दलित संगठनों का भारत बंद 9 लोग मरे, हिंसा, तोड़फोड़ व कर्फ्यू

punjabkesari.in Tuesday, Apr 03, 2018 - 02:06 AM (IST)

इन दिनों देश में विभिन्न मुद्दों को लेकर धरनों, प्रदर्शनों का सिलसिला लगातार जारी है। एक समस्या के समाप्त होने से पहले ही दूसरी समस्या खड़ी हो जाती है। नोटबंदी और जी.एस.टी. के साथ अब अन्य समस्याओं ने देश के सामने संकट खड़े कर दिए हैं। 

इन दिनों जहां सी.बी.एस.ई. की विभिन्न कक्षाओं के प्रश्रपत्र लीक होने से एक बड़े छात्र वर्ग में रोष व्याप्त है,वहीं सुप्रीमकोर्ट द्वारा 20 मार्च को अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति (एस.सी./एस.टी.) अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 (जिसे 11 सितम्बर, 1989 को भारतीय संसद ने पारित किया था) के अंतर्गत अपराध के सिलसिले में जारी नए दिशा-निर्देशों को लेकर दलित संगठनों में भारी रोष व्याप्त हो गया है। 

इस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि ‘‘एस.सी./ एस.टी. अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में बगैर उच्चाधिकारी की अनुमति के लोकसेवकों की फौरन गिरफ्तारी नहीं होगी, गिरफ्तारी से पहले आरोपों की प्रारंभिक जांच जरूरी है तथा गिरफ्तारी से पहले जमानत भी मंजूर की जा सकती है।’’ सुप्रीमकोर्ट ने माना कि एस.सी./ एस.टी. अधिनियम का दुरुपयोग हो रहा है तथा इसने गिरफ्तारी से पहले मंजूर होने वाली जमानत में रुकावट को भी खत्म कर दिया। ऐसे में अब दुर्भावना के तहत दर्ज कराए गए मामलों में अग्रिम जमानत भी मंजूर हो सकेगी। 

सुप्रीमकोर्ट के उक्त अधिनियम में तत्काल गिरफ्तारी का प्रावधान हटाने के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया। अनेक राज्यों में शिक्षा संस्थाओं, बैंकों, सार्वजनिक परिवहन आदि सेवाओं को बंद कर दिया गया, परीक्षाएं स्थगित की गईं, व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे और पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध किए गए, फिर भी यह आंदोलन कुछ जगहों पर हिंसक रूप धारण कर गया। इससे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, झारखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में जनजीवन अत्यधिक प्रभावित हुआ। दक्षिण भारत में भी इसका कुछ असर देखा गया। इन प्रदर्शनों के दौरान विभिन्न राज्यों में पथराव, ङ्क्षहसा और आगजनी तथा तोडफ़ोड़ की घटनाओं में जान-माल की भारी क्षति हुई। कम से कम 9 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और अनेक लोग घायल हो गए। 

अनेक स्थानों पर ट्रैक बाधित करके रेलगाडिय़ां रोक कर तोड़-फोड़ की गई, रेल पटरियां उखाड़ दी गईं, राजमार्गों और सड़कों को जाम किया गया। अनेक स्थानों पर स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए प्रशासन को कफ्र्यू, हवाई फायरिंग, आंसू गैस और लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा। इतना ही नहीं, 1 अप्रैल को लखनऊ में ‘भारतीय संविधान एवं आरक्षण बचाओ महा रैली’ का आयोजन करके भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने अपनी ही सरकार के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया और कहा कि ‘‘आरक्षण कोई भीख नहीं बल्कि प्रतिनिधित्व का मामला है।’’ इस माहौल के बीच एस.सी./एस.टी. अधिनियम पर सुप्रीमकोर्ट के  हालिया फैसले के बाद विपक्ष की आलोचना का शिकार हो रही नरेंद्र मोदी सरकार ने 2 अप्रैल को ही सुप्रीमकोर्ट में रिव्यू पटीशन दायर करके पहले वाले स्टेटस को बहाल करने की मांग की परंतु इसने अरजैंट सुनवाई से इंकार कर दिया। 

कांग्रेस के नेतृत्व में विरोधी दलों के अलावा राजग के कुछ सहयोगी दलों तथा दलित और पिछड़े वर्ग से आने वाले जन प्रतिनिधियों ने भी मोदी सरकार से इस संबंध में रिव्यू पटीशन दाखिल करने की मांग की थी तथा उक्त फैसले पर अप्रसन्नता व्यक्त की थी। 28 मार्च को लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के नेतृत्व में दलित समुदाय के मंत्रियों और सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी जिसके बाद सरकार ने इस संबंध में रिव्यू पटीशन दायर करने का निर्णय लिया था। अब जबकि सरकार द्वारा पुनरीक्षण याचिका दायर कर दी गई है, सुप्रीमकोर्ट को इस मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करके फैसला करना चाहिए जिससे समाज में व्याप्त असंतोष समाप्त हो सके और भारत के शत्रु देश हमारी इस स्थिति का अनुचित लाभ न उठा सकें।—विजय कुमार 


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Pardeep

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