कार्यक्रम में नाचने पर दलित युवक की पीट-पीट कर हत्या

punjabkesari.in Monday, May 06, 2024 - 05:03 AM (IST)

माना जाता है कि प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ रहना बेहद कठिन होता है क्योंकि वर्षों के अनुसंधान, प्रयास और लम्बे प्रशिक्षण के पश्चात वे सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसे में कभी-कभी वे अहंकारी हो जाते हैं परंतु भारत में कुछ वर्ग के लोग मात्र इसलिए अपने आप को दूसरों से बेहतर समझते हैं क्योंकि वे किसी विशेष परिवार/ जाति में पैदा होने के आधार पर समाज को देखते हैं।  हालांकि छुआछूत और जाति आधारित भेदभाव मिटाने के लिए महात्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषों ने अनथक प्रयास किए। हमारा संविधान भी सबको एक समान मानता है परंतु स्वतंत्रता के 77 वर्ष बाद भी देश में अनेक स्थानों पर दलित समुदाय से भेदभाव जारी है और यहां तक कि सामान्य मनोरंजन की गतिविधियों में उनका भाग लेना भी चंद लोगों को चुभता है :

1 मई को महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले के कोपर्डी गांव में ‘विट्ठल’ उर्फ ‘नीतिन कांतिलाल शिंदे’ नामक एक हिन्दू महार दलित समुदाय से संबंधित युवक लोक नृत्य कार्यक्रम ‘तमाशा’ में शामिल होने गया और वहां कलाकारों के साथ मिल कर नाचने लगा। यह देख कर वहां मौजूद 3 तथाकथित उच्च जातीय लोगों ने विट्ठल को एक श्मशान घाट पर ले जाकर उसके कपड़े उतरवा दिए और बुरी तरह मारपीट की। चूंकि उन्होंने विट्ठल का मोबाइल फोन भी छीन लिया था इसलिए वह सहायता के लिए किसी को फोन भी नहीं कर सका। इस घटना से विट्ठल इस कदर आहत हुआ कि घर आकर उसने आत्महत्या कर ली।

उक्त घटना इस तथ्य का मुंह बोलता प्रमाण है कि आज भी हमारे देश में तथाकथित उच्च जातीय लोगों के एक वर्ग को दलितों का आगे बढऩा सहन नहीं होता। देश में आरक्षण और समानता की बात तो की जाती रहती है परंतु जब तक हमारी मानसिकता में सुधार नहीं होगा तब तक ये बातें बातें ही बनी रहेंगी। समाज के उच्च वर्ग को मानने की यह कैसी मानसिकता है कि अपने से किसी भी कमजोर को या दलित को पकड़ कर पीट दिया जाए। ऐसा व्यवहार करना और सामाजिक स्थिति या जन्म के आधार पर किसी को बड़ा या छोटा समझना कदापि सही  विचारधारा का द्योतक नहीं है। क्या अब इस तरह का संकीर्ण मानसिकता का प्रदर्शन समाप्त करने का समय नहीं आ गया है?

बुनियादी तौर पर यह लोगों में व्याप्त हीन भावना की समस्या है जो अपने को दूसरों से बेहतर और दूसरों को अपने से तुच्छ मानते हैं जबकि आज के युग में सबको समानता की नजर से देखना समय की सबसे बड़ी जरूरत है। जब तक लोगों के मन में संतुष्टिï, शांति और स्थिरता नहीं है तब तक वे दूसरों को अपने से तुच्छ समझने की भूल ही करते रहेंगे और अपने भीतर आत्मविश्वास आने पर ही दूसरों को अपने बराबर देख सकेंगे। आर्थिक स्वतंत्रता तो बाद की बात है उससे भी पहले सब लोगों को प्रत्येक इंसान के प्रति समानता और आदरभाव रखने की शिक्षा देनी पड़ेगी। यह शिक्षा सिर्फ स्कूलों में ही नहीं बल्कि समाज में भी देनी होगी और तभी इस तरह की घटनाओं पर भी रोक लगेगी।


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