भक्ति से भी ज्यादा महत्व रखती है सेवा, जानिए कैसे?
punjabkesari.in Tuesday, Jun 09, 2020 - 10:55 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
महाराजा भोज के दरबार में एक दिन सभासदों में इस बात पर बहस होने लगी कि भक्ति और साधना बड़ी है या सेवा और सज्जनता। इस बहस पर महाराजा भोज भी कोई निर्णय नहीं दे पाए। एक दिन महाराजा भोज हिंसक पशु का शिकार करने जंगल में गए। वे निर्जन वन में भटक गए। भीषण गर्मी में उन्हें तेज प्यास लगी हुई थी पर दूर-दूर तक पानी नहीं दिख रहा था। उन्हें कुछ ही दूरी पर किसी साधु की कुटिया दिखाई दी। वे कुटिया तक पहुंचते-पहुंचते पानी-पानी चिल्लाकर मूर्छित हो गए। साधु समाधि में लीन थे। शोर सुनकर उनकी समाधि भंग हुई।
उन्होंने तत्काल अपने कमंडल से जल निकाल कर महाराजा के मुख पर छिड़क दिया। उन्हें पानी पिलाया। महाराजा की जान में जान आई।
राजा भोज ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘महाराज, आपकी समाधि मेरे कारण भंग हुई, इसका मुझे बेहद अफसोस है।’’
संत ने हंसते हुए कहा वत्स इस समय मुझे समाधि में जो आनंद मिल रहा था, उससे कहीं ज्यादा संतोष तुम्हें पानी पिलाकर, तुम्हारे प्राण बचाकर मिल रहा है। भक्ति और सेवा दोनों ही ईश्वर को प्राप्त करने के साधन हैं। यदि मैं साधना-समाधि में लगा रहता और तुम प्यासे होने के कारण प्राण त्याग देते तो ईश्वर मुझे कभी क्षमा नहीं करता।
उस दिन महाराजा भोज की जिज्ञासा का स्वत: समाधान हो गया कि भक्ति की तुलना में सेवा का महत्व अधिक है।