Narasimha Jayanti katha: सिंह व मनुष्य रूप में भक्तों के रक्षक नृसिंह अवतार, पढ़ें कथा
punjabkesari.in Sunday, May 11, 2025 - 06:45 AM (IST)

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Narasimha Jayanti katha 2025: नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के अवतारों में प्रमुख स्थान रखते हैं, जोकि भगवान का चतुर्थ अवतार है। हिरण्याक्श और हिरण्यकशिपु दो भाई राक्षस कुल में पैदा हुए तथा राजा बने। भगवान ने वाराह अवतार धारण कर हिरण्याक्श का संहार किया जबकि उसके बाद हिरण्यकशिपु राजगद्दी पर बैठा। उसने भी विष्णु जी से परस्पर शत्रुता जारी रखी तथा प्रजा पर कड़े अत्याचार किए, जिससे प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठी।
हिरण्यकशिपु राजा कश्यप का पुत्र था। माता अदिति के गर्भ से पैदा हुए इन राक्षसों ने घोर उत्पात मचाया। हिरण्यकशिपु ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर अमर होने के लिए घोर तप किया जिससे इंद्रासन भी डोल गया तथा ब्रह्मा जी को उसे वरदान देने के लिए प्रकट होना पड़ा।
हिरण्यकशिपु ने वरदान स्वरूप अमर होने की चेष्टा में ‘न दिन, न रात, न मानव, न पशु, न अस्त्र, न शस्त्र, न भीतर, न घर के बाहर किसी भी तरह मृत्यु न होने पाए’ ऐसा वरदान प्राप्त किया तथा महा शक्तिशाली बन गया। कुछ समय उपरांत उसकी पत्नी महारानी ग्याधू ने एक दिव्य और ओजस्वी बालक को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने प्रह्लाद रखा, जो भगवान विष्णु का परम भक्त हुआ।
हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अपनी पूजा पिता और भगवान की भांति करने के लिए प्रेरित किया तथा समस्त राज्य में स्वयं को भगवान घोषित करके अपनी पूजा-अर्चना के लिए घोषणा कर दी जिससे, प्रजा भयभीत हो उठी। उसने ऐसा न करने पर कठोर दंड देने शुरू किए जिससे सभी ओर उसके विरुद्ध रोष प्रकट होने लगा।
भक्त प्रह्लाद यह सब देख-सुन कर बहुत व्यथित हुए तथा मन ही मन लगातार भगवान का ध्यान करने लगे। जब उनके पिता को इस बात का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हो उठा, उसने प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रयत्न किए।
उसे सांपों से डंसवाने, हाथियों तले कुचलवाने, पर्वत से गिराने आदि के प्रयास किए पर हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी। एक बार उसने अपनी बहन होलिका, जिसे वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती, उसकी गोद में बालक प्रह्लाद को बिठाकर आग लगा दी, प्रभु की ऐसी लीला हुई कि प्रह्लाद सकुशल बच गए तथा होलिका जल कर भस्म हो गई।
अब तो हिरण्यकशिपु और तिलमिला उठा। उसने राज दरबार में प्रह्लाद को बुलाकर कहा कि वह अपने भगवान को साक्षात प्रकट करे। उसने अपनी गदा से जोरदार प्रहार महल के एक खम्भे पर किया तथा कहा कि तेरा भगवान अगर यहां है तो सामने आए। उसके इतना कहते ही नृसिंह रूप धारण कर प्रभु साक्षात प्रकट हो गए जिनका आधा शरीर सिंह का तथा आधा मनुष्य का था। उन्होंने घोर गर्जना की, जिससे सारे लोकों में हाहाकार मच गया। अपने भक्तों की अत्याचारों से रक्षा और हिरण्यकशिपु के संहार के लिए ही उन्होंने नृसिंह अवतार धारण किया था।
उन्होंने हिरण्यकशिपु को पकड़ कर बाहर महल की देहरी पर ले जाकर अपनी जंघा पर लिटा लिया और अपने नुकीले नाखूनों से उसका उदर फाड़ डाला, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। चहुं ओर प्रभु की जय-जयकार होने लगी।
नृसिंह भगवान शांत नहीं हो रहे थे। देवी-देवताओं ने भक्तराज प्रह्लाद से प्रार्थना की कि उन्हें शांत करें। भगवान की स्तुति कर प्रह्लाद जी ने उन्हें शांत किया तथा नृसिंह भगवान ने उन्हें अपनी गोद में बिठाकर प्यार, दुलार किया व कुछ समय बाद अंतर्ध्यान हो गए।
इस प्रकार नृसिंह अवतार तथा भक्त प्रह्लाद का नाम सदा के लिए अमर हो गया। हर वर्ष नृसिंह अवतारोत्सव के रूप में उनका अवतार दिवस मनाया जाता है तथा भगवान के इस सबसे अनुपम और आलौकिक दिव्य अवतार का ध्यान कर भक्तजन उनका गुणगान करते हैं।