श्रीलंका को चीन ने बनाया कंगाल, खाने के पड़े लाले

punjabkesari.in Thursday, Sep 09, 2021 - 05:40 AM (IST)

एक समय भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी गति से आगे बढ़ रही थी, आॢथक क्षेत्र में सभी दक्षिण एशियाई देशों में श्रीलंका बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा था। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था सबसे अधिक पर्यटन पर चलती है, जिस पर तो कोरोना महामारी के कारण पहले ही संकट पैदा हो गया है, हालांकि इसके अलावा श्रीलंका में वैश्विक पैमाने पर बड़े स्तर पर ठोस और औद्योगिक वाहनों के टायर बनाने का काम भी होता है। इसके अतिरिक्त कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में श्रीलंका उभरती हुई शक्ति है। सॉफ्टवेयर सैक्टर, बंदरगाह और विमानन क्षेत्र में भी श्रीलंका बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा था। 

लेकिन आज श्रीलंका में खाने का अकाल पड़ गया है, देश में खाद्य सामग्रियों पर आपातकाल की घोषणा कर दी गई है, निजी बैंकों के पास इतनी विदेशी मुद्रा नहीं है कि वे खाद्य पदार्थ विदेशों से खरीद सकें। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिर श्रीलंका की यह हालत हुई कैसे? दरअसल चीन ने जब से श्रीलंका में एंट्री मारी है, तभी से उसके हाल बुरे हो चले हैं। पहले हम्बनटोटा बंदरगाह का अधिग्रहण, बाद में कोलंबो बंदरगाह में एक नया शहर बसाना, जहां पर श्रीलंका सरकार की नहीं लेकिन चीन सरकार की मर्जी चलेगी, यहां पर मल्टी करंसी के नाम पर चीनी युआन में खरीद-फरोख्त को मंजूरी मिलना, इसके अलावा श्रीलंका के व्यापार और उद्योगों को पूरी तरह से अपने कब्जे में लेकर चीन से सस्ते सामान लाकर श्रीलंका के बाजारों को भर देना भी एक कारण है जिससे एक अच्छी-खासी अर्थव्यवस्था कंगाल हो गई। 

जुलाई 2021 में श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 2.8 अरब अमरीकी डॉलर थे लेकिन नवंबर 2019 में यह भंडार 7.5 अरब अमरीकी डॉलर था। जब से वर्तमान सरकार यानी गोटाबाया राजपक्षे ने सत्ता संभाली है, श्रीलंका का सरकारी खजाना खाली हो गया है क्योंकि श्रीलंका को व्यापार में लगातार घाटा होता रहा। वर्तमान में सरकार ने खाद्य सामग्री की जमाखोरी पर प्रतिबंध लगा दिया है और खाद्य सामग्रियों के दाम तय कर दिए हैं ताकि कोई भी जरूरत से ज्यादा मुनाफा न कमा सके। गोटाभाया ने अपने अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे इस बात की जांच करें कि कहीं पर भी कोई चावल, धान, चीनी, खाद्य तेल की जमाखोरी और सरकारी दामों से अधिक दाम पर इनकी बिक्री न करे। इस काम के लिए सेना के मेजर जनरल को आदेश दिए गए हैं। 

वहीं श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री उदय गम्मनपिला ने देश के लोगों से आह्वान किया है कि वे डीजल, पैट्रोल का सोच-समझ कर इस्तेमाल करें ताकि तेल खरीदने में श्रीलंका की विदेशी मुद्रा खर्च न हो और यह विदेशी मुद्रा दवाएं और वैक्सीन खरीदने के काम आ सके। चीन ने श्रीलंका में जब एंट्री मारी तो उसे निवेश का लालच दिया। चीन जैसे पूरी मक्कारी के साथ अपने धन से गरीब देशों को अपने जाल में फंसाता है, वैसे ही उसने श्रीलंका को भी फंसाया क्योंकि उसकी आॢथक हालत अच्छी नहीं थी। वर्ष 2018 से चीन ने श्रीलंका में भारी पैमाने पर आॢथक निवेश किया। हालांकि चीन ने हमेशा इसे व्यापार आधारित निवेश बताया लेकिन उसकी चाल जिबूती की तर्ज पर यहां एक नौसैन्य अड्डा बनाने की है। 

चीन आमतौर पर 3 तरीकों से विदेशों में निवेश करता है-उधार, निवेश और व्यापार। पहले चीन किसी भी देश को उसकी जरूरत से कहीं ज्यादा पैसे बहुत कम ब्याज पर उधार देता है,  फिर उस देश की आधारभूत संरचना में भारी धन निवेश करता है, फिर इतना पैसा उधार और निवेश के तौर पर उस देश को देता है, जिसे लौटा पाना उसके लिए संभव नहीं होता, फिर व्यापार के नाम पर उस देश का शोषण शुरू करता है। पिछले 15 वर्षों में चीन श्रीलंका में दूसरा सबसे बड़ा कर्जदाता रहा है, इन वर्षों में चीन ने श्रीलंका की कई बड़ी परियोजनाओं में निवेश किया है, जिनमें हम्बनटोटा बंदरगाह, मटाला हवाई अड्डा, कोलंबो पोर्ट सिटी, कोलंबो-कटुनायके एक्सप्रैस-वे, इसके अलावा पाक जलडमरू क्षेत्र में अनालाईतिवु और नैनातिवु हाईब्रिड बिजली घर बनाना शामिल है। 

वर्ष 2010 से 2020 में चीन श्रीलंका में सबसे बड़ा निवेशक बन गया। इसके साथ ही कोलंबो पोर्ट सिटी बनाने के लिए 116 हैक्टेयर रीक्लेम्ड लैंड सी.एच.ई.सी. पोर्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड को 99 वर्षों के लिए पट्टे पर दे दिया गया क्योंकि श्रीलंका चीन का कर्ज लौटाने में असमर्थ था। श्रीलंका के लोगों और विपक्षी दलों का यह मानना है कि जो कोलंबो पोर्ट सिटी बिल संसद में पारित किया गया है, वह श्रीलंका को चीन का उपनिवेश बना देगा। 

व्यापार के क्षेत्र में भी चीन भारत को पीछे छोड़ते हुए श्रीलंका का सबसे बड़ा सांझीदार बन गया है। इन सभी कदमों ने श्रीलंका को आज वहां ला खड़ा किया है, जहां  पर वह किसी भी हाल में नहीं होना चाहता था।
चीन पहले श्रीलंका का हितैशी बना, फिर उसने वहां पर निवेश किया, कर्जा दिया और फिर व्यापार किया लेकिन हर कदम पर अपना फायदा देखा और श्रीलंका को कंगाल बना दिया। आने वाले दिन श्रीलंका के लिए अच्छे नहीं दिखते क्योंकि अपनी कंगाली से बाहर निकलने के लिए श्रीलंका को और कर्जा चाहिए जिसके लिए वह चीन, आई.एम.एफ., विश्व बैंक और बड़े देशों का मुंह देखेगा लेकिन हर हाल में उसे वह कर्जा भी चुकाना होगा। लेकिन जो हालत इस समय श्रीलंका की है उसे देखकर लगता नहीं कि वह इस कर्ज को लौटा पाएगा। 


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