Gayatri Mantra: दरिद्रता, दुख और कष्टों का नाश करता है ये मंत्र
punjabkesari.in Thursday, Aug 26, 2021 - 07:44 AM (IST)

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Gayatri Mantra benefits: गायत्री वह दैवीय शक्ति है जिससे संबंध स्थापित करके मनुष्य अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। गायत्री उपासना द्वारा साधकों को बड़े-बड़े लाभ होते हैं। वेदों में वर्णित है कि ब्रह्मा जी ने चारों वेदों की रचना से पूर्व 24 अक्षर वाले गायत्री मंत्र की रचना की। गायत्री मंत्र में एक-एक अक्षर में सूक्ष्म तत्व समाहित है। इसके फलने-फूलने पर चार वेदों की शाखाएं प्रकट हो गईं। हिन्दू धर्म ग्रंथों में मां गायत्री को वेद माता के नाम से जाना जाता है। मां गायत्री के पांच मुख और दस हाथ हैं। उनके इस रूप में चार मुख चारों वेदों के प्रतीक हैं तथा उनका पांचवां मुख सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। मां के दस हाथ भगवान विष्णु के प्रतीक हैं एवं मां त्रिदेवों की आराध्य भी हैं।
Gayatri Mantra: गायत्री मंत्र का जाप करना अत्यंत कल्याणकारी माना जाता है : ॐ भूर्भुव: स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात।
शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी के मुख से गायत्री मंत्र प्रकट हुआ था। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की। आरंभ में मां गायत्री की महिमा सिर्फ देवताओं तक ही थी परंतु महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर मां की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया।
इस मंत्र के जाप से ज्ञान की प्राप्ति होती है और मन शांत तथा एकाग्र रहता है। ललाट पर चमक आती है। गायत्री माता के विभिन्न स्वरूपों का उनके मंत्रों के साथ जाप करने से दरिद्रता, दुख और कष्ट का नाश होता है, नि:संतानों को पुत्र की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री मंत्र का जाप करता है वह पापों से मुक्त हो जाता है। जिस प्रकार गंगा शरीर के पापों को धोकर तन-मन को निर्मल करती है, उसी प्रकार गायत्री रूपी गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है।
समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं। इस कारण गायत्री को ज्ञान गंगा भी कहा जाता है। मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी का अवतार भी गायत्री को कहा जाता है। गायत्री सूक्ष्म शक्तियों का स्रोत है। इस शक्ति के द्वारा अनेक पदार्थों और प्राणियों का निर्माण होना था इसलिए उसे तीन भागों में अपने को बांट देना पड़ा ताकि अनेक प्रकार के सम्मिश्रण तैयार हो सकें।
जब असमान गुण कर्म एवं स्वभाव वाले जड़ चेतन पदार्थ बन चुके हों तो इन्हें सत, रज और तम के नामों से पुकारा जाता है। सत का अर्थ है ईश्वर का दिव्य तत्व। रज का अर्थ है निर्जीव पदार्थों का प्रामाणिक स्रोत और तम का अर्थ है जड़ पदार्थों और तत्वों के मिलने से उत्पन्न हुई आनंदमयी चेतना। इसी चेतना का नाम गायत्री है।