बेहिसाब चीनी खा रहे बच्चे, कोई नहीं देख रहा

punjabkesari.in Friday, Apr 26, 2024 - 05:39 AM (IST)

सेरेलैक और बॉर्नविटा विवादों से एक आम बात यह है कि बच्चों को दिए जाने वाले उत्पादों के विज्ञापनों की बिल्कुल भी सख्ती से निगरानी नहीं की जा रही है। भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई.) कड़ी रोकथाम में विफल हो रहा है। नेस्ले द्वारा गरीब देशों में बेचे जाने वाले शिशु दूध के फॉर्मूले में चीनी मिलाना, लेकिन यूरोप और ब्रिटेन में बेचे जाने वाले दूध में नहीं मिलाना, वास्तव में क्या दर्शाता है? सरकारों द्वारा सक्रिय विनियमन के अभाव में निगम सार्वजनिक स्वास्थ्य की जरा भी परवाह नहीं कर सकते। फिर भी नेस्ले अपने उत्पादों का प्रचार कर रहा है और बच्चों को ‘स्वस्थ जीवन जीने’ में मदद कर रहा है और यह भी असामान्य बात नहीं है। अधिकांश ‘स्वास्थ्य’ उत्पाद अपने प्रचार और विज्ञापन अभियानों के हिस्से के रूप में बड़े-बड़े दावे करते हैं। 

बमुश्किल स्वास्थ्य
नेस्ले के बारे में इस खुलासे से ठीक पहले, सुर्खियां यह थीं कि भारत सरकार ने ई-कॉमर्स साइटों और प्लेटफार्मों से बॉर्नविटा सहित किसी भी पेय और पेय पदार्थ को ‘स्वास्थ्य पेय’ के रूप में वर्गीकृत करना बंद करने के लिए कहा था। इसके बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सरकार को सूचित किया कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई.) ने वास्तव में ऐसी श्रेणी के लिए कोई मानक निर्धारित नहीं किया है, इससे भी बुरी बात यह है कि इस तरह वर्गीकृत अधिकांश पेय पदार्थों में चीनी की मात्रा अधिक पाई गई है। लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकत्र्ताओं की लंबे समय से चली आ रही मांग कि पेय निर्माताओं को बच्चों का विज्ञापन देने से रोका जाना चाहिए, लेकिन अभी तक इस पर ध्यान नहीं दिया गया है। यह याचिका मोटापे और मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी गैर-संचारी बीमारियों की बढ़ती घटनाओं के संदर्भ में है। जानकारी के अनुसार उनमें 70 प्रतिशत गलत प्रोटीन था। 

पाए गए नमूनों का परीक्षण
कुछ ब्रांडों, विशेष रूप से भारत स्थित कंपनियों द्वारा निर्मित ब्रांडों में प्रोटीन स्पाइकिंग का संदेह था। साथ ही, प्रतिष्ठित ब्रांडों में फंगल टॉक्सिन्स, कीटनाशक अवशेष, सीसा और आर्सेनिक जैसी भारी धातुएं और संभावित रूप से जहरीले कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिक शामिल थे। 

अपारदर्शी एफ.एस.एस.ए.आई. 
बॉर्नविटा विज्ञापनों के खिलाफ शिकायतों के मामले में उपरोक्त सभी उत्पाद एफ.एस.एस.ए.आई. द्वारा विनियमित माने जाते हैं। जबकि एफ.एस.एस.ए.आई. ने कहा कि उसने खाद्य कंपनियों द्वारा किए गए स्वास्थ्य दावों के विभिन्न उदाहरणों पर ‘ध्यान दिया’ लेकिन उसने क्या कार्रवाई की, इसके बारे में कोई विवरण नहीं दिया। राज्यवार दर्ज मामलों में एफ.एस.एस.ए.आई. की वाॢषक रिपोर्ट, दोष सिद्धि और वसूले गए जुर्माने की संख्या बताती है। लेकिन उल्लंघन के लिए दोषी ठहराई गई संस्थाओं की पहचान या उन उल्लंघनों के विवरण का खुलासा किए बिना। की गई कार्रवाई का कोई प्रचार न होने से, विनियमों में थोड़ी बाधा होती है, क्योंकि कोई प्रतिष्ठित क्षति नहीं होती है। सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकत्र्ता अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में अतिरिक्त चीनी, सोडियम और अन्य रसायनों की पहचान कर रहे हैं तथाकथित स्वस्थ खाद्य पदार्थों में भारी धातु और कीटनाशक संदूषण को भी कई बार चिह्नित किया गया है। 

बेईमानी से डिजिटल 
जबकि पेय पदार्थ और ऊर्जा पेय को पारंपरिक प्रिंट और टैलीविजन मीडिया के माध्यम से प्रचारित किया जा सकता है, प्रोटीन पाऊडर, न्यूट्रास्यूटिकल्स, ऊर्जा बार और स्वास्थ्य पूरक को डिजिटल विज्ञापनों और सोशल मीडिया के माध्यम से और सोशल मीडिया प्रभावशाली लोगों का उपयोग करके भारी प्रचार किया जा रहा है, जो ज्यादातर यह नहीं बताते हैं कि उन्हें भुगतान किया जा रहा है। कंपनियों को उत्पादों को प्लग करना होगा। यहां तक कि शिशु आहार और शिशु का दूध भी फार्मूले को सामाजिक माध्यम से आगे बढ़ाया जा रहा है। भारतीय कानून के बावजूद मीडिया प्रभावित करने वाले खाद्य पदार्थों के किसी भी प्रचार पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध 2 साल तक के बच्चों के लिए है। सरकार की ऐसी कोई शाखा नहीं है जो सक्रिय रूप से ऐसे प्रचार पर नजर रखती हो या भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई करती हो। उदाहरण के लिए, प्रोटीन पाऊडर, विशेष आहार उपयोग के लिए खाद्य पदार्थों (एफ.एस.डी.यू.) की श्रेणी में आते हैं, जिन्हें ‘चिकित्सा के तहत उपयोग किया जाता है’। 

सलाह या आहार संबंधी पर्यवेक्षण 
प्रोटीन पाऊडर, ‘स्वास्थ्य पेय’, ऊर्जा बार और स्वास्थ्य अनुपूरक की कीमतें विपणन के माध्यम से बढ़ गई हैं, जिनमें से अधिकांश अनियमित हैं। दरअसल, लगातार विपणन ने इस प्रकार के उत्पादों को आम जनता तक फैला दिया है, जिनका पहले केवल खिलाड़ी या बॉडी बिल्डर ही उपभोग करते थे। यहां तक कि गरीब लोगों को भी इन अल्ट्रा प्रोसैस्ड खाद्य पदार्थों को ऊंची कीमत पर खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है। विज्ञापन के लालच में विज्ञापनदाता दावा करते हैं कि ये उनके और उनके बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं। 

भ्रामक रूप से विज्ञापित 
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में कहा गया है कि एक विज्ञापन किसी भी उत्पाद या सेवा का परीक्षण भ्रामक है यदि वह ऐसे उत्पाद या सेवा का गलत वर्णन करता है, झूठी गारंटी देता है तो ऐसे में उत्पाद या सेवा की प्रकृति, पदार्थ, मात्रा या गुणवत्ता के बारे में उपभोक्ताओं को गुमराह करने की संभावना होती है या जानबूझकर महत्वपूर्ण जानकारी छुपाई जाती है। इस कानून के तहत उपभोक्ता अधिकारों में वस्तुओं, उत्पादों या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक और कीमत के बारे में सूचित होने का अधिकार शामिल है। हाल ही में सामने आए ज्यादातर मामलों में, कंपनियों ने इस कानून का उल्लंघन किया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ उन खाद्य/पेय उत्पादों के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह करते हैं जिनमें उच्च (संतृप्त) वसा, नमक या चीनी होती है। उनका तर्क है कि इन सामग्रियों की मात्रा को छिपाया जा रहा है। उत्पादों के स्वास्थ्यवर्धक होने का दावा करना उपभोक्ताओं को गुमराह करने जैसा है। जीवनशैली और खान-पान से जुड़ी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं और सरकार और नियामक एजैंसियों को ऐसे मुद्दों पर अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता है।-रेमा नागराजन


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