संसद सुरक्षा उल्लंघन मामला: दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपियों को दी जमानत, सार्वजनिक टिप्पणी पर रोक
punjabkesari.in Wednesday, Jul 02, 2025 - 11:35 AM (IST)

नेशनल डेस्क: दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 दिसंबर, 2023 को संसद में हुए सुरक्षा उल्लंघन मामले में गिरफ्तार नीलम आजाद और महेश कुमावत को बुधवार को जमानत मिल गई है। इस फैसले के साथ ही अदालत ने कई कड़ी शर्तें भी रखी हैं। आरोपियों को इनका पालन करना होगा।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने यह आदेश सुनाया, जिसे 21 मई को सुरक्षित रखा गया था। अदालत ने दोनों आरोपियों को 50-50 हजार रुपये के जमानत बांड और इतनी ही राशि के दो sureties जमा करने का निर्देश दिया है।
जमानत की प्रमुख शर्तें:
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सार्वजनिक टिप्पणी पर रोक: अदालत ने नीलम आजाद और महेश कुमावत को इस मामले से संबंधित कोई भी साक्षात्कार देने या सार्वजनिक बयान देने से साफ मना किया है. उन्हें घटना से जुड़ी कोई भी जानकारी सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से भी रोका गया है.
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दिल्ली नहीं छोड़ सकते: जमानत पर रिहा होने के बाद भी आरोपी दिल्ली शहर छोड़कर कहीं नहीं जा सकते हैं.
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पुलिस स्टेशन में उपस्थिति: उन्हें हर सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को सुबह 10 बजे एक निर्धारित पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा.
क्या हुआ था 13 दिसंबर 2023 को?
यह घटना 13 दिसंबर, 2023 को हुई थी, जब छह व्यक्तियों के एक समूह ने संसद भवन की सुरक्षा में सेंध लगाई थी। इनमें से दो सागर शर्मा और मनोरंजन डी लोकसभा कक्ष में घुसने में कामयाब रहे थे। शून्यकाल के दौरान, वे सार्वजनिक गैलरी से कूद गए, उन्होंने कनस्तरों से पीली गैस छोड़ी और तब तक नारे लगाए जब तक सांसदों और सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें काबू नहीं कर लिया।
जांच के दौरान, यह सामने आया कि सभी आरोपी 'भगत सिंह फैन क्लब' नामक एक सोशल मीडिया पेज के जरिए एक-दूसरे से जुड़े थे और मैसूर में मिले थे। इस समूह ने अपने कार्यों को व्यवस्थित करने के लिए 'सिग्नल' ऐप के माध्यम से एन्क्रिप्टेड संचार का उपयोग किया था। बताया गया है कि उन्होंने डेढ़ साल से अपनी इस योजना पर काम किया था।
यह सुरक्षा उल्लंघन 2001 के संसद हमले की बरसी पर हुआ था. 2001 में जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादियों ने संसद पर हमला किया था, जिसमें दिल्ली पुलिस के छह जवान, संसद सुरक्षा सेवा के दो जवान और एक माली सहित कुल नौ लोगों की जान चली गई थी। इस घटना ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की थी और संसद की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए थे।