क्या ‘इंडिया’ मतभेद भुलाकर एकता बनाए रख पाएगा

punjabkesari.in Wednesday, Apr 03, 2024 - 05:04 AM (IST)

एकता में फूट या फूट में एकता? चकित हैं? बिल्कुल। क्योंकि ‘इंडिया’ गठबंधन लोकतंत्र बचाओ के नाम पर रविवार को दिल्ली में एकजुट हुआ, जहां पर उसने भाजपा के विरुद्ध वैचारिक आधार तैयार और प्रतिस्पर्धी महत्वाकांक्षाओं से समझौता किया तथा उसका एकमात्र उद्देश्य 2024 में भाजपा को सत्ता से बाहर करना है। इस रैली में कांग्रेस के माता-पुत्र सोनिया-राहुल, कांग्रेस अध्यक्ष खरगे, राकांपा के पवार, सपा के अखिलेश, राजद के तेजस्वी, पी.डी.पी. की मुफ्ती तो नैशनल कांफ्रैंस के अब्दुल्ला आदि ने जोर-शोर से भाजपा पर संवैधानिक लोकतंत्र की हत्या करने और मोदी पर निरंकुश शासन करने का आरोप लगाया, किंतु यह उनके लिए परीक्षा की घड़ी है। हालांकि इस रैली में उन्होंने भाईचारा दिखाया और लगता है उन्हें इन चुनावों के लिए एक सांझा उद्देश्य मिल गया है। 

नि:संदेह ‘इंडिया’ गठबंधन को ‘आप’ नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और झारखंड मुक्ति मोर्चा  नेता और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से एक झटका लगा, किंतु इससे उन्हें ‘इंडिया’ गठबंधन को मजबूत करने और इस मुद्दे को जनता तक ले जाने का अवसर भी मिला। किंतु बड़ा प्रश्न है कि क्या वे चुनावों से पूर्व राजनीतिक वातावरण को प्रभावित कर पाएंगे क्योंकि न्यायालय दोनों गिरफ्तारियों के बारे में गुणागुण के आधार पर निर्णय लेगा क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय और सी.बी.आई. ने विपक्षी नेताओं के विरुद्ध अनेक मामले दायर किए हैं। 

दूसरा, क्या ‘इंडिया’ गठबंधन मतदाताओं को यह विश्वास दिला पाएगा कि भाजपा जांच एंजैंसियों को औजार बना रही है और आयकर विभाग कांग्रेस के खातों को सील कर रहा है? क्या वह चुनावी बॉण्ड को चुनावी मुद्दा बना पाएगा? क्या उनके पास कोई सांझा मुद्दा है, जो उन्हें एकजुट रख सकता है? क्या वे केवल भाजपा के प्रति घृणा के कारण एकजुट हुए हैं, जबकि वे अपने-अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए एक-दूसरे के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं? पहले ही तृणमूल कांग्रेस की ममता ने कांग्रेस-माकपा पर आरोप लगाया है कि वह भाजपा के हित के लिए काम कर रहे हैं और स्पष्ट कर दिया कि पश्चिम बंगाल में गठबंधन नहीं होगा। 

इसके अलावा गठबंधन में सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर सहमति नहीं है और जमीनी स्तर पर चुनाव प्रचार में भी कोई समन्वय नहीं है। विशेषकर उन राज्यों में, जहां पर वे गठबंधन में हैं। उन्हें अभी वैकल्पिक शासन और राजनीति के लिए एजैंडा निर्धारित करना है। दूसरा, सम्यक प्रक्रिया का पालन किस तरह से किया जाएगा, जबकि ई.डी. द्वारा विपक्ष के नेताओं के दरवाजे खटखटा कर चुनावी प्रक्रिया को बाधित करने की चिंता व्यक्त की जा रही है तथा दूसरी ओर सी.बी.आई. और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उन नेताओं को दोषमुक्त घोषित किया जा रहा है, जो भाजपा के सहयोगी बन गए। राकांपा के प्रफुल्ल पटेल का एयर ‘इंडिया’ घोटाला इसका उदाहरण है। 

क्या भाजपा मतदाताओं को यह विश्वास दिला पाएगी कि प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई राजनीतिक विद्वेष नहीं है, जैसा कि विपक्ष प्रचारित कर रहा है। दूसरा, ‘इंडिया’ गठबंधन में तनाव अंतर्निहित है क्योंकि क्षेत्रीय दल ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस विरोधी रहे हैं। तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के विरुद्ध सफल रही है। इसकी तुलना में तमिलनाडु और बिहार में वह क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनी है, हालांकि इन राज्यों के कांग्रेसी नेताओं ने इसका विरोध किया है। 

यही स्थिति महाराष्ट्र में है, जहां पर राकांपा और शिवसेना-उद्धव गुट कांग्रेस को सीटों के बंटवारे में अपनी मनमर्जी करने नहीं देंगे। बिहार में स्थानीय कांग्रेसी नेताओं में गुस्सा, निराशा, और संदेह पनप रहा है क्योंकि उनका मानना है कि उनके साथ विश्वासघात किया गया है। उत्तर प्रदेश में सपा ने सौदेबाजी की और सुनिश्चित किया कि सीटों के बंटवारे में उसके हितों की रक्षा हो। कांग्रेस जानती है कि संसद में ठीक-ठाक संख्या के लिए उसे अपने सहयोगी दलों और ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ रहना होगा। 

‘इंडिया’ गठबंधन ने अभी न्यूनतम सांझा कार्यक्रम या संयुक्त प्रचार के बारे में कोई चर्चा नहीं की है। इस गठबंधन में अनेक विरोधाभास हैं और इस स्तर पर अनेक मतभेद देखने को मिल रहे हैं। क्षेत्रीय दलों के लिए चुनावों में कांग्रेस एक उपयोगी सहयोगी है, किंतु वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि कांग्रेस कहीं मजबूत न हो जाए। मोदी की भाजपा सुसंगठित है। चुनावी गठबंधन में ‘इंडिया’ गठबंधन से बहुत आगे है और इसका नेतृत्व एक सुदृढ़ राजनेता द्वारा किया जा रहा है। चाहे प्रवर्तन निदेशालय, सी.बी.आई. और आयकर विभाग पार्टी के पक्ष में कार्य कर रहे हों, यह एक बहस का मुद्दा है, किंतु क्या ये मुद्दे मतदाताओं का ध्यान आकर्षित करते हैं और वोट के रूप मे बदलते हैं? इन सब प्रश्नों का ‘इंडिया’ गठबंधन को उत्तर देना होगा। 

संविधान में दलों और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में भी चुनाव पूर्व या चुनाव पश्चात गठबंधन का कोई उल्लेख नहीं है। इसके अलावा गठबंधन केवल मोदी विरोध के नाम पर नहीं बनाया जा सकता। इसके लिए एक रूपरेखा तैयार करनी पड़ती है। हालांकि ‘इंडिया’ गठबंधन में इन्क्लूसिव अर्थात समावेशी शब्द शामिल है, किंतु भाजपा ने इसे हड़प लिया है और वह इसकी तुलना तुष्टीकरण की राजनीति से करने लगी है। उसे ऐसी भाषा और रूपरेखा बनानी होगी जो भाजपा की चुनावी मशीन और संसाधनों का मुकाबला कर सके। मोदी पहले ही हिन्दुत्व का मुद्दा उठाकर चुनावी मैदान में उतर आए हैं और राष्ट्रवाद और देश के आत्मसम्मान को मुद्दा बना रहे हैं। विरोधाभास के इस गठबंधन में, जहां पर रणनीतियां चुनावी लाभ के लिए बनाई जा रही हैं, वहां विपक्ष को दूरदर्शिता और लचीलापन अपनाना पड़ेगा और इस दिशा में उसने एक छोटा-सा कदम उठाया है और यदि वे सही दिशा में बढऩा चाहते हैं तो उन्हें आगे बढऩा होगा क्योंकि एक कमजोर विपक्ष चाहे उसका कोई भी नाम ले कमजोर ही रहेगा। 

भाजपा का आत्मविश्वास इस बात से भी बढ़ जाता है कि अधिकतर राज्यों में उनकी या उनके सहयोगी दलों की सरकार है, साथ ही उन्हें इस बात को भी ध्यान रखना होगा कि अक्सर मत पूर्णत: अंतरित नहीं होते। इसलिए सीटों का बंटवारा महत्वपूर्ण होगा। इसके अलावा राजग के 39 दलों में से 22 दलों की संसद में कोई भी सीट नहीं है, किंतु यह उनके सामाजिक समूहों को एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। उत्तर प्रदेश में भाजपा गठबंधन बड़ा दल है किंतु उसमें अपना दल और निषाद दल भी शामिल हैं और इन दलों को उनकी शक्ति के कारण नहीं, अपितु गैर वर्चस्व वाले पिछड़े समुदायों को एक संदेश देने के लिए राजग में शामिल किया गया है। पार्टी में केन्द्रीकरण के कारण भाजपा में राज्य स्तर के नेताओं का वर्चस्व कम हुआ और यह पार्टी के लिए परेशानी पैदा कर सकता है। दो कार्यकाल में सरकार में रहने के बाद भाजपा असहज है, इसलिए उसे नई सोच और विचारों की आवश्यकता है। कर्नाटक में भाजपा की हार हुई और पांच दक्षिणी राज्यों में अपनी जगह नहीं बना पाई है, जहां से 130 सांसद चुनकर आते हैं। 

मतदाताओं के लिए 27 दलों या 39 दलों का गठबंधन महत्वपूर्ण नहीं। वे जानते हैं कि भाजपा नंबर एक है और कांग्रेस इस मामले में उससे बहुत दूर है। यह देखना है कि क्या ‘इंडिया’ गठबंधन आंतरिक मतभेदों को दूर कर एकता बनाए रख पाता है और राहुल के मैच फिक्सिंग जैसे शब्दों को नजरंदाज कर सकता है? मैच फिकिं्सग और यदि वह जीतती है तो वह संविधान बदल देगी, पूरे देश में आग लगाने जा रही है, जैसे शब्द जाल से अलग हो पाता है। लोकतांत्रिक शासन अधिक जटिल बनता जा रहा है, इसलिए राजग और ‘इंडिया’ गठबंधन को सीटों के बंटवारे और अपने अहम को दूर कर लोकप्रिय और दूरदर्शिता के साथ लोगों के हितों की रक्षा करने के बीच संतुलन बनाना होगा। हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि भारत के निर्माण का व्यवसाय गणित का विषय नहीं, अपितु राजनीतिक विषय है। देखना यह है कि इस खेल में कौन विजयी होता है।-पूनम आई. कौशिश


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