आवारा कुत्तों के काटने से लगातार हो रही मौतें

punjabkesari.in Tuesday, Mar 22, 2016 - 01:19 AM (IST)

विश्व में सबसे अधिक लोग भारत में ही आवारा कुत्तों के काटने के शिकार होते हैं और यहां इनकी लगातार बढ़ रही संख्या बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। इनसे होने वाली भयानक बीमारी ‘रैबीज’ से विश्व भर में होने वाली मौतों में से 36 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में ही होती हैं।

 
रैबीज के ज्यादा केस आवारा कुत्तों के काटने से ही होते हैं। यदि रैबीज का वायरस व्यक्ति की केंद्रीय स्नायु प्रणाली में प्रवेश कर जाए तो इससे पैदा संक्रमण लगभग असाध्य होता है और रोगी की बहुत ही दर्दनाक मौत होती है। 
 
22 फरवरी, 2016 को झारखंड के चंदवा में आवारा एवं पागल कुत्तों ने 15 लोगों को, 16-17 मार्च को महाराष्टï्र के उल्हास नगर में 18 लोगों को और हिमाचल के नाहन में 19-20 मार्च को आधा दर्जन लोगों को काटा। आवारा कुत्तों व रैबीज के खतरे से मुक्त करने तथा पीड़ित गरीब लोगों को आॢथक सहायता प्रदान करने के लिए काम कर रही एन.जी.ओ. ‘स्ट्रे डॉग फ्री मूवमैंट (एस.डी.एफ.एम.)’ ने इस ओर केंद्र सरकार का ध्यान दिलाने के लिए 19 मार्च को नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर सत्याग्रह किया। केरल के प्रसिद्ध उद्योगपति व एस.डी.एफ.एम. के चेयरमैन कोचूसेफ चितिलापल्ली के अनुसार,‘‘आवारा कुत्ते आज भारत में एक ज्वलंत समस्या बन चुके हैं जो हर साल लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं।’’ 
 
‘‘विभिन्न एन.जी.ओ. तथा लोगों के समूह सरकार से इस समस्या के निवारण की मांग करते रहते हैं परंतु चूंकि कुत्ते आमतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर तथा समाज के निर्धन वर्ग के लोगों को ही अपना शिकार बनाते हैं और कारों में सफर करने वाले धनाढ्यों एवं नेतागणों को ये अपना शिकार नहीं बना पाते इसलिए अभी तक सरकार का इस ओर ध्यान कभी नहीं गया।’’ 
 
केरल में रोजाना औसतन 100, गुजरात में 730 व जम्मू-कश्मीर में कुत्तों के काटने के 70 केस होते हैं। दिल्ली में गत वर्ष 64,000 लोगों को कुत्तों ने काटा। देश की आई.टी. राजधानी बेंगलूरू में 2.5 लाख कुत्ते हैं। चेन्नई, मुम्बई, कोलकाता, चंडीगढ़ या गोवा में भी स्थिति इससे भिन्न नहीं है। 
 
‘‘पिछले 15 वर्षों में आवारा कुत्तों की संख्या में वृद्धि के कारणों की जांच से सामने आया है कि ‘एनिमल बर्थ कंट्रोल (डॉग) नियम 2001’ में बताए गए इस समस्या के एकमात्र हल ‘कुत्तों की नसबंदी व टीकाकरण’ का नियम लागू करने में स्थानीय निकायों के असफल रहने से यह कार्यक्रम पूरी तरह फेल हो चुका है।’’ 
 
‘‘अत: उक्त नियमों में यथाशीघ्र संशोधन करने की आवश्यकता है। यदि सत्याग्रह के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों ने इस समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया तो हम धरनों और प्रदर्शनों का अभियान तेज कर देंगे।’’
 
आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं से जुड़ा एक दुखद पहलू यह भी है कि ज्यादातर मामलों में सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए इंजैक्शन उपलब्ध नहीं होते जिसके कारण या तो पीड़ित इलाज से वंचित रह जाता है और या फिर उसे प्राइवेट दुकानों से बहुत महंगे दामों पर ये इंजैक्शन खरीदने पड़ते हैं। कई बार तो इंजैक्शन खरीद न पाने के कारण या इंजैक्शन मिलने में देरी से समय पर चिकित्सा न होने और लापरवाही के कारण पीड़ित की अकाल मृत्यु भी हो जाती है। 
 
इसी कारण सुप्रीमकोर्ट ने 18 मार्च, 2016 को केंद्र सरकार से यह पूछा कि कुत्ते के काटने के पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा देने के क्या मानदंड हैं? विशेष रूप से उस स्थिति में जबकि पीड़ित की मृत्यु हो गई हो। जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने जानना चाहा कि  मुआवजा पाने के लिए पीड़ित को किस से गुहार करनी चाहिए और मुख्यमंत्री राहत कोष से ऐसे मामलों में मुआवजा देने के क्या मानदंड हैं?
 
आवारा कुत्तों की लगातार बढ़ रही समस्या के संबंध में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी स्वीकार किया है कि ‘‘इनके नसबंदी आप्रेशन संबंधी प्रयास अपर्याप्त हैं।’’ अत: देश में ये प्रयास तेज करने की आवश्यकता है। जब तक केंद्र और राज्य सरकारें कुत्तों की बढ़ती संख्या और उनके काटने से होने वाली अकाल मौतों पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कार्रवाई नहीं करतीं तब तक इस समस्या से मुक्ति मिल पाना मुश्किल है और इस स्थिति में आवारा कुत्तों के काटने से होने वाली मौतें लगातार बढ़ती ही जाएंगी।
 

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