Tiruchirappalli Srirangam: दक्षिण भारत में आकर्षण का केंद्र प्रसिद्ध तीर्थस्थल त्रिचिनापल्ली श्रीरंगम

punjabkesari.in Saturday, Aug 02, 2025 - 09:43 AM (IST)

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Tiruchirappalli Srirangam: दक्षिण भारत के जितने भी तीर्थस्थल हैं, उनमें त्रिचिनापल्ली-श्रीरंगम का अपना एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है। यहां का श्रीरंगजी मंदिर तो पूरे भारत में प्रसिद्ध है ही, इसके अलावा इस क्षेत्र के अन्य मंदिर और स्थल भी इसे श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनाते हैं।

Tiruchirappalli Srirangam

यद्यपि त्रिचिनापल्ली और श्रीरंगम दो स्टेशन हैं, किंतु वे एक महानगर के ही दो स्टेशनों की भांति हैं। वैसे मुख्य नगर त्रिचिनापल्ली है और तीर्थ श्रीरंगम है। श्रीरंगम द्वीप का अधिकांश नगर श्रीरंग मंदिर के भीतर या उसके आस-पास आ जाता है। त्रिचिनापल्ली को प्राय: लोग ‘त्रिची’ कहते हैं, किंतु इस नगर का शुद्ध तमिल नाम ‘तिरुचिरापल्ली’ है। इसका प्राचीन संस्कृत नाम ‘त्रिशिर:पल्ली’ है। इसे रावण के भाई त्रिशिरा नामक राक्षस ने बसाया था, जो बड़ा शिवभक्त था और जिसका भगवान श्रीराम ने उसके दो और भाइयों खर-दूषण के साथ वध किया था।

त्रिचिनापल्ली दक्षिण की रेलवे लाइनों का केंद्र है। मद्रास-धनुषकोटि लाइन का यह मुख्य स्टेशन है। विल्लुपुरम् से एक लाइन और यहां तक आती है। त्रिचिनापल्ली से एक लाइन ईरोड की ओर जाती है और एक लाइन मदुरा-त्रिवेंद्रम की ओर। एक लाइन त्रिचिनापल्ली से श्रीरंगम तक जाती है। त्रिचिनापल्ली से श्रीरंगम 8 मील है।

विल्लुपुरम त्रिचिनापल्ली लाइन पर श्रीरंगम स्टेशन त्रिचिनापल्ली से पहले पड़ता है। गणेश मंदिर ही त्रिचिनापल्ली में एक मुख्य मंदिर है। वैसे त्रिचिनापल्ली किले में ‘तेप्पकुलम’ सरोवर भी दर्शनीय है।

Tiruchirappalli Srirangam
‘दक्षिण का कैलाश’
त्रिचिनापल्ली स्टेशन से लगभग डेढ़ मील दूर नगर के उत्तर भाग में कावेरी के पास 235 फुट ऊंची पत्थर की एक चट्टान ऐसी लगती है, जैसे विशाल नंदी नगर के मध्य आ बैठा हो। इसके एक भाग में नीचे से ऊपर तक मंदिर बने हैं। इसे कैलाश का ही एक खंड बताया जाता है इसीलिए इसे ‘दक्षिण का कैलाश’ कहा जाता है।

नगर की सड़क पर एक साधारण गोपुर है। उसे पार करने पर नगर के मध्य की सड़क मिलती है। उसके एक ओर एक फाटक है। उसके भीतर प्रवेश करने पर बहुत दूर तक सीढ़ियो के ऊपर छत बनी दिखाई पड़ती है। यहां पहले सहस्र स्तंभमंडप था, किंतु सन् 1772 में एक बड़े विस्फोट से मंडप का अधिकांश भाग नष्ट हो गया। जो भाग बचा है, उसमें दुकानें हैं। द्वार में प्रवेश करने पर जहां सीढ़ियां प्रारंभ होती हैं, वहां दाहिने हाथ पर गणेश जी का मंडप है। आस-पास के लोग इस गणेश मूर्ति की प्रतिदिन पूजा करते हैं। यहीं द्वारपालों की मूर्ति है।

आगे कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर एक सौ स्तंभों का मंडप है। यह उत्सव मंडप है। मंडप में एक सुंदर पीठिका बनी है। मंडप से आगे जाने पर सीढ़िया दो ओर जाती हैं। बाईं ओर 86 सीढ़ियां चढ़ने पर एक बड़ा शिव मंदिर मिलता है। इसमें कई छोटे-छोटे मंडप और मंदिर हैं।

शंकरजी को ‘ता मानवर’ कहते हैं
पहले पार्वती जी का मंदिर मिलता है। यहां वे सुगंधिकुंतला के नाम से विख्यात हैं। पार्वती जी का श्रीविग्रह उदीप्त दिखाई देता है।
पार्वती मंदिर से कुछ ऊपर शिवजी का मंदिर है। मंदिर में श्याम वर्ण का विशाल मातृभूतेश्वर शिवलिंग है। यह लिंग मूर्ति अलग से स्थापित नहीं है, इस शिला में से ही बनी है।

यहां शंकरजी को ‘ता मानवर’ कहते हैं, जिसका अर्थ ‘माता बनने वाले प्रभु’ होता है। जिस भक्त ने इस शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, उसका भी यही नाम था। कहा जाता है कि प्राचीन काल में कोई वृद्धा शिवभक्ता अपनी पुत्री की ससुराल इसलिए जा रही थी कि पुत्री आसन्न प्रसवा थी, उस समय उसकी सेवा-सुश्रुषा करनी थी। मार्ग में नदी पड़ती थी और उसमें बाढ़ आई थी। उस समय वह वृद्धा नदी के किनारे ही भगवान आशुतोष का स्मरण करती बैठी रही। नदी का पानी उतरने पर दूसरे दिन वह पुत्री के यहां पहुंची।
पुत्री के यहां बालक जन्म ले चुका था और उसकी इस वृद्धा माता के वेश में स्वयं भगवान ने वहां सेवा-संभाल की थी इसीलिए यहां भगवान शंकर का यह नाम पड़ा।

अद्भुत है पत्थर की जंजीर
शिव और पार्वती के दोनों ही मंदिरों में छत के नीचे सुंदर तिरंगे चित्र बने हैं। मदुरै में, कांची में और यहां भारतीय शिल्प का अद्भुत कौशल देखने को मिलता है। कांची के वरदराज मंदिर में कोटितीर्थ के समीप मंडप में, मदुरै के मीनाक्षी मंदिर में सुंदरेश्वर मंदिर के घेरे में और यहां शिव मंदिर में एक अद्भुत कला है, पत्थर काटकर ऐसी जंजीर बनाई गई है, जिसकी कड़ियां घूम सकती हैं।

यहीं पर सुब्रह्मण्यम, गणेश, नटराज आदि के भी श्रीविग्रह हैं। शिव मंदिर के सामने चांदी से मढ़ी नंदी की विशाल मूर्ति है। शिव मंदिर से 86 सीढ़िया उतरकर फिर वहां आ जाना चाहिए, जहां से दो मार्ग हुए हैं। अब सामने की सीढ़ियों से 208 सीढ़ियों चढ़ने पर चट्टान के सबसे ऊपरी भाग में गणेशजी का मंदिर दिखाई पड़ता है।

ऊपर सीढ़िया नहीं बनी हैं। चट्टान में ही सीढ़िया काट दी गई हैं। शिखर पर गणेशजी का मंदिर तो छोटा है, किंतु गणेशजी की मूर्ति भव्य और बहुत प्राचीन है। भादों महीने में गणेश चतुर्थी को यहां महोत्सव होता है।

श्रीरंगम
गणेश मंदिर से उतर कर कावेरी का पुल पार करके श्रीरंगम द्वीप में पहुंचना होता है। श्रीरंगम स्टेशन तो है ही, त्रिचिनापल्ली स्टेशन से श्रीरंग मंदिर तक बसें आती हैं। गणेश मंदिर से श्रीरंग मंदिर लगभग डेढ़ मील है। वहां से भी बस मिलती है।

कावेरी की दो धाराओं के मध्य में श्रीरंगम् द्वीप सत्रह मील लंबा तथा तीन मील चौड़ा है। कावेरी की उत्तर धारा को कोलरून तथा दक्षिण
धारा को कावेरी कहते हैं। श्रीरंग मंदिर से लगभग पांच मील ऊपर दोनों धाराएं अलग हुई हैं और मंदिर से लगभग बारह मील आगे जाकर परस्पर मिल गई हैं। श्रीरंग मंदिर का विस्तार 266 बीघे का कहा जाता है।

श्रीरंग नगर के बाजार का बड़ा भाग मंदिर के घेरे के भीतर आ जाता है। श्रीरंगजी का निजमंदिर सात प्राकारों के भीतर है। इन प्राकारों में छोटे-बड़े 18 गोपुर हैं। मंदिर के पहले बाहरी घेरे में बहुत-सी दुकानें हैं। बीच में पक्की सड़क है। बाहर से दूसरे घेरे में चारों ओर सड़क है। इस घेरे में पंडों तथा ब्राह्मणों के घर हैं। तीसरे में भी ब्राह्मणों के घर हैं।

सहस्र स्तंभ मंडप
चौथे मध्य के घेरे में कई बड़े मंडप बने हैं। इनमें एक सहस्र स्तंभ 
मंडप है, जिसमें 960 स्तंभ हैं। इस घेरे के पूर्व वाले बड़े गोपुर के पश्चिम में एक सुंदर मंडप और है। उसके स्तंभों में सुंदर घोड़े, घुड़सवार तथा अनेक मूर्तियां बनी हैं। पांचवें घेरे में दक्षिण के गोपुर के सामने उत्तर की ओर गरुड़ मंडप है। उसमें बहुत बड़ी गरुडज़ी की मूर्ति है। इसके एक ओर उत्तर में एक चबूतरे पर स्वर्ण मंडित गरुड़ स्तंभ है। इसी घेरे के ईशान कोण में चंद्रपुष्करिणी नामक गोलाकार सरोवर है। यात्री इसमें स्नान करते हैं।

उसके पास महालक्ष्मी का विशाल मंदिर है। कल्पवृक्ष नामक वृक्ष, श्रीराम की मूर्ति तथा श्रीबैकुंठनाथ भगवान का प्राचीन स्थान भी वहीं पास है। श्रीलक्ष्मी जी को यहां श्रीरंग नायकी कहते हैं। श्रीलक्ष्मी जी के मंदिर के सामने के मंडप का नाम ‘कंबमंडप’ है।
छठे घेरे के पश्चिम भाग में एक द्वार तथा दक्षिण भाग में मंडप हैं। इसके भीतर सातवां घेरा है, जिसका द्वार दक्षिण की ओर है। इसके उत्तरी भाग में श्रीरंगजी का निजमंदिर है। इसका शिखर स्वर्ण मंडित है। निजमंदिर के पीछे एक कूप और एक मंदिर है। इस मंदिर में आचार्य श्रीरामानुज, विभीषण तथा हनुमानजी आदि के श्रीविग्रह हैं। इसके पीछे भूमि में एक पीतल का टुकड़ा जड़ा है। वहां से श्रीरंगजी के मंदिर के शिखर के दर्शन होते हैं।

थोड़ी दूर आगे एक दालान में भी एक पीतल का टुकड़ा जड़ा है। वहां से मंदिर के शिखर पर स्थित श्रीवासुदेव की मूर्ति के दर्शन होते हैं। शिखर के ऊपर जाने का मार्ग भी है। सीढ़ियां बनी हैं। ऊपर जाकर श्रीवासुदेव की मूर्ति के दर्शन किए जाते हैं। श्रीरंगजी के निजमंदिर में शेषशय्या पर शयन किए श्याम वर्ण की श्रीरंगनाथजी की विशाल चतुर्भुज मूर्ति दक्षिणाभिमुख स्थित है। भगवान के मस्तक पर शेषजी के पांच फनों का छत्र है। बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से मंडित यह मूर्ति परम भव्य है। भगवान के समीप श्रीलक्ष्मीजी तथा विभीषण बैठे हैं। श्रीदेवी, भूदेवी आदि की उत्सव मूर्तियां भी वहां हैं।

श्रीरंगजी के मंदिर से दक्षिण में लगभग आधे मील पर कावेरी की मुख्य धारा है। यहां किनारे पर पक्का घाट बना है। इस मुख्य धारा से पहले कावेरी की एक छोटी धारा श्रीरंगम् बाजार के पास से बहती है। उस पर भी पक्के घाट हैं। बहुत से लोग इस छोटी धारा पर ही स्नान करते हैं। कावेरी की कोलरून नामक उत्तरी धारा मंदिर से आधा मील उत्तर में है।

पौष माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एकादशी तक श्रीरंगम में बहुत बड़ा महोत्सव होता है। इस एकादशी का नाम बैकुंठ एकादशी है। उस दिन श्रीरंगजी के मंदिर का बैकुंठद्वार खुलता है। भगवान की उत्सव-मूर्ति उस द्वार से बाहर निकलती है। उस द्वार से पीछे यात्री बाहर निकलते हैं। बैकुंठद्वार से निकलना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

Tiruchirappalli Srirangam


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Content Writer

Niyati Bhandari

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