अनसुलझा क्यों है राजधानी की सड़क पर महिला सुरक्षा का सवाल?
punjabkesari.in Saturday, Dec 14, 2024 - 11:02 AM (IST)
नेशनल डेस्क. पत्रकार एश्वर्या पालीवाल के साथ राजधानी दिल्ली की सड़क पर घटी घटना से देश भौंचक है। एक पत्रकार अपनी कार में भी राजधानी की सड़क पर सुरक्षित नहीं है। दिल्ली की महिलाओँ का कॉन्फिडेन्स खत्म हो गया है। मदद मांगने से मदद नहीं मिलना या मदद मिलने की उम्मीद का खत्म होना सबसे ख़तरनाक है। दिल्ली की महिलाएं ऐसी ही ख़तरनाक स्थिति का सामना कर रही हैं।
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एश्वर्या पालीवाल के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए दिल्ली में कानून व्यवस्था का आईना दिखाया है – “एक महिला पत्रकार के साथ हुई इस घटना ने दिखा दिया है कि हालात कितने ख़राब हो चुके हैं।“ महिलाओं के होश फाख्ता हो हैं तो महिलाओं के साथ अपराध या क्रूरता करने वालों के हौंसले बुलन्द हैं। ये दोनों स्थितियां मिलकर परिस्थिति को गंभीर बना रही हैं।
अहतियात भी जरूरी, तुरंत एक्शन भी
महिलाओं के साथ अपराध रोकने के लिए एहतियातन कदम और घटना के बाद तुरंत एक्शन दोनों जरूरी हैं। इन दोनों पहल की अनुपस्थिति में महिलाएं असुरक्षित, कमजोर और लाचार हो जाती हैं। यही बेबसी है। बेबसी से निराशा पैदा होती है और निराशा से अवसाद और आत्महत्या जैसी स्थितियां बनती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 14,158 मामले दर्ज किए गये। देश के 19 महानगरीय शहरों में सबसे बड़ा आंकड़ा दिल्ली का ही रहा। महिलाओं के साथ मुंबई में 6,176 और बेंगलुरू में 3,924 अपराध की घटनाएं घटनाएं हुईं। 2022 में दिल्ली में 1204 बलात्कार के मामले और 129 दहेज हत्या के मामले दर्ज किए गए। महिलाओं पर एसिड अटैक के पांच मामले भी दर्ज किए गये। महिलाओं के अपहरण की 3,909 घटनाएं भी देखी गईं।
दिल्ली सरकार ने महिला सुरक्षा के लिए उठाए हैं कदम
कानून व्यवस्था के मामले में दिल्ली पुलिस की कमजोरी उजागर हो चुकी है और केंद्रीय गृहमंत्रालय की भी जिसके अंतर्गत दिल्ली पुलिस आती है। मगर, अपराध रोकने के लिए दिल्ली सरकार ने कुछ कम काम नहीं किए हैं।
डीटीसी की बसों में सीसीटीवी कैमरा और पैनिक बटन : दिल्ली सरकार ने 96 प्रतिशत बसों में सीसीटीवी कैमरा और पैनिक बटन लगाए गये हैं। हर बस में 10 पैनिक बटन हैं।
महिलाओं के लिए वास्तव में पैनिक बटन ही रिलीफ बटन हैं। बटन पास होने का अहसास महिलाओं को मजबूत बनाता है।
दिल्ली में लगाए गये हैं 20 एनफोर्समेंट वैन : जैसे ही कोई पैनिक बटन दबता है तो ट्रैफिक पुलिस, एंबुलेंस, कंट्रोल रुम और फायर सर्विसेज तक उसका संज्ञान लेते हैं।
बसों में मार्शल की तैनाती : आम आदमी पार्टी ने 13 हजार मार्शलों को 5500 बसों में तैनात किया है। अब इन मार्शलों को नौकरी से हटाया जा रहा है जिसका आम आदमी पार्टी विरोध कर रही है।
सीसीटीवी की मॉनिटरिंग के लिए कमांड सेंटर : बसों में सीसीटीवी, जीपीएस और पैनिक बटन की निगरानी के लिए कश्मीरी गेट पर कमांड सेंटर स्थापित किए गये हैं। महिलाएं दिल्ली की बसों में इतनी
महफूज कभी नहीं रह सकी।
स्ट्रीट लाइट : मुख्यमंत्री स्ट्रीट लाइट स्कीम के तहत 2.10 लाख स्ट्रीट लाइट लगाए जाने की योजना है। DISCOM को इसका जिम्मा सौंपा गया है। इस योजना पर 100 करोड़ रुपये खर्च होंगे। दिल्ली सरकार का कहना है कि जरूरत पड़ी तो महिलाओँ की सुरक्षा के लिए और भी स्ट्रीट लाइट लगाने पर विचार कर सकती है। इन लाइट्स की खासियत है कि इसमें सेंसर होते हैं जो अंधेरा और उजाला होने पर क्रमश: जलते और बुझते हैं।
दिल्ली पुलिस तक महिलाओं की पहुंच आसान नहीं
दिल्ली पुलिस तक महिलाओं की पहुंच आसान नहीं है। हाल ही में आपातकालीन हेल्पलाइन सेवा शुरू की गयी है जो 24 घंटे उपलब्ध है। इसके अलावा संकट में फंसी महिलाओं को तत्काल सहायता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए वाट्सएप नंबर 7835075012 भी शुरू किया गया है। मगर, पत्रकार एश्वर्य पालीवाल के साथ घटी घटना बताती है कि महिलाओं के लिए ये सुविधाएं भी कारगर नहीं हैं।
दिल्ली पुलिस ने श्रद्धानंद मार्ग कमला मार्केट में ऑल वुमन पुलिस चौकी का प्रयोग किया। मगर, यह भी विफल रहा। 10 महिलाएं और 5 स्कूटी की ताकत के बावजूद इस इलाके में महिलाओं के साथ हर तरह के कुकर्म होते हैं और जहां ब्रुटल हाउस में महिलाओं पर जुल्म किए जाते हैं। जाहिर है कि महिलाओं के खिलाफ संगठित अपराध के खिलाफ बड़े एक्शन की जरूरत है न कि प्रतीकात्मक पहल की।
कहने को रात में घर लौटने वाली महिलाओँ की सुरक्षा के लिए दिल्ली पुलिस के पास 800 पीसीआर वैन, मोटर साइकिल गश्त, इमर्जेंसी रिस्पांस ह्विकल की व्यवस्था है लेकिन पीसी आर चुनिंदा वीआईपी इलाको में ही गश्त करती दिखती है। आउटर दिल्ली में पीसीआर की मुस्तैदी इतनी कम है कि कॉल पर तुरंत पहुंच पाना संभव ही नहीं हो पाता।
थानों में महिला हेल्प डेस्क काम नहीं करतीं, थाना स्तर पर बने महिला सुरक्षा दल भी निष्क्रिय रहते हैं। एंटी स्टॉकिंग हेल्पलाइन 1096 बेमतलब हैं। कुछ पीसीआर पर केवल महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती के फायदे भी सामने नहीं आए हैं।
दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा बड़ा सवाल है। दिल्ली सरकार महिलाओं को नकद उपलब्ध कराकर, मोहल्ला बसें शुरू कर, मोहल्ला क्लीनिक और अस्पताल की सुविधाएं देकर मदद जरूर कर रही हैं लेकिन छिनतई, बलात्कार, यौन हिंसा, अपराध जैसी घटनाओं से बचाने का काम दिल्ली पुलिस को ही करना है। अगर सड़क पर महिलाओं का चलना मुश्किल हो गया है तो राजधानी दिल्ली में बाकी किसी सुविधा का महिलाओं के लिए क्या महत्व है? सवाल यही है कि दिल्ली को सुरक्षित करने में दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस का एकीकृत प्रयास क्यों नहीं दिखाई देता? क्या राजनीति इसमें बाधा है? आधी आबादी को सुरक्षित रखने के सवाल पर जिम्मेदारी से जवाब दिए बगैर तो चुनाव भी नहीं जीते जा सकते। फिर भी महिलाओं की सड़क पर सुरक्षा का सवाल अनसुलझा क्यों है?
हरि शंकर जोशी, वरिष्ठ पत्रकार
Disclaimer: यह लेखक के निजी विचार हैं।