की किंवदंतियों व कहानियों के लिए मशहूर है ? उसमें भी हर एक ऐतिहासिक इमारत के बनने और बिगड़ने के पीछे की कहानी हमेशा से ही काफी दिलचस्प रहती है। इन्हीं में से एक है दाल के एक दाने से भव्य मस्जिद बनाए जाने की कहानी। ये मस्जिद साउथ एक्सटेंशन पार्ट दो में स्थित है। लोदी कालीन इस मस्जिद को मस्जिद मोठ के नाम से जाना जाता है। इसके बनने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प तो है ही लेकिन अन्न की महत्ता को भी बताती है कि कभी सामने पड़े अनाज का तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए।
One seed sowed and multiplied एक बीज बोकर कई गुना बढ़ाया
मस्जिद मोठ की कहानी कुछ इस तरह है कि इसे सिकंदर लोदी के वजीर मियां भुवा ने तैयार करवाया था। कहते हैं कि वह सिकंदर लोदी के साथ प्रार्थना करने के लिए नजदीक ही बनी एक मस्जिद में आया था। यहां घुटने टेकने के दौरान उसने देखा कि एक पक्षी की चोंच से मसूर के बीज का एक दाना गिर गया है।
उन्हें लगा कि इस दाने को व्यर्थ करने की बजाय अल्लाह की सेवा में लगाया जाना चाहिए। तब उन्होंने इस बीज को अपने बगीचे में बो दिया। कई वर्षों तक उस बीज से उगने वाले पौधे से मिलने वाले बीजों को लगातार बोया गया, जिससे वह कई गुना बढ़ गया। वजीर ने अंत में फसल को बेचकर पैसा कमाया और सुल्तान की अनुमति से उससे साल 1505 में मस्जिद का निर्माण करवाया। यही वजह है कि इस मस्जिद का नाम मस्जिद मोठ रखा गया।
Know the architecture of the mosque जानें मस्जिद की वास्तुकला
मस्जिद मोठ को बलुआ पत्थर के एक ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है। इस मस्जिद का लेआऊट पूरी तरह चौकोर है। यहां आपको मेहराबों के डिजाइन में मुगल व हिंदू कला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलेगा। प्रवेश द्वार की सीढ़ियों के ऊपर 38.6 मीटर चौड़ाई का एक बड़ा प्रांगण है। आंगन के भीतर पश्चिम तरफ मुख्य मस्जिद है। इसमें आयताकार प्रार्थना हॉल है।
2 मंजिला इस मस्जिद में अष्टकोणीय छतरियां हैं। पश्चिम की ओर बुर्ज है। मस्जिद में 3 गुंबद हैं। बीच का गुंबद सबसे बड़ा है। मेहराब ईरानी डिजाइन में लोरा नक्काशी में बनाए गए हैं, जिनमें कुरान की आयतें लिखीं हुई हैं। सफेद संगमरमर से पैनल बनाए गए हैं साथ मस्जिद की दीवारों पर रंग-बिरंगी टाइलें भी देखने को मिलती हैं।
Namaz is still offered on Friday अभी भी शुक्रवार को पढ़ी जाती है नमाज
कई ऐतिहासिक मस्जिदों में हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा रोक लगाई गई है क्योंकि लोग दीवारों पर लिखकर चले जाते हैं और इमारत को कई प्रकार से नुकसान भी पहुंचाते हैं लेकिन मस्जिद मोठ एक ऐसी मस्जिद है जहां आज भी हर शुक्रवार को जुम्मे की नमाज पढ़ी जाती है। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग इबादत करने के लिए अगल-बगल के इलाकों से भी पहुंचते हैं। विशेष त्यौेहारों के मौकों, जैसे ईद व बकरीद पर यहां नमाजियों की संख्या में काफी इजाफा हो जाता है।
The area is named after Masjid Moth मस्जिद मोठ के नाम पर है इलाके का नाम
इतिहासकारों का कहना है कि सिर्फ मस्जिद मोठ ही नहीं, बल्कि इस जगह पर कृषि की जाती थी और मस्जिद बनने के बाद अगल-बगल गांव बसाए गए। उस गांव का नाम भी मस्जिद मोठ गांव पड़ा। हालांकि शहरीकरण के चलते अब इस गांव का नाम कहीं पर भी नहीं बचा। फिलहाल मस्जिद मोठ के संरक्षण का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दिल्ली सर्कल द्वारा किया जा रहा है लेकिन अतिक्रमण के चलते मस्जिद अपनी रंगत और शान को खोती चली जा रही है।
Sikandar Lodi had laid the foundation of the mosque सिकंदर लोदी ने रखी थी मस्जिद की नींव
वजीर मियां भुवा ने मस्जिद का निर्माण करवाने की बात सुल्तान सिकंदर लोदी को बताई तो वजीर की चतुराई और अनाज बचाने की ललक से वह इतना प्रभावित हुआ कि इस मस्जिद के निर्माण की नींव रखने के लिए खुद आया था। वैसे यह भी कहते हैं कि सिकंदर लोदी ने मजाक में अपने वजीर को मसूर का एक दाना तोहफे में दिया था। जिसे उसने अपने बगीचे में लगाकर मस्जिद मोठ का निर्माण किया था। वैसे इस बात में कितनी हकीकत है यह कहना बेमानी है लेकिन आज भी महरौली इलाके में रहने वाले लोग इसी कहानी को सुनाया करते हैं।