‘तैं की दर्द न आया...?’

punjabkesari.in Wednesday, Apr 03, 2024 - 05:52 AM (IST)

मक्का से अपनी घर वापसी के दौरान श्री गुरु नानक देव जी सैय्यदपुर रुके, जो वर्तमान में पाकिस्तान में पड़ता है, अपने प्यारे सिख लालो को मिलने के लिए,जो एक गरीब बढ़ई था। सैय्यदपुर के निवासियों का दर्दनाक हाल देख कर गुरु नानक देव जी ने लिखा था कि खुरासान खसमाना किया हिंदुस्तान डराया...। 

गुरु नानक देव जी एक भयानक कत्लेआम का उत्तर दे रहे थे जो उज्बेक योद्धा बाबर ने अंजाम दिया था, जब वह दिल्ली के तख्त पर कब्जा करने के लिए लोधियों से लडऩे की तैयारी कर रहा था। गलियां खून से लथपथ थीं,  हर ओर लाशों के ढेर लगे हुए थे, जहां तक आंख देख सकती थी, मौत तथा तबाही थी। गुरु नानक देव जी की दर्द की पुकार सिख धर्म के बुनियादी सिद्धांतों में एक बन गई कि आप भयानक अन्याय तथा जुल्म के सामने चुप नहीं रहोगे। लगभग 10-12 वर्ष पहले मेरी बेटी मेहर कौर, जो उस समय कालेज की छात्रा थी, ने मेरी एक कविता पर आधारित एक नाटक ‘कुलतारस माइम’ बनाया जो मैंने कई वर्ष पहले लिखी थी। इस कविता में 1984 में दिल्ली में हुए सिखों के कत्लेआम की कहानी बयान की गई थी। जब हम नाटक को टूर पर ले जाने के लिए तैयार हो रहे थे तो मैं एक अन्य कविता से वाकिफ हुआ जिसने वही कहानी सुनाई थी। 

बेशक किसी अन्य समय तथा स्थान से : 1903 में किशीनेव में निर्दोष यहूदियों के कत्लेआम बारे प्रसिद्ध इसराईली कवि हेइम नाहमन बिआलिक द्वारा लिखी ‘इन द सिटी ऑफ स्लॉटर’। मैं अपनी कविता तथा बिआलिक की कविता के बीच समानताओं से हैरान था। नाटक में मेहर कौर ने मेरी कविता के साथ बिआलिक की कविता के अंश शामिल कर दिए। तब हमने अपने कलाकारों के साथ दुनिया का दौरा किया तथा कुलतारस माइम को 90 से अधिक बार भावुक श्रोताओं के सामने पेश किया, किशीनेव के यहूदियों का दर्द दिल्ली के सिखों के दर्द के साथ मिल गया क्योंकि सभी जुल्म करने वाले तथा सभी पीड़ित एक जैसे हो गए हैं। लाखों अन्य की तरह मैं भी साहित्य, फिल्मों, शानदार वृत्तांतक नावल मौस तथा अन्य कई लेखों द्वारा यहूदी घल्लूघारे के इतिहास से जुड़ा हूं जो यहूदी लोगों के दर्द, बहादुरी तथा संघर्ष को बयान करते हैं। यह जानकारी मेरे भीतर यहूदी कौम के लिए हमदर्दी की गहरी भावना तथा उनकी पुन: उबर सकने की शक्ति के लिए कद्र पैदा करती है। 

बाकी दुनिया की तरह मैंने वे तस्वीरें देखीं जो हमास द्वारा 2 अक्तूबर के वहशी हमलों के बाद इसराईल से आई थीं। निर्दोषों को बेदर्दी से निशाना बनाया गया। साम्प्रदायिक हिंसा का विनाशकारी चक्र अनंत लगता था तथा एक बार फिर दिल उन निर्दोषों के लिए तड़पा जो दर्द से चीख रहे थे। यह पक्का था कि इसराईल का कहर गाजा पर टूटेगा। पर उसके बाद जो हुआ, उसके लिए मैं तैयार नहीं था। इसराईल की भयानक बदलाखोरी ने लाखों बेकसूर फिलिस्तीनियों को इस किस्म का दर्द पहुंचाया है, जो शायद केवल यहूदी लोग ही समझ सकते हैं। दुनिया ने यह सब कुछ चुपचाप देखा है क्योंकि हमदर्दी की आवाजों को इसराईली शासन के अमरीका जैसे शक्तिशाली सहयोगियों ने दबा दिया है। इसके अलावा हर किसी को यहूदी विरोधी लेबल किए जाने का डर है। 

श्रीगुरु नानक देव जी के आदर्शों के अनुसार जीवन व्यतीत करने वाले सिख होने के नाते मैं इस बुनियादी सिद्धांत को त्यागने के लिए बहुत शर्म महसूस करता हूं। शायद अब तक इस विषय पर चुप रहना एक किस्म का विश्वासघात है। मैं अपनी बेटी को आशीष देता हूं, जिसने इन लफ्जों से मेरे सोए हुए जमीर को जगाया है : ‘मैंने बचपन से आपको इस सिद्धांत बारे बात करते सुना है, सिख अब चुप क्यों हैं? आप चुप क्यों हो? क्या गाजा का दर्द हमारा दर्द नहीं है?’मैं और चुप नहीं रहूंगा। गाजा में इसराईली शासन जो कुछ कर रहा है, वह नस्लकशी से कम नहीं है। इसको रोकना पड़ेगा। बेशक इसराईल शासन को अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है, यहूदी लोगों के ऐतिहासिक दुख इसराईल को निर्दोष फिलिस्तीनियों को दहशत, भुखमरी तथा जुल्म के अधीन करने का हक नहीं देते। जिनका जमीर अभी भी जागता है, चाहे वह कोई भी हो अथवा कहीं भी रहते हों, उनको बुलंद आवाज में बोलने की जरूरत है। उन सभी को मैं गुरु नानक देव जी के इन शब्दों से संबोधित करता हूं : 
तैं की दर्द न आया
आप चुप कैसे रह सकते हो?-सर्बप्रीत सिंह


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