राजस्थान में भाजपा की हैट्रिक या कांग्रेस का खुलेगा खाता?

punjabkesari.in Tuesday, Apr 16, 2024 - 05:20 AM (IST)

राजस्थान में इस बार का लोकसभा चुनाव दिलचस्प मोड़ पर आ गया है। भाजपा पूरे चुनाव को प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ रही है। कांग्रेस चुनाव को स्थानीय मुद्दों और अपने घोषणा पत्र को आगे कर लड़ रही है। चुनाव इस कदर रोमांचक है कि भाजपा को 11 नए चेहरे उतारने पड़े हैं। ( कुल सीटें 25 ) कांग्रेस को पहली बार 3 सीटें गठबंधन के साथियों के बीच बांटनी पड़ी हैं। प्रधानमंत्री मोदी को ज्यादा चुनावी सभाएं करनी पड़ रही हैं तो कांग्रेस की तरफ से सोनिया गांधी , मल्लिकार्जुन  खरगे, प्रियंका गांधी को घोषणा पत्र जनता के बीच रखने जयपुर आना पड़ा है। कुल मिलाकर कहा जाने लगा है कि लगातार तीसरी बार भाजपा पूरी 25 सीटें शायद नहीं जीत सके। कहा जाने लगा है कि कांग्रेस कम से कम खाता तो खोलने में कामयाब होगी। कुछ जानकार तो राजस्थान को भी महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार , बंगाल की तर्ज पर सिं्वग स्टेट में रखने लगे हैं। बिना लहर, बिना उत्साह वाला चुनाव सीट-टू-सीट में फंसता नजर आ रहा है। 

ऐसा चुनाव चौंकाता रहा है और इस बार भी वोटर चौंका सकता है। वैसे यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि पहले चरण के चुनाव के समय (19 अप्रैल ) को फाल्गुन की बड़ी ग्यारस है। इसकी वजह से धार्मिक कार्यक्रमों के चलते वोटिंग प्रभावित हो सकती है। दूसरे चरण (26 अप्रैल ) के दिन लू के थपेड़ों के बीच चुनाव होगा जिससे वोटिंग प्रभावित हो सकती है। लिहाजा पूरा चुनाव मोदी, मौसम, माहौल के बीच उलझ कर रह गया है। सी वोटर का नवीनतम सर्वे भाजपा को 55 और कांग्रेस को 31 फीसदी वोट दे रहा है। इस हिसाब से देखा जाए तो भाजपा की हैट्रिक की संभावनाएं बन रही हैं  लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के हिसाब से भाजपा को 4 फीसदी वोट कम मिलते दिख रहे हैं। जानकारों का कहना है कि जिस तरह से दोनों पक्षों के बीच तगड़ा मुकाबला हो रहा है उससे साफ है कि आने वाले दिनों में अंतर कम हो सकता है। कांग्रेस को अगर खाता खोलना है तो 40 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने ही होंगे। उस दिशा में कांग्रेस जाती दिख रही है जो भाजपा के लिए ङ्क्षचता का सबब है। 

हालांकि सचिन पायलट आधी यानी करीब 12 सीटों में कांटे का मुकाबला बता रहे हैं लेकिन जानकारों का कहना है कि 6-7 सीटों पर कांग्रेस टक्कर देती दिख रही है और सट्टा बाजार की मानें तो कांग्रेस 3 से 5 सीटें निकाल सकती है। उधर भाजपा 25 में से 19 सीटों को पक्की मान कर चल रही है और 6 में वह फंसी हुई जरूर है लेकिन कांग्रेस के मुकाबले हल्की बढ़त उसे हासिल है। ऐसा भाजपा सूत्रों का दावा है। उनका कहना है कि ऐसी सीटों पर खास फोकस किया जा रहा है। मोदी के दौरे या रोड शो करवाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर दोनों दलों के दावों को गौर से देखें तो भी कांग्रेस का खाता खुलने की प्रबल संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। 1984 के बाद से राजस्थान में हुए 10 लोकसभा चुनावों को देखा जाए तो लहर के समय वोटर पूरी तरह किसी एक पार्टी के साथ गया है लेकिन बिना लहर के चुनाव में या तो सीटें आधी-आधी बंटी हैं या फिर जो पक्ष नैरेटिव बनाने में कामयाब हुआ उसे 80 फीसदी तक ( 20 तक ) सीटें मिलीं। 1984 को इंदिरा गांधी की शहादत लहर  में जहां सारी सीटें कांग्रेस ने जीतीं वहीं 1989 की बोफोर्स लहर में कांग्रेस सारी सीटें हार गई। 

1996 का चुनाव बिना लहर का था तब भाजपा को 12 और कांग्रेस को 13 सीटें मिलीं। 2004 में ‘इंडिया शाइङ्क्षनग’ की लहर में भाजपा 21 सीटें जीतने में कामयाब रही तो 2009 में मनमोहन सिंह सरकार की आॢथक लहर पर सवार हो कांग्रेस 20 सीटें जीती। 2014 और 2019 की मोदी लहर में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ। इन आंकड़ों से साफ है कि इस बार का चुनाव चूंकि बिना लहर का है लेकिन मोदी के पक्ष में माहौलबंदी है लिहाजा भाजपा 80 फीसदी ( 20 ) सीटें निकालने की क्षमता रखती है लेकिन इससे यह भी साफ है कि कांग्रेस का न केवल खाता खुल रहा है बल्कि 5 सीटें तक निकाल रही है लेकिन अगर कहीं कोई अंडर करंट है तो नतीजे कुछ भी हो सकते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि अगर सी वोटर का सर्वे सही है तो कांग्रेस के लिए 16 फीसदी का अंतर पाटना लगभग नामुमकिन है। 

अब जरा सीटों का आकलन किया जाए तो सामने आता है कि शेखावाटी की तीनों सीटों पर जोरदार मुकाबला है। चूरू में भाजपा से कांग्रेस में आए राहुल कस्वा , झुंझुनूं में कांग्रेस के बृजेन्द्र ओला और सीकर में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे सी.पी.एम. के अमराराम भाजपा के लिए मुसीबत बने हुए हैं। भाजपा को चूरू में मोदी की सभा रखवानी पड़ी है। वैसे भी शेखावाटी में कांग्रेस ने विधानसभा में भी अच्छा प्रदर्शन किया था। तब उसे 21 में से 16  सीटें मिली थीं। शेखावाटी की अगर 3 सीटों पर कांग्रेस की मजबूत दावेदारी है तो मेवाड़ की पांचों सीटों पर भाजपा का परचम लहराता दिख रहा है। कांग्रेस ने दौसा, सवाई माधोपुर में भाजपा को कड़ी टक्कर दे रखी है। यहां सचिन पायलट अगर गुर्जर मीणा गठजोड़ बनाने में कामयाब रहे तो भाजपा खतरे में पड़ सकती है। नागौर में कांग्रेस के साथ खड़े हनुमान बेनीवाल और कांग्रेस से भाजपा में गई ज्योति मिर्धा के बीच जबरदस्त मुकाबला है। पिछला चुनाव बेनीवाल भाजपा की मदद से जीते थे। बाड़मेर चुनाव पर तो पूरे देश की नजरें हैं। यहां भाजपा का साथ छोड़ निर्दलीय विधानसभा चुनाव जीते रविन्द्र सिंह भाटी ने भाजपा की नाक में दम कर रखा है। 

कहा जा रहा है कि अगर वह राजपूत वोट पाने में कामयाब रहे तो कांग्रेस सीट निकालने में कामयाब हो सकती है। कुछ सीटों के बारे में विस्तार से बताने का मकसद यही बताना था कि चुनाव सीट-टू-सीट हो गया है। कहीं जातिगत समीकरण काम कर रहे हैं तो कहीं भीतरघात असर दिखा रहा है। कहीं उम्मीदवारों का चेहरा हावी है तो कहीं वोट ट्रांसफर के फेर में चुनाव फंसा हुआ है। इन सीटों पर मोदी का जादू कितना चलेगा उससे तय होगा कि कांग्रेस खाता खोल पाएगी या नहीं। पिछले 25 सालों में ऐसा पहली बार है जब वसुंधरा राजे कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं। वह पूरी तरह झालावाड़ सीट पर ध्यान लगाए हुए हैं जहां से उनके बेटे दुष्यंत सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य में कहीं-कहीं राजपूत समाज भाजपा का विरोध करता दिखाई दे रहा है। इस वर्ग को वसुंधरा साध सकती हैं लेकिन वह खामोश हैं। उधर अशोक गहलोत का पूरा ध्यान अपने बेटे वैभव गहलोत की सिरोही जालौर सीट पर है। ऐसे में सचिन पायलट को पूरा राज्य सियासी मैदान के रूप में मिल गया है। वह इसका फायदा भी उठा रहे हैं। अगर राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया तो मोदी हैट्रिक लगाने में कामयाब हो सकते हैं।-विजय विद्रोही
 


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