इन कन्याओं का विष ले सकता है पति की जान
punjabkesari.in Saturday, Aug 01, 2015 - 04:31 PM (IST)

भारतीय ज्योतिष के अनुसार कुंडली में विद्यमान शुभाशुभ योग वार, तिथि, नक्षत्रों व ग्रहों के संयोगों से बनते हैं। जहां एक तरफ शुभ संयोग के कारण कुंडली में हंस, भद्र, मालव्य व गजकेशरी जैसे शुभ योग बनते हैं। वहीं दूसरी ओर कुंडली में अशुभ संयोग के कारण अल्पायु, ज्वालामुखी, वंशनाशक व विषकन्या जैसे अति अशुभ योग भी बनते हैं। जीवन में इन शुभाशुभ योगों का प्रभाव इनके नाम के अनुसार ही पड़ता है। भारतीय संस्कृति में विवाह संस्कार का विशिष्ट महत्व है।
ज्योतिष शास्त्र में कई ऐसे योग हैं जो इंगित करते हैं कि पति के लिए पत्नी घातक होती है। जन्म के समय किसी भी कन्या की कुंडली में यदि "विषकन्या" योग बना रहा हो तो विवाह के समय इसकी गहनता से जांच करा कर उपाय करना उचित रहता है। अन्यथा विवाहित जीवन में हानि की संभावना अधिक बढ़ जाती है। शास्त्र बताते हैं कि विशिष्ट काल में जन्म लेने वाली कन्या ''विषकन्या'' होती है। इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को बता रहे हैं अति अशुभ "विषकन्या" योग के बारे में।
इतिहास एवं वैदिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीनकाल में देवगण व राजा-महाराजा अपने शत्रुओं का छलपूर्वक सम्राज्य समाप्त करने के लिए वास्तविक ‘विषकन्या’ का प्रयोग किया करते थे अर्थात ऐसी सुंदरीयों का उपयोग को असुरों को आकर्षित करने के लिए किया जाता था जो अत्याधिक सुंदर हुआ करती थी व जिनकी कुंडली में विषकन्या योग हुआ करता था। इन विषकन्याओं से संबंध बनाने के उपरांत उन दैत्यों व राजाओं की दहलीला व सम्राज्य समाप्त हो जाता था। विषकन्या योग में जन्म लेने वाली स्त्री परम सुंदरता लिए हुए होती है। वह कन्याएं जिद्दी स्वभाव व व्यवहार कुशल नहीं होती। ऐसी कन्याएं जल्दी ही गुस्सा होने वाली तथा दूसरों की बात न मानने वाली होती हैं। ऐसी कन्याओं में भावनाओं की कमी होती है जिसकी वजह से ऐसी कन्याएं किसी के प्रति करुणा का भाव नहीं रखती। यह सब जन्म समय के उग्र नक्षत्रों, अशुभ तिथियों, एवं पाप ग्रहों के प्रभाव से होता है। विषकन्या'' योग में उत्पन्न कन्या पति के लिए कष्ट एवं मृत्यु तुल्य कष्ट देती है।
शास्त्रनुसार विषकन्या योग इस प्रकार है-
- मंगलवार सप्तमी तिथि और अश्लेषा, शतभिषा या विशाषा नक्षत्र में जन्मी बालिका ''विषकन्या'' होती है।
- रविवार द्वितीया तिथि और कृतिका, विशाखा या शतभिषा नक्षत्र में जन्मी बालिका ''विषकन्या'' होती है।
- छठे स्थान में दो पाप ग्रह, लग्न में एक पाप ग्रह और दो शुभ ग्रह होने पर ''विषकन्या'' योग बनता है।
- रविवार व अश्लेषा या शतभिषा नक्षत्र व द्वितीया तिथि में जन्मी बालिका ''विषकन्या'' होती है।
- लग्न में शनि, पंचम में सूर्य एवं नवम में मंगल होने पर ''विषकन्या'' योग बनता है।
- शनिवार, द्वादशी तिथि तथा कृतिका नक्षत्र में उत्पन्न कन्या ''विषकन्या'' होती है।
- छठे स्थान में एक पाप ग्रह और दो शुभ ग्रह होने पर ''विषकन्या'' योग बनता है।
- शनिवार सप्तमी तिथि तथा कृतिका नक्षत्र में उत्पन्न कन्या ''विषकन्या'' होती है।
विषकन्या दोष में उत्पन्न हुई बालिका की विवाह पूर्व शांति करवाना आवश्यक है। यदि कन्या की कुंडली मांगलिक है व विषकन्या योग भी है तो ऐसे वर से शादी करनी चाहिए जिसकी कुंडली में दीर्घायु योग हो। यदि कन्या की कुंडली में विषकन्या योग है, परंतु जन्म लग्न या चन्द्र लग्न से सप्तम भाव में सप्तमेश या शुभ ग्रह हो तो ''विषकन्या'' जनित दोष दूर हो जाता है। सप्तमेश शुभ स्थिति में हो और सप्तम भाव गुरु से दृष्टि हो तो ''विषकन्या दोष'' दूर होता है परंतु विषकन्या योग में उत्पन्न कन्या की शांति करवाना परम आवश्यक है।
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com