स्वदेशी सैमीकंडक्टर चिप : भारत के हाईटैक मैन्युफैक्चरिंग में मौन क्रांति

punjabkesari.in Wednesday, May 01, 2024 - 04:12 AM (IST)

टैक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता से ‘सैमीकंडक्टर’ इसका जरूरी अंग बन गए हैं। हमारी रोजमर्रा की जरूरत के इलैक्ट्रॉनिक्स उपकरणों से लेकर मोबाइल फोन,कम्प्यूटर,चिकित्सा उपकरण व यहां तक कि कृषि औजार से लेकर कार तक के ‘पावरहाऊस’ एक नन्ही-सी सैमीकंडक्टर चिप में सिमटे हैं। देश को इनकी ताकत का अहसास कोरोना महामारी के दौरान तब हुआ जब इन छोटे से पुर्जों की किल्लत की वजह से कई वाहनों व चिकित्सा उपकरणों का उत्पादन लगभग ठप्प हो गया था। आज भी भारत 95 प्रतिशत सैमीकंडक्टर चिप के लिए ताईवान,चीन, जापान, अमरीका, मलेशिया, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से इम्पोर्ट पर निर्भर है। हाईटैक मैन्युफैक्चरिंग की इस मौन क्रांति का सामाजिक-आॢथक महत्व समझते हुए भारत ने भी अब सैमीकंडक्टर सैक्टर में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से  कदम बढ़ाए हैं। 

नैशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सॢवस कम्पनीज (नैसकॉम) एवं जिनोव की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ‘‘वित्त वर्ष 2023-24 की दिसम्बर तिमाही के दौरान भारत में स्थापित नए वैश्विक क्षमता केन्द्रों में से लगभग 30 प्रतिशत सैमीकंडक्टर सैक्टर से संबंधित हैं। इनमें सैमीकंडक्टर चिप की  ‘फ्रंट-एंड डिजाइन’ से लेकर इनके प्रदर्शन परीक्षण में स्थानीय हुनरमंद इंजीनियरों व श्रमिकों के लिए रोजगार के अपार अवसर हैं। इंटैल, टैक्सास इंस्ट्रूमैंट्स, ए.एम.डी., एनवीडिया और क्वालकॉम सरीखी दुनिया की जानी-मानी सैमीकंडक्टर चिप डिजाइन कम्पनियों के डिजाइन एवं रिसर्च डिवैल्पमैंट सैंटर भारत में स्थापित हो रहे हैं। एएमडी ने हाल ही में बेंगलुरु में दुनिया का सबसे बड़ा डिजाइन सैंटर शुरू किया है। 

बीते मार्च दौरान दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित ‘इंडियाज टेक्ड : चिप फॉर विकसित भारत’ कार्यक्रम में सवा लाख करोड़ रुपए के निवेश के तीन बड़े सैमीकंडक्टर प्रोजैक्ट की बुनियाद रखी गई। ताईवान के पावर चिप सैमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन (पी.एस.एम.सी) के साथ सांझेदारी में 91,000 करोड़ रुपए के निवेश से टाटा इलैक्ट्रोनिक्स गुजरात के धोलेरा में देश का पहला सैमीकंडक्टर फैब प्लांट स्थापित कर रहा है जबकि 27,000 करोड़ रुपए के निवेश से मोरीगांव (असम) में दूसरा प्लांट भी इसी सांझेदारी में स्थापित किया जा रहा है। इन प्लांटों से 2026 तक पहले स्वदेशी सैमीकंडक्टर चिप का उत्पादन शुरू होगा। गुजरात के साणद में 22,500 करोड़ रुपए के निवेश से अमरीकी सैमीकंडक्टर कंपनी माइक्रोन दिसम्बर तक पहला ‘मेड इन इंडिया’ मैमोरी चिप देश-दुनिया के बाजार में उतारने के लिए तैयार है। 

95 प्रतिशत आयात पर निर्भरता : 95 प्रतिशत से अधिक सैमीकंडक्टर चिप के लिए आयात पर निर्भरता घटाने के लिए देश में एक मजबूत सैमीकंडक्टर उद्योग की जरूरत को समझते हुए केन्द्र सरकार ने इंडिया सैमीकंडक्टर मिशन(आई.एस.एम.) के तहत नए निवेशकों को पूंजीगत खर्च में 50 प्रतिशत सहायता, प्रोड्क्शन ङ्क्षलक्ड इंसैंटिव (पी.एल.आई)व डिजाइन ङ्क्षलक्ड  इंसैंटिव (डी.एल.आई)स्कीम के लिए 76,000 करोड़ रुपए का बजट रखा है। विदेशी कम्पनियों से सांझेदारी पर जोर दिया जा रहा है। सैमीकंडक्टर सैक्टर में हुनरमंद कामगारों की कमी दूर करने के लिए केन्द्रीय इलैक्ट्रॉनिक्स एवं आई.टी. मंत्रालय की अगले 5 साल में 85,000 से अधिक चिप डिजाइनिंग इंजीनियर तैयार करने की योजना है। 

मौजूदा कारोबार के विस्तार की संभावना : चीन-अमरीका व्यापार युद्ध के कारण कई अमरीकी कम्पनियां चीन से बाहर कारोबार विस्तार के लिए तैयार हैं। इन हालात में भारत, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम व इंडोनेशिया जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को भविष्य के सैमीकंडक्टर फ्रंट-एंड मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर देखा जा रहा है। इस ‘इकोसिस्टम’ में भारत का सही समय पर प्रवेश ग्लोबल सप्लाई चेन में बदलाव के अलावा सैमीकंडक्टर डिजाइन मैन्युफैक्चरिंग व टैक्नोलॉजी विकास के लिए एक ग्लोबल सैंटर के रूप में स्थापित होने के साथ देश के लाखों बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने का सुनहरी मौका है।  

भारत में सैमीकंडक्टर, सैमीकंडक्टर से जुड़े 95 ग्लोबल कैपेबिलिटी सैंटर (जी.सी.सी) में से 55 जी.सी.सी.  बेंगलुरू व हैदराबाद में हैं। इन जी.सी.सी. इकाइयों में पहले से काम कर रही 50,000 वर्कफोर्स भारत में भविष्य के सैमीकंडक्टर उद्योग के लिए सुखद संकेत है। वर्तमान में भारत का सालाना 15 बिलियन अमरीकी डॉलर का सैमीकंडक्टर कारोबार साल 2026 तक 55 बिलियन अमरीकी डॉलर होने की संभावना है। सैमीकंडक्टर चिप उत्पादन की दुनिया आपस में गहरी जुड़ी हुई है, इसलिए भारतीय कम्पनियों को उन्नत तकनीक तक पहुंच बढ़ाने के लिए ताईवान व दक्षिण कोरिया की कम्पनियों के साथ गठजोड़ करने की जरूरत है। यह सांझेदारी ऑटोमैटिक मशीनों, स्मार्ट मैडीकल उपकरणों एवं भविष्य में 6जी से आगे की संचार क्रांति एवं तमाम इलैक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में बढ़ते आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई)के उपयोग में मददगार साबित होगी।

हुनर की खाई पाटने की दरकार : उन्नत सैमीकंडक्टर चिप डिजाइनिंग के लिए भारत को हुनरमंद इंजीनियरों की कमी दूर करनी होगी। इसके लिए कई कम्पनियों ने अनूठी पहल की है। शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि देश से पलायन कर चुकी प्रतिभाओं को फिर से अपनी जड़ों से जोडऩे के लिए टाटा इलैक्ट्रोनिक्स समेत कई भारतीय कम्पनियों ने ताईवान के चिप मैन्युफैक्चरिंग हब सिंचू में रोड शो का सहारा लिया । इससे पहले विदेशों से निवेश जुटाने के लिए भारतीय कम्पनियां वहां जाकर रोड शो किया करती हैं। 

दुनिया के सैमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग उद्योग में काम करने वाले 23 लाख हुनरमंद इंजीनियरों में से लगभग 25  प्रतिशत सीनियर इंजीनियर भारतीय मूल के हैं। कम्युनिकेशन एंड आई.टी. मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक, ‘‘अमरीका से जिन इंजीनियरों ने भारत लौटने का मन बनाया है उनमें ज्यादातर युवा हैं जबकि ताईवान, सिंगापुर व मलेशिया से भारत लौटने के इच्छुक अनुभवी इंजीनियरों में ज्यादातर 45 की उम्र के पार हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भारतीय मूल के कई इंजीनियर भारत की हाईटैक मैन्युफैक्चरिंग क्रांति में योगदान देने के लिए स्वदेश लौटेंगे।’’

आगे की राह  : सैमीकंडक्टर उद्योग का भविष्य अपार संभावनाओं से भरा है। इस उद्योग में आत्मनिर्भरता व विश्व बाजार का बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए भारत में डिजाइन इंजीनियरों, मैन्युफैक्चरिंग इंजीनियरों, रिसर्च एंव डिवैल्पमैंट वैज्ञानिकों, ऑप्रेटरों व तकनीशियनों से लेकर कुशल श्रमिकों के लिए अगले पांच साल में दस लाख से अधिक नौकरियों के अवसर हैं। प्रतिभा एवं संसाधनों के दम पर भारत आने वाले वर्षों में सैमीकंडक्टर सैक्टर में भी ‘ग्लोबल लीडर’ बनने के लिए तैयार है। -डा. अमृत सागर मित्तल (वाइस चेयरमैन सोनालीका) (लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं  प्लाङ्क्षनग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)  


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