देश की सियासत में उत्तर प्रदेश क्यों है अहम और क्या हैं इसके सियासत के मायने

punjabkesari.in Thursday, Jun 06, 2024 - 09:07 AM (IST)

नेशनल डेस्क: देश की सियासत में उत्तर प्रदेश की अपनी ही अहमियत है, क्योंकि यहीं से भारत के प्रधानमंत्री बनने का दौर शुरू हआ था। इस राज्य से प्रधानमंत्री की कुर्सी का सफर जवाहरलाल नेहरू से शुरू हुआ था, जो इलाहबाद जिला (पूर्व)- सह-जौनपुर जिला (पश्चिम) सांसद थे, वर्तमान में यह लोकसभा क्षेत्र अब फूलपुर के नाम से जाना जाता है। उनके बाद भी यह सफर जारी रहा है और इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से सांसद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने। यह रिवायत जारी रही और रायबरेली से लोकसभा सांसद इंदिरा गांधी ने परंपरा को आगे बढ़ाया।

9 प्रधानमंत्रियों का यू.पी. से रहा है नाता
यह सूची यहीं समाप्त नहीं होती है। इसके बाद बागपत से चरण सिंह, अमेठी से राजीव गांधी, फतेहपुर से वी. पी. सिंह, बलिया से चंद्रशेखर और लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी सभी पीएम बने। पूरी संभावना थी कि अगर नारायण दत्त तिवारी 1991 में उस समय नैनीताल जो यू.पी. में था, से चुनाव जीत जाते, तो पी वी नरसिम्हा राव नहीं बल्कि वे ही 1991 में प्रधानमंत्री बनते। अक्सर कहा जाता है केंद्र सरकार का रास्ता यू.पी. से होकर जाता है। गुलजारीलाल नंदा, मोरारजी देसाई, नरसिम्हा राव, एच डी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल और डॉ मनमोहन सिंह को छोड़कर भारत के अन्य 9 प्रधानमंत्री या तो यूपी के निवासी रहे हैं या यूपी से चुने गए हैं।

2013 में यू.पी. में पीएम मोदी और शाह की भूमिका
हाल ही में प्रकाशित पुस्तक "एट द हार्ट ऑफ पावर: द चीफ मिनिस्टर्स ऑफ उत्तर प्रदेश" किताब के लेखक श्यामलाल यादव ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्हें 9 जून, 2013 को 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। उससे तीन सप्ताह पहले 19 मई को उनके करीबी अमित शाह को यूपी में पार्टी का प्रभारी बनाया गया था। इसके बाद 16 जून 2013 को, कांग्रेस, जो उस समय केंद्र में सरकार का नेतृत्व कर रही थी, ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (ए.आई.सी.सी.) के महासचिव मधुसूदन मिस्त्री को यूपी का प्रभारी नियुक्त किया था। मोदी और शाह की तरह मिस्त्री भी गुजरात से हैं। राष्ट्रीय फोकस जनसंख्या और लोकसभा सीटों के मामले में भारत के सबसे बड़े राज्य पर था।

2014 में यू.पी. की 80 सीटों में से 71 पर भाजपा
13 सितंबर 2013 को, मोदी को भाजपा के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। सभी संदेहों को दूर करते हुए, भाजपा ने घोषणा की कि मोदी दो सीटों यू.पी. में वाराणसी और गुजरात में वडोदरा से चुनाव लड़ेंगे। जब वे दोनों सीटों से जीते, तो उन्होंने पहले वाली सीट को बरकरार रखा और दूसरे वाली सीट से इस्तीफा दे दिया। भाजपा ने 2014 में यू.पी. की 80 सीटों में से अपने दो सहयोगियों के साथ 71 सीटें जीतीं और मोदी प्रधानमंत्री बने।

कांग्रेस ने अकेले 7 बार यू.पी. के दम पर बनाई सरकारें
कांग्रेस ने सात बार केंद्र में एकदलीय बहुमत वाली सरकारें बनाई हैं और इसका श्रेय यू.पी. में जीती गई सीटों की पर्याप्त संख्या को दिया जा सकता है। जब 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई, तो उसने उस समय राज्य की सभी 85 सीटें जीती थीं। दूसरी ओर कांग्रेस की तीन गठबंधन सरकारों में पार्टी ने 1991 में 85 में से केवल पांच सीटें, 2004 में 80 में से नौ और 2009 में 80 में से 21 सीटें जीतीं। 1996 में केंद्र में संयुक्त मोर्चा (यू.एफ.) की गठबंधन सरकार में समाजवादी पार्टी (एस.पी.) उसकी अहम सहयोगी थी, लेकिन वह राज्य की 85 में से केवल 16 सीटें ही जीत पाई। केंद्र में भाजपा की गठबंधन सरकारों में पार्टी ने 1998 में यूपी में 85 में से 57 सीटें जीती थीं और हालांकि 1999 में यह संख्या कम हो गई थी, फिर भी इसने 85 में से 29 सीटें जीतीं। 2014 और 2019 में केंद्र में भाजपा की बहुमत वाली सरकारों के पास राज्य की 80 में से क्रमशः 71 और 62 सीटें (सहयोगी अपना दल (एस) को छोड़कर) थीं।

जयप्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया की कर्म भूमि
भारत के सबसे निडर विपक्षी नेताओं में से एक डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म यूपी में हुआ था और वे राज्य की राजनीति में सक्रिय थे। वे यू.पी. से ही लोकसभा भी पहुंचे थे। डॉ. लोहिया ने 26 जून 1962 को नैनीताल में समाजवादी युवजन सभा (एस.वाई.एस.) के प्रशिक्षण शिविर में पहली बार अपनी ऐतिहासिक सप्त क्रांति का जिक्र किया था। उनकी पार्टी के नारे "पिछड़े पावें सौ में साथ" ने यूपी और बिहार में जोर पकड़ा था। जयप्रकाश नारायण ने 5 जून 1974 को पटना, बिहार में संपूर्ण क्रांति पर अपना ऐतिहासिक भाषण दिया, लेकिन उनके प्रयोगों की जमीन यू.पी. ही थी। जयप्रकाश नारायण ने वाराणसी में गांधी विद्या संस्थान की स्थापना की थी। 1977 में जनता पार्टी ने राज्य की सभी 85 सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसमें इंदिरा गांधी की पूर्व में अजेय रायबरेली सीट भी शामिल थी। और यह देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय था, जिसने एक मौजूदा प्रधानमंत्री को गवाह के कठघरे में खड़ा किया और 1975 के अपने ऐतिहासिक फैसले में इंदिरा गांधी के 1971 के रायबरेली से चुनाव को रद्द कर दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी और दीन दयाल उपाध्याय भी यूपी से
अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा, भारतीय जनसंघ (बी.जे.एस.) के संस्थापक दीन दयाल उपाध्याय भी यूपी से थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के विचारक, अन्नजी देशमुख और भाऊराव देवरस महाराष्ट्र से थे, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश था। आर.एस.एस. के दूसरे सरसंघचालक (प्रमुख) माधवराव सदाशिव गोलवलकर ‘गुरुजी’ ने बी.एच.यू. में अध्ययन और अध्यापन किया था। बी.जे.एस. का गठन 2 सितंबर, 1951 को उत्तर प्रदेश में हुआ था, उसी वर्ष 21 अक्टूबर को केंद्रीय स्तर पर इसकी घोषणा की गई थी।

बसपा संस्थापक कांशीराम की प्रयोगशाला
1984 के लोकसभा चुनाव में केवल दो लोकसभा सीटों के साथ, भाजपा ने अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर राम मंदिर के लिए संघ परिवार के आंदोलन का हिस्सा बनकर अपनी रणनीति को नया रूप देना शुरू कर दिया। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक, कांशीराम ने अपने राज्य पंजाब को नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश को अपना प्रयोगात्मक क्षेत्र बनाया, भले ही पंजाब में अनुसूचित जातियों (एससी) का प्रतिशत किसी भी भारतीय राज्य में सबसे अधिक है।

हालांकि अपने आकार के कारण यू.पी. में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या सबसे अधिक है, और पार्टियों को विशेष रूप से समाज के इस वर्ग के उत्थान की दिशा में काम करने का अवसर प्रदान करता है। कांशीराम ने यूपी की राजनीति की गतिशीलता को बदल दिया और कई वर्षों तक इसके राजनीतिक मामलों में सक्रिय रूप से शामिल रहे। यूपी के तीन सी.एम. जी बी पंत, सुचेता कृपलानी और कमलापति त्रिपाठी संविधान सभा के सदस्य थे। यू.पी. के दो सी.एम., जी. बी. पंत और चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है, जबकि मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह को भारतीय समाज और राजनीति में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है।


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Content Editor

Mahima

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