Dharmik Katha in Hindi: कहां तक जाते हैं पाप?
punjabkesari.in Thursday, Jun 02, 2022 - 11:17 AM (IST)
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एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते हैं तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गई। अब यह जानने के लिए तपस्या की कि पाप कहां जाता है। तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए तो ऋषि ने पूछा कि भगवान जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहां जाता है? भगवान ने कहा कि चलो गंगा जी से ही पूछते हैं। दोनों गंगा जी के पास गए और कहा, ‘‘हे गंगे! जो लोग आपके यहां पाप धोते हैं इसका मतलब आप भी पापी हुईं।’’ गंगा जी ने कहा, ‘‘मैं क्यों पापी हुई? मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अॢपत कर देती हूं।’’
अब वे लोग समुद्र के पास गए, ‘‘हे सागर! गंगा पाप आपको अॢपत कर देती हैं। इसका मतलब आप भी पापी हुए।’’
समुद्र ने कहा, ‘‘मैं क्यों पापी हुआ मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बनाकर बादल बना देता हूं।’’
अब वे बादल के पास गए और कहा, ‘‘हे बादलो! समुद्र पापों को भाप बनाकर बादल बना देता है, इसका मतलब आप पापी हुए।’’
बादलों ने कहा, ‘‘मैं क्यों पापी हुआ मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसाकर धरती पर भेज देता हूं जिससे अन्न उपजता है, जिसे मानव खाता है। उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है उसी के अनुसार मानव की मानसिकता बनती है। इसीलिए कहते हैं जैसा खाए अन्न वैसा बनता मन।’’