जनसंख्या के मामले में हमें चीन से संज्ञान लेना चाहिए

punjabkesari.in Thursday, Apr 11, 2024 - 06:02 AM (IST)

ऐसे लोग और यहां तक कि राजनीतिक नेता भी असामान्य नहीं हैं, जो मानते हैं कि हमारी बड़ी आबादी सभी बीमारियों का मूल कारण है और सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के लिए कड़े कदम उठाने चाहिएं। यह भी मिथक है कि किसी विशेष समुदाय की जनसंख्या वृद्धि दर बहुत अधिक है और वह एक दिन बहुसंख्यक समुदाय से आगे निकल सकती है। इससे अधिक सच्चाई से कुछ भी दूर नहीं हो सकता। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमने पिछले 13 वर्षों से जनगणना नहीं की है और सरकार उचित स्पष्टीकरण दिए बिना इसमें देरी कर रही है। इसने हमें विभिन्न योजनाओं की रूपरेखा बनाने और उन्हें तैयार करने के लिए 2011 के डाटा का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया है, जो कि काफी पुराना है। फिर भी ऐसी विश्वसनीय एजैंसियां और विशेषज्ञ हैं जो इस बात पर जोर देते हैं कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या की आशंका एक मिथक है। बल्कि अब समय आ गया है कि देश में घटती जनसंख्या वृद्धि दर पर चिंता की जाए।

लैंसेट, एक अत्यधिक विश्वसनीय शोध संगठन, हाल ही में विश्व जनसंख्या के रुझान पर एक रिपोर्ट लेकर आया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की कुल प्रजनन दर (टी.एफ.आर.) या एक महिला से पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या में पिछली सदी में गिरावट देखी जा रही है। 1950 में प्रजनन दर प्रति महिला 6.18 बच्चे थी, जो 1980 में घटकर 4.60 हो गई और 2021 में घटकर 1.91 रह गई। 1.9 पर अनुमानित वर्तमान टी.एफ.आर. 2.1 के आवश्यक प्रतिस्थापन प्रजनन स्तर से नीचे है। अनुमान है कि 2050 तक इसमें प्रति महिला 1.29 बच्चों की तीव्र गिरावट आएगी। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि दर पहले ही ‘हम दो, हमारे दो’ नारे से नीचे गिर गई है, जिसे लगभग आधी सदी पहले सरकार द्वारा गहन रूप से प्रचारित किया गया था।
अध्ययन में कहा गया है कि भारत पहले से ही प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर गया है, जो किसी आबादी के लिए एक पीढ़ी को दूसरी पीढ़ी से बदलने के लिए आवश्यक है।

टी.एफ.आर. में गिरावट कई कारणों से है लेकिन प्राथमिक कारण साक्षरता का प्रसार और शिशुओं तथा बच्चों के बीच मृत्यु दर में गिरावट है। आॢथक विचार एक अन्य प्रमुख कारक है, जिस कारण माता-पिता को अधिक बच्चों का पालन-पोषण करना मुश्किल लगता है। शहरी युवाओं में या तो एक ही बच्चा पैदा करने, अथवा फिर वह भी नहीं पैदा करने का चलन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। विवाह योग्य उम्र के लड़के और लड़कियां या तो अपनी शादी में देरी करना पसंद करते हैं, अथवा 30-35 वर्ष की आयु पार करने तक बच्चे पैदा न करने का फैसला करते हैं। विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि शादी की उम्र में देरी के साथ, पहली गर्भावस्था की औसत उम्र 20 के मध्य से घटकर 30 के मध्य तक हो गई है। अन्य कारणों में महिला साक्षरता में वृद्धि और महिला कार्यबल भागीदारी शामिल हैं।

यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है और इसका समाज में जनसांख्यिकी और संतुलन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इस तरह की प्रवृत्ति देश में बढ़ती उम्र की आबादी, श्रम बल की कमी और लैंगिक प्राथमिकताओं के कारण संभावित सामाजिक असंतुलन जैसी चुनौतियां पैदा करेगी। भारत को वर्तमान में दुनिया की सबसे युवा आबादी होने का गौरव प्राप्त है। नवीनतम अनुमान के अनुसार, हमारी औसत आयु 27 वर्ष है। इसका मतलब यह है कि भारत की आधी आबादी 27 साल से कम उम्र की है, जबकि आधी आबादी 27 साल से अधिक की है। इसमें देश के बढऩे और विकसित होने की अपार संभावनाएं हैं। चीन में औसत आयु लगभग 38 वर्ष है और जापान में, जो सबसे खराब मानी जाती है, 49.1 वर्ष है। स्पष्ट रूप से हमें एक बड़ा लाभ है लेकिन यह खिड़की हमारे लिए लगभग 30 वर्षों के लिए ही खुली है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगले 30-40 वर्षों में हम बुजुर्ग आबादी में परिवर्तित हो जाएंगे।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यू.एन.एफ.पी.ए.) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत की बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और 2050 तक देश में बच्चों (0-14 वर्ष की आयु) की संख्या को पार कर सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के 1.1 अरब लोग हैं, जो वैश्विक आबादी का 13.9 प्रतिशत है, जो कि 7.9 अरब है। इसमें कहा गया है कि 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 50 वर्ष से अधिक आयु के 149 मिलियन लोग रहते हैं, जो देश की आबादी का 10.5 प्रतिशत है। 2050 तक कुल जनसंख्या में बुजुर्गों की हिस्सेदारी दोगुनी होकर 20.8 प्रतिशत यानी 347 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है।

यू.एन.एफ.पी.ए. की रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश दक्षिणी राज्यों और हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे चुनिंदा उत्तरी राज्यों में 2021 में राष्ट्रीय औसत की तुलना में बुजुर्ग आबादी की हिस्सेदारी अधिक है। हमें चीन से सबक सीखना चाहिए, जिसने एक बच्चे की नीति को सख्ती से लागू किया था, जिसके तहत एक से अधिक बच्चे रखने वाले माता-पिता को दंडित किया जाता था या राज्य के लाभों से वंचित किया जाता था। इस नीति के कारण इसकी जनसंख्या में भारी गिरावट आई, जिससे गंभीर प्रभाव पड़े। चीन ने अब इस नीति को उलट दिया है और वह अपनी योग्य आबादी को दो से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। इसलिए जनसंख्या वृद्धि को कम करने के कदमों की वकालत करने वालों को अपने विचारों पर पुनॢवचार करना चाहिए। -विपिन पब्बी


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