Earthquake In Space: न इमारत गिरी न धरती टूटी, फिर भी मच गया हड़कंप, सामने आया अंतरिक्ष के भूकंप का सच
punjabkesari.in Saturday, Apr 19, 2025 - 06:21 PM (IST)

नेशनल डेस्क: जब भी भूकंप की बात होती है, तो ज़हन में सबसे पहले हिलती ज़मीन, गिरती इमारतें और अफरा-तफरी का मंजर सामने आ जाता है। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि ऐसा भूकंप आया, जिसमें न धरती कांपी, न कोई दीवार टूटी — फिर भी वैज्ञानिकों की नींद उड़ गई! जी हां, ये है 'अंतरिक्ष भूकंप' यानी Spacequake — एक ऐसी रहस्यमयी घटना जो पृथ्वी की सतह पर नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में घटती है। लेकिन इसका असर हमारी डिजिटल दुनिया पर इतना बड़ा होता है कि GPS से लेकर सैटेलाइट तक सब गड़बड़ा सकते हैं। आखिर क्या है ये स्पेसक्वेक? क्यों यह भले ही आंखों से न दिखे, लेकिन तकनीक की दुनिया को हिला कर रख देता है? आइए, जानते हैं इस अदृश्य खतरे का पूरा सच।
क्या होता है स्पेसक्वेक?
ये कंपन धरती के मैग्नेटिक फील्ड में आते हैं, न कि ज़मीन पर
पृथ्वी के चारों ओर एक शक्तिशाली चुंबकीय ढाल होती है जिसे मैग्नेटोस्फीयर (Magnetosphere) कहते हैं। यह ढाल हमें अंतरिक्ष से आने वाली हानिकारक किरणों और सौर हवाओं (Solar Winds) से बचाती है। लेकिन जब यह सौर हवा इस चुंबकीय ढाल से टकराती है तो वह एक झटका देती है। यह झटका इतना तीव्र होता है कि पूरे चुंबकीय क्षेत्र में कंपन महसूस होते हैं — यही है स्पेसक्वेक।
स्पेसक्वेक बनते कैसे हैं?
जैसे रबर बैंड खिंचकर वापस झटका देता है, वैसे ही मैग्नेटोस्फीयर भी रिएक्ट करता है
जब सूर्य से निकली तेज़ गति की आयनित गैसें (ionized gases) पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से टकराती हैं तो वह उसे पीछे की ओर खींचती हैं। यह प्रक्रिया ऐसे होती है जैसे कोई रबर बैंड खींचकर अचानक छोड़ दिया गया हो। उस खिंचाव के बाद जब चुंबकीय क्षेत्र वापस झटका देता है, तो वह ऊर्जा पृथ्वी की ओर लौटती है और एक अदृश्य लेकिन शक्तिशाली कंपन पैदा करती है — जिसे हम स्पेसक्वेक कहते हैं।
पहली बार कब देखा गया स्पेसक्वेक?
वैज्ञानिकों ने 2010 में की थी इसकी पहली रिकॉर्डिंग
नासा के THEMIS मिशन के दौरान साल 2010 में वैज्ञानिकों ने पहली बार स्पेसक्वेक की घटना को रिकॉर्ड किया था। उन्होंने पाया कि यह कंपन न सिर्फ चुंबकीय क्षेत्र को प्रभावित करता है, बल्कि पृथ्वी के वातावरण और तकनीकी सिस्टमों पर भी असर डाल सकता है।
स्पेसक्वेक और आम भूकंप में क्या फर्क है?
सामान्य भूकंप | स्पेसक्वेक |
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धरती के अंदर प्लेट्स टकराने से होता है | चुंबकीय क्षेत्र में सौर हवाओं की टक्कर से होता है |
जमीन हिलती है, दरारें आती हैं | कोई भौतिक असर नहीं, लेकिन तकनीकी सिस्टम पर असर |
सिस्मिक वेव्स (Seismic Waves) निकलती हैं | इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स निकलती हैं |
जान-माल का नुकसान होता है | GPS, टेलीकॉम और पावर ग्रिड पर असर पड़ता है |
स्पेसक्वेक का प्रभाव किस पर पड़ता है?
GPS, इंटरनेट और सैटेलाइट सिस्टम हो सकते हैं फेल
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स्पेसक्वेक का असर सीधे हमारी डिजिटल लाइफ पर पड़ सकता है।
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GPS सिस्टम में लोकेशन एरर आ सकता है, जिससे नेविगेशन गड़बड़ा सकता है।
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टेलीकॉम नेटवर्क बाधित हो सकते हैं, कॉल ड्रॉप और इंटरनेट स्लो हो सकता है।
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सैटेलाइट से जुड़ी सेवाएं जैसे TV ब्रॉडकास्ट, बैंकिंग नेटवर्क आदि प्रभावित हो सकते हैं।
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बिजली ग्रिड में करंट का उतार-चढ़ाव आ सकता है, जिससे ब्लैकआउट जैसी स्थिति बन सकती है।
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कुछ मामलों में अगर कोई अंतरिक्ष मिशन एक्टिव हो, तो अंतरिक्ष यात्रियों को रेडिएशन का खतरा भी हो सकता है।
क्या स्पेसक्वेक से डरना चाहिए?
भौतिक खतरा नहीं, लेकिन तकनीकी जोखिम बहुत बड़ा
स्पेसक्वेक से किसी तरह का भौतिक नुकसान नहीं होता, जैसे कि इमारतें गिरना या ज़मीन में दरारें आना। लेकिन इसकी वजह से जो तकनीकी समस्याएं पैदा होती हैं, वो हमारी आधुनिक जीवनशैली को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
स्पेसक्वेक और ऑरोरा का कनेक्शन
जब ऊर्जा वायुमंडल से टकराती है, तो पैदा होता है Northern Lights
स्पेसक्वेक की वजह से जब इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स पृथ्वी के वायुमंडल से टकराती हैं तो उससे ऑरोरा यानी Northern Lights जैसी चमकदार लाइटें उत्पन्न होती हैं, जो विशेष रूप से उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में देखी जाती हैं। यह एक अद्भुत प्राकृतिक दृश्य होता है, लेकिन यह भी स्पेसक्वेक की ही देन है।