अच्छे मानसून से पड़ेगी अर्थव्यवस्था में जान

punjabkesari.in Wednesday, Apr 17, 2024 - 05:52 AM (IST)

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आई.एम.डी.) ने इस साल भारत में ‘सामान्य से ज्यादा’ मानसून रहने की संभावना जताई है। मौसम विभाग ने मानसून का पूर्वानुमान जारी करते हुए बताया कि इस बार सीजन की कुल बारिश 87 सैंटीमीटर औसत के साथ 106 प्रतिशत रहने की संभावना है। अल नीनो प्रभाव के चलते इस साल देश में मानसून अच्छा रहेगा। अगस्त-सितंबर में अच्छी बारिश होने का अनुमान है। हकीकत में अर्थशास्त्री और नीति निर्माता भी मानसून का बेसब्री से इंतजार करते हैं और कामना करते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए अच्छी बारिश हो। मौसम विभाग की भविष्यवाणी यदि सही होती है तो यह देश की अर्थव्यवस्था से लेकर खेती-किसानी के लिए रामबाण हो सकती है। कहा जा रहा है कि मानसून ‘सामान्य’ रहा तो फसलों की पैदावार अच्छी होगी, जो महंगाई को नीचे लाने का काम करेगी। इससे ग्रामीण मांग में भी सुधार आएगा, जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद करेगी। 

अच्छी बारिश का असर खरीफ फसलों के उत्पादन पर पड़ता है, जिससे कुछ खास खाद्य पदार्थों के दाम घट सकते हैं। चावल, बाजरा, रागी, अरहर, मूंगफली, कपास, मक्का, सोयाबीन आदि खरीफ फसलें हैं और इनका उत्पादन अधिकतर अच्छे मानसून पर निर्भर करता है। इनकी बुवाई जून-जुलाई से शुरू होती है। ऐसे में मानसून के दौरान अच्छी बारिश खरीफ फसलों के उत्पादन को बढ़ा सकती है, जिससे महंगाई पर कुछ हद तक नियंत्रण किया जा सकता है। महंगाई घटेगी तो पूरी अर्थव्यवस्था को इसका फायदा मिलेगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मानसून भारतीय खेती की लाइफलाइन है। 

एक अनुमान के मुताबिक मानसून पर 2 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है और कम से कम 50 प्रतिशत कृषि को पानी वर्षा के जरिए ही हासिल होता है। लगभग 800 मिलियन लोग गांवों में निवास करते हैं और वे कृषि पर ही निर्भर हैं, जो कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का 14 प्रतिशत है। अगर मानसून असफल रहता है तो देश के विकास और अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। सामान्य से ऊपर मानसून रहने पर कृषि उत्पादन और किसानों की आय दोनों में बढ़ोतरी होती है, जिससे ग्रामीण बाजारों में उत्पादों की मांग को बढ़ावा मिलता है। अच्छी बारिश न सिर्फ कृषि क्षेत्र के लिए जरूरी है, बल्कि इससे उद्योग जगत में भी बहार आती है। मालूम हो कि खेत से लेकर खाने की टेबल तक एक बड़ी चेन जुड़ी होती है। ऐसे में कमजोर मानसून पूरी वैल्यू चेन को बिगाड़ सकता है। इससे पूरी आर्थिक गतिविधियां गड़बड़ा जाती हैं। लेकिन जब वर्ष 2024 में एक अच्छा मानसून संभावित है, तब सरकार को किसानों को मुस्कुराहट देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभप्रद बनाने के लिए रणनीतिक कदम आगे बढ़ाना चाहिए। 

बहरहाल, देश में अच्छा मानसून विकास की रेखा माना जाता है क्योंकि मानसून का प्रभाव देश के करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी और रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है। माना जा रहा है कि चार महीने की मानसूनी बारिश अर्थव्यवस्था के लिए मरहम साबित हो सकती है। देश की आधे से ज्यादा फसलें इसी मानसूनी बारिश से लहलहाती हैं। फसलों की पैदावार से खाने-पीने की चीजों के दाम तय होते हैं। पैदावार बढिय़ा रही तो खाद्य पदार्थों की कीमतें कम रहेंगी। इससे आम आदमी को राहत मिलेगी। 

मानसूनी बारिश से खरीफ फसलों को लाभ तो होता ही है, साथ ही रबी सीजन यानी सर्दियों में बोई जाने वाली फसलों के लिए भी मिट्टी को नमी मिल जाती है। बढिय़ा बारिश से देश के जलाशयों में पानी भरता है, जिससे किसानों को खेती के लिए पानी मिल पाता है। इतना ही नहीं, आर.बी.आई. ब्याज दरें तय करते समय मानसून के प्रदर्शन, खाद्य उत्पादन और महंगाई दर पर ध्यान देता है। इसलिए अच्छे मानसून से ब्याज दरों में भी गिरावट आती है और कर्ज सस्ता होता है। नि:संदेह आर्थिक विकास दर को बढ़ाने में अच्छे मानसून की अहम भूमिका होता है। इससे जहां महंगाई नहीं बढ़ेगी, वहीं विकास दर बढ़ेगी। साथ ही, अच्छे मानसून से किसानों की फसल अच्छी होने से क्रयशक्ति बढ़ेगी और उनके कदम बाजारों की चमक बढ़ाएंगे। 

इस समय देश में महंगाई अहम मुद्दा है। वर्तमान समय में अगर बात करें तो देश के किसानों को खेती करना काफी महंगा पड़ रहा है। बीज, खाद और डीजल के दामों में तेजी के बाद किसानों के लिए खेती करना बड़ा मुश्किल हो गया है। बढ़ती हुई महंगाई से किसानों की रुचि खेती के प्रति दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है क्योंकि किसानों के लिए खेती अब घाटे का सौदा लग रहा है। किसानों का मानना है कि अब खेती से लागत निकलना भी असंभव सा हो रहा है। बता दें डीजल की कीमत बढऩे से किसान पहले ही परेशान हैं। खेती-किसानी का ज्यादातर काम ईंधन पर निर्भर है। खेत की जुताई से लेकर कटाई और फसल को मंडी ले जाने तक किसान ट्रैक्टर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन महंगा डीजल किसानों के सामने पहले से ही बड़ी समस्या बना हुआ है। ऐसे में खराब मानसून से हालात और जटिल हो सकते थे। 

कम पैदावार से अनाज, फल-सब्जी और दूध जैसी रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों के दाम और बढ़ सकते हैं। लेकिन अच्छे मानसून से महंगाई पर लगाम लग सकती है। साथ ही खाद, बीज, ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर गुड्स और फाइनांस कंपनियों के शेयर भी डिमांड में रहते हैं। इस तरह अच्छा मानसून शेयर बाजार पर भी प्रभाव डालता है। मानसून के कारण जलाशय लबालब भर जाते हैं जो हाइड्रोपावर तथा सिंचाई के लिए अहम हैं। साफ है, जिस तरह मानसून देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है, उसी तरह कॉरपोरेट कंपनियों से लेकर आम कंज्यूमर तक हर किसी की पर्सनल इंकम और सेविंग्स पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। यकीनन देश की अर्थव्यवस्था के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक सुकून भरा परिदृश्य उभरता दिखाई दे रहा है। मॉनसून तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही है।-रवि शंकर  
 


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