भारत व अमरीका के रिश्तों में आया नया मोड़

punjabkesari.in Wednesday, Jul 11, 2018 - 03:32 AM (IST)

एक निरंकुश शासक लोकतंत्र की चूलें उखाड़ सकता है। यही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कर रहे हैं लेकिन वह एक साम्राज्यवादी शक्ति भी बनते जा रहे हैं। भारत की अमरीका के साथ अच्छी समझदारी रही है और दोनों लोकतंत्र, एक सबसे मजबूत और दूसरा सबसे बड़ा, इस अराजक दुनिया में आराम से चलते रहे हैं। 

खबरों के मुताबिक, राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत को ईरान से तेल का आयात बंद करने के लिए कहा है। भारत ने अमरीका को बताया है कि उसने ईरान के साथ एक दीर्घकालिक समझौता किया है जो उसे नियमित और दूसरों के मुकाबले सस्ती कीमत पर तेल आयात की गारंटी देता है। अमरीकी विदेश मंत्री और भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बातचीत रद्द कर ट्रम्प ने भारत और अमरीका के बीच तालमेल को बिगाड़ दिया है। 

जाहिर है कि इस तरह के दबाव ने नई दिल्ली को नाराज किया है लेकिन उसे लग रहा है कि बातचीत से मतभेद दूर कर लिए जाएंगे। फिर भी विदेश मंत्री माइक पोंपिओ ने अपना खेद जताने के लिए सुषमा से बात की और इस पर गहरी निराशा जताई कि अमरीका को नहीं टालने योग्य कारणों से विदेश मंत्रियों तथा रक्षा मंत्रियों के बीच होने वाली वार्ता रद्द करनी पड़ी। उन्होंने भारत के विदेश मंत्री से तालमेल बनाए रखने का आग्रह किया और जल्द वार्तालाप के लिए अनुकूल समय ढूंढने हेतु दोनों आपस में सहमत हुए। 

लेकिन जो कुछ हुआ, उसके बारे में वाशिंगटन ने औपचारिक रूप से कुछ नहीं कहा। वैसे, भारत की यात्रा पर आई संयुक्त राष्ट्र में अमरीका की राजदूत निक्की हेली ने भारत के शीर्ष नेताओं से ढेर सारे मुद्दों पर बातचीत की लेकिन यह पूरी तरह साफ हो गया जब विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संकेत दिए कि ईरान के साथ अमरीका जो कुछ करना चाहता है उसमें किसी तरह का त्याग नहीं होगा। एशिया और यूरोप के अपने मित्र देशों को संदेश देने के अलावा अपनी सोच को स्वीकृति दिलाने के लिए अमरीका के विदेश तथा राजस्व विभाग के अधिकारियों की कई एजैंसियों वाली टीम आने वाले सप्ताहों में भारत, चीन तथा अन्य देशों की यात्रा करने वाली है। 

पिछले कुछ सालों से भारत और ईरान ने आपस में एक समझदारी बना ली है, जिस पर तेल की कूटनीति का असर नहीं होता। दोनों ने भारत में बनी चीजों के बदले तेल आपूर्ति के लिए एक दीर्घकालिक समझौता किया है। हालांकि अमरीका ने ईरान के खिलाफ पहले भी पाबंदी लगाई थी, लेकिन वह भारत को ईरान से संबंध तोडऩे के लिए राजी नहीं कर पाया था। चीजें जहां थीं वहीं रहने दी गईं। अब ट्रम्प चाहते हैं कि उन्हीं की बात चले। तेल एवं गैस के क्षेत्र में महत्वपूर्ण द्विपक्षीय सहयोग को व्यापक बनाने के लिए भारत तथा ईरान ने एक संयुक्त प्रक्रिया बनाई थी। दोनों सहमति वाले इलाकों में प्रतिरक्षा सहयोग, जिसमें प्रशिक्षण तथा आपसी यात्राएं शामिल हैं, के अवसर तलाशने पर भी सहमत हुए थे। समझौते के अनुसार, भारत तथा ईरान के बीच रक्षा सहयोग किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं होगा। वे द्विपक्षीय व्यापार तथा आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए व्यापक प्रयास करने पर भी सहमत हुए थे। इसमें गैर-तैलीय व्यापार तथा चाबहार बंदरगाह परिसर, चाबहार फहराज-बाम रेलवे ङ्क्षलक तथा किसी सहमति वाले स्थान पर तेल टैंकिंग के लिए टर्मिनल समेत अन्य ढांचागत निर्माण तथा भारत के ढांचागत निर्माण प्रकल्पों में ईरान के निवेश तथा उसकी भागीदारी शामिल है। 

नई दिल्ली को अपने हितों का ध्यान रखना है। इसने अमरीका की बात भी रख ली थी, जैसे ईरान से आयात में कमी लेकिन भारत इससे ज्यादा आगे नहीं जा सकता है क्योंकि इससे उसे नुक्सान होगा। व्हाइट हाऊस में नरेन्द्र मोदी के साथ पहली बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में राष्ट्रपति ट्रम्प ने आतंकवाद को दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग का आधार बताया। यह बयान परम्परागत अमरीकी नीति से आगे चला गया और पाकिस्तान की आलोचना के साथ इसमें चीन के नेतृत्व वाले बैल्ट एंड  रोड इनीशिएटिव के बारे में भारत की ङ्क्षचता की भी प्रतिध्वनि थी। ट्रम्प ने अपने चुनावी अभियान को याद करते हुए कहा कि उन्होंने भारत के साथ सच्ची दोस्ती का वायदा किया था। ‘‘मैंने वायदा किया था कि अगर मैं जीत गया तो भारत के लिए व्हाइट हाऊस में एक सच्चा दोस्त होगा और यही आपके पास है- एक सच्चा दोस्त। मैं प्रधानमंत्री मोदी तथा भारत की जनता को उन चीजों के लिए सलाम करते हुए रोमांचित हूं जो आपस में मिलकर आप हासिल कर रहे हैं। आपकी उपलब्धि व्यापक है, ‘‘ट्रम्प ने कहा। 

सोशल मीडिया के अनुसार, अमरीकी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी और खुद को विश्व का नेता बताया। अतीत में, जॉन एफ. कैनेडी, बिल किं्लटन तथा बराक ओबामा के रूप में भारत को दोस्ताना राष्ट्रपति मिले लेकिन सामरिक तथा विकास की जरूरतों में उन्होंने नई दिल्ली की बहुत ही कम मदद की। उन पर यह विचार हावी था कि वे किसी तरह पाकिस्तान को चिढ़ाने वाला काम नहीं करें। नई दिल्ली ने भी कभी यह नहीं चाहा कि वे कुछ ऐसा करें जिससे लगे कि वे इस ओर झुके हैं। लेकिन राष्ट्रपति ट्रम्प अमरीका की पुरानी नीतियों से अलग हट गए थे। दोनों देशों के बीच आतंक विरोधी सहयोग को मजबूत करने का उनका निश्चय नई दिल्ली की जीत तथा हिजबुल के आतंकियों को ‘‘स्वाधीनता सेनानी’ बताने की कोशिश कर रहे इस्लामाबाद के लिए जबरदस्त झटका था। 

राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपनी टिप्पणी में कहा , ‘‘ अमरीका तथा भारत के बीच सुरक्षा संबंधी सांझेदारी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। हमारे दोनों देश आतंकवाद की बुराइयों के मारे हुए हैं और हम दोनों ने संकल्प कर रखा है कि आतंकवादी संगठनों तथा उसे चलाने वाली कट्टरपंथी विचारधारा को खत्म कर देंगे। हम लोग इस्लामिक आतंकवाद को खत्म कर देंगे।’’ ऐसा लगा था कि दोनों नेताओं ने एक टिकाऊ दोस्ती बना ली है कि राष्ट्रपति ट्रम्प मोदी को खुद व्हाइट हाऊस घुमाने ले गए और एक बैठक के लिए अपनी बेटी इवांका को भारत भेजा। अपनी ओर से मोदी ने भी राष्ट्रपति ट्रम्प के बगल में खड़े होकर घोषणा की ‘‘सामाजिक तथा आर्थिक बदलाव’’ में अमरीका भारत का प्रमुख सांझेदार है। लोगों को लगा कि ये सब अच्छे संकेत हैं। 

लेकिन हाल में जो घटनाएं घटी हैं वे अमरीका का अलग रवैया ही दिखाती हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ पहली बैठक में मोदी ने अपना तुरुप का पत्ता होशियारी से खेला। भारत में मोदी की पार्टी भाजपा ने जड़ जमा ली है और वह राज्यों में अपने पैर फैला रही है, ऐसे में अब मोदी जो चाहते हैं वह है पूरी अंतर्राष्ट्रीय पहचान। इससे बेहतर कुछ नहीं होता कि अमरीका के साथ अच्छे रिश्ते होते, खासकर उस समय, जब चीन खुलकर पाकिस्तान का साथ दे रहा है। प्रधानमंत्री मोदी या यूं कहिए कि भाजपा इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती और अगले साल हो रहे चुनावों को ध्यान में रखकर अमरीका के प्रति एक नरम नीति अपनाए। मोदी को लगता है कि एक कठोर चेहरा मतदाताओं को अच्छा लगेगा। यह सही आकलन है या गलत, इसका अंदाजा भारत के आम चुनावों के बाद ही होगा।-कुलदीप नैय्यर


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Pardeep

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