संसद की कैंटीन में 50 पैसे में मिलती थी शाकाहारी थाली, जानिए आज कितना है रेट

punjabkesari.in Saturday, Nov 30, 2024 - 08:54 PM (IST)

नेशनल डेस्क : संसद भवन में शीतकालीन सत्र चल रहा है इस दौरान अक्सर हंगामा देखा जाता है, जिससे कामकाज प्रभावित होता है और संसद की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती है। इस दौरान संसद में आने वाले सांसदों, पत्रकारों और दर्शकों की संख्या बढ़ जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि संसद भवन में एक कैंटीन भी है? इस कैंटीन का इतिहास और यहां के भोजन की कीमतें काफी दिलचस्प हैं। ऐसे में क्या आपको पता है कि क्या है एक प्लेट थाली की कीमत। आइए जानते हैं विस्तार से...

संसद की कैंटीन का इतिहास
आजादी के बाद की स्थिति: आजादी के बाद, संसद भवन की कैंटीन का प्रबंधन उत्तरी रेलवे के द्वारा किया जाता था। उस समय कैंटीन बहुत छोटी थी और भोजन की कीमतें बेहद सस्ती थीं। शाकाहारी थाली केवल 50 पैसे में मिलती थी। सांसदों को सस्ते मूल्य पर चाय, नाश्ता और अन्य खाद्य सामग्री उपलब्ध होती थी।

साल 2021 में बदलाव: वर्ष 2021 में भारत पर्यटन विकास निगम (ITDC) ने संसद भवन की कैंटीन का संचालन संभाला। इसके बाद कैंटीन के खाने की गुणवत्ता और सेवा में सुधार किया गया और खाना थोड़ा महंगा हुआ।

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संसद की कैंटीन में आज की कीमतें

  1. वेज थाली: 100 रुपये

  2. चपाती (रोटी): 3 रुपये

  3. चिकन करी: 75 रुपये

  4. चिकन बिरयानी: 100 रुपये

  5. सैंडविच: 3-6 रुपये

इन कीमतों को देखकर यह कहा जा सकता है कि संसद की कैंटीन अन्य होटलों के मुकाबले अभी भी सस्ती है, लेकिन पहले की तुलना में खाने की कीमतें अब बढ़ चुकी हैं।

संसद की कैंटीन में बदलाव

  • 1950-60 दशक में: 1950 से 1960 के दशक तक संसद की कैंटीन छोटी और पारंपरिक थी। इस समय शाकाहारी थाली मात्र 50 पैसे में मिलती थी। इसके अलावा चाय, नाश्ता और अन्य खाने की चीजें बहुत सस्ते मूल्य पर उपलब्ध थीं।

  • 1970-80 दशक में: साल 1970 से 1980 के बीच भी संसद की कैंटीन की कीमतें कम थीं। उस समय शाकाहारी थाली 30 रुपये में मिलती थी, जबकि चिकन करी 50 रुपये और रोटी 2 रुपये की थी।

  • 1990 के दशक में बदलाव: 1990 तक कैंटीन की कीमतें काफी स्थिर थीं। इस दौरान भोजन में काफी बदलाव नहीं हुआ था, और कीमतें भी किफायती थीं।

तकनीकी और प्रबंधकीय बदलाव

  • 1968 में गैस का उपयोग: 1960 के दशक के अंत में, संसद की कैंटीन में गैस चूल्हों का उपयोग शुरू हुआ। इसके बाद 1968 में भारतीय रेलवे के उत्तरी जोन आईआरसीटीसी ने कैंटीन का प्रबंधन संभाला। उस समय तक खाना पूरी तरह से पारंपरिक तरीके से बनता था।

  • 2008 में बदलाव: 2008 में गैस लीक और उपकरणों में आ रही खराबी के कारण, कैंटीन में ईंधन का पूरा सिस्टम बदल दिया गया। अब खाना पूरी तरह से बिजली के उपकरणों पर पकता है, जिससे खाद्य सामग्री का पकाना और उसके गुणवत्ता पर ध्यान देना आसान हो गया है।

संसद सत्र के दौरान खाने की व्यवस्था

500 लोगों का खाना: संसद सत्र के दौरान, कैंटीन में लगभग 500 लोगों का खाना पकता है। इस दौरान सांसदों और अन्य कर्मचारियों के लिए ब्रेकफास्ट, लंच और स्नैक्स तैयार किए जाते हैं। खाने की आपूर्ति सुबह के 11 बजे तक पूरी कर ली जाती है।

खाने की सामग्री: कैंटीन में 90 प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं, जिसमें ब्रेकफास्ट, लंच और अन्य स्नैक्स शामिल होते हैं। हालांकि, 27 जनवरी 2024 से भारतीय पर्यटन विकास निगम (ITDC) के द्वारा कैंटीन का संचालन शुरू होने के बाद, खाने के आइटमों की संख्या घटकर 48 हो गई है। इसके बावजूद, खाने की सफाई और स्वाद का ध्यान पूरी तरह से रखा जाता है।

संसद भवन की कैंटीन समय के साथ काफी बदल चुकी है। पहले जहां यह सस्ती थी और सांसदों के लिए एक साधारण कैंटीन थी, वहीं अब यह एक मॉडर्न और सुव्यवस्थित कैंटीन बन चुकी है। हालांकि खाने की कीमतें बढ़ी हैं, फिर भी यह अन्य होटलों की तुलना में काफी सस्ती है। संसद भवन की कैंटीन का यह परिवर्तन, इसके इतिहास और वर्तमान में बदलाव को दर्शाता है, जो संसद भवन में होने वाली कार्यवाही के बीच में भोजन की गुणवत्ता और सेवा को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


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Content Editor

Utsav Singh

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