मरने पर कई लोगों को जीवन दान देने वाली चंद महान विभूतियां

punjabkesari.in Thursday, May 02, 2024 - 05:01 AM (IST)

भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख लोगों की मौत दिल, जिगर या फिर किडनी फेल हो जाने के कारण अंगदानियों की कमी के चलते होती है। कई बार किसी दुर्घटना में व्यक्ति के ‘ब्रेन डैड’ हो जाने पर उसका बचना कठिन होता है। तब ऐसे लोगों के परिजनों द्वारा दान किए उनके अंग किसी दूसरे मृत्यु किनारे पड़े रोगी का जीवन बचा सकते हैं। दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप होने वाली मौतों में से बड़ी संख्या ‘ब्रेन डैथ’ के कारण होती है अर्थात सिर पर चोट लगने के कारण हुई मौत। ‘ब्रेन डैड’ व्यक्ति का लिवर तीन लोगों के काम आ सकता है। दान की गई त्वचा पांच वर्ष तक सुरक्षित रहती है जो तेजाब हमले, आतिशबाजी के शिकार या जले लोगों के काम आ सकती है। 

हालांकि भारत में अंगदान का प्रचलन बहुत कम है परन्तु ऐसे जागरूक लोग यहां अवश्य मौजूद हैं जो अपनी पीड़ा में भी विवेक से काम लेते हुए अपने दिवंगत प्रियजनों के अंगों का दान कर दूसरों को नवजीवन प्रदान करते हैं, जिनके चंद ताजा उदाहरण निम्न में दर्ज हैं : 

* 4 मार्च, 2024 को मात्र 26 वर्ष की आयु में इस संसार को अलविदा कहने वाले हरियाणा के वल्लभगढ़ जिले के ‘विजय’ के ‘ब्रेन डैड’ हो जाने पर दुख की घड़ी में भी उनके परिजनों ने उनके अंगदान करने का निर्णय लिया और उनके हृदय, लिवर व किडनी तीन अलग-अलग जरूरतमंद रोगियों के शरीर में प्रत्यारोपित करके उन्हें नवजीवन प्रदान किया। 
* 15 मार्च को दिल्ली के ‘सर गंगा राम अस्पताल’ में किडनी प्रत्यारोपण के लिए भर्ती शिवपुरी (मध्य प्रदेश) के रहने वाले ‘राजेश’ को उनके पिता की किडनी प्रत्यारोपित की जानी थी परंतु इससे पहले ही गंभीर ब्रेन स्ट्रोक से ‘राजेश’ की मौत हो गई लेकिन इस दुख की घड़ी में भी उनके पिता ‘राम सिंह’ ने ‘राजेश’ के अंगों को दान करने का फैसला किया जिससे हृदय तथा लिवर की तकलीफ से जूझ रहे 2 रोगियों को जीवनदान मिला।
* 18 मार्च को कैथल (हरियाणा) जिले के रहने वाले 20 वर्षीय ‘साहिल’ की मृत्यु के बाद उनके परिजनों द्वारा किए गए उनके हृदय और किडनी के अंगदान से 2 जरूरतमंदों को नवजीवन तथा 2 काॢनया के प्रत्यारोपण से 2 लोगों की आंखों को रोशनी मिली। 

* 21 मार्च को लुधियाना के  ‘अकाई अस्पताल’ में दाखिल किडनी रोग से पीड़ित एक महिला को एक ‘ब्रेन डैड’ व्यक्ति की किडनी मिलने से नया जीवन मिला।
* 26 मार्च को ओडिशा के खुर्दा जिले में सी.आर.पी.एफ. के जवान ‘कृष्ण चंद्र महाबोई’ के निधन के बाद उनके परिजनों ने उनके अंगदान कर  हृदय कलकत्ता के एक रोगी को और लिवर मुम्बई के एक अन्य रोगी को देने का फैसला किया। 

* 9 अप्रैल को मूल धंधुका (अहमदाबाद) के रहने वाले 52 वर्षीय ‘राजू भाई परमार’ के परिजनों द्वारा दान किए गए 2 किडनी, लिवर और 2 आंखों को विभिन्न अस्पतालों में दाखिल मरीजों में प्रत्यारोपण के लिए भेजा गया, जबकि उनकी त्वचा सिविल अस्पताल के स्किन बैंक में दान की गई।
* 22 अप्रैल को पी.जी.आई. एम.एस. रोहतक में ब्रेन डैड हो चुकी एक महिला के पति, बेटे और बेटी ने अपनी मां की यादों को जिंदा रखने का फैसला करते हुए उनकी किडनी, लिवर, फेफड़े और आंखें दान कर दीं, जिससे 4 लोगों को नई जिंदगी मिली।
* 27 अप्रैल को चेन्नई के ‘एम.जी.एम. हैल्थ केयर अस्पताल’ में उपचाराधीन एक पाकिस्तानी हृदय रोगी युवती के शरीर में एक 69 वर्षीय  ब्रेन डैड महिला का हृदय प्रत्यारोपित कराने के बाद वह खुशी-खुशी अपने देश लौटी।

उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले तक लोग खून दान करने से भी उसी तरह घबराया करते थे, जैसे आज अंगदान करने से घबराते हैं। हालांकि खून दान करने से शरीर में कोई कमजोरी नहीं आती तथा निकाले गए खून की कमी भी जल्दी ही पूरी हो जाती है। मृत शरीर को जलाने से वे अंग भी नष्ट हो जाते हैं, जिनमें जान होने के कारण उनसे किसी जरूरतमंद को नवजीवन दिया जा सकता है। अत: भारतीयों को ब्रेन डैड व्यक्ति या मृत्यु होने पर व्यक्ति के अंगों का दान कर देना चाहिए क्योंकि अंगदान से बड़ा कोई दान नहीं है। अत: लोगों को अपनी विचारधारा में बदलाव लाकर अपने सगे-संबंधियों और मित्रों-परिचितों को अंगदान की प्रथा शुरू करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।-विजय कुमार
                                                 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News