आपराधिक मामलों में मीडिया ट्रायल को लेकर SC का बड़ा दखल, केंद्र से गाइडलाइन बनाने को कहा
punjabkesari.in Wednesday, Sep 13, 2023 - 10:45 PM (IST)

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गृह मंत्रालय को आपराधिक मामलों में पुलिस कर्मियों की मीडिया ब्रीफिंग के बारे में तीन महीने में विस्तृत नियमावली तैयार करने का निर्देश देते हुए कहा कि मीडिया ट्रायल न्याय के रास्ते से भटका सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस बारे में एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) की तत्काल आवश्यकता है कि पत्रकारों को कैसे जानकारी दी जानी चाहिए क्योंकि 2010 में गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा इस विषय पर पिछली बार दिशानिर्देश जारी किए जाने के बाद से प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में आपराधिक घटनाओं पर रिपोर्टिंग बढ़ी है।
चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मीडिया के बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार और आरोपी के निष्पक्ष जांच के अधिकार तथा पीड़ित की निजता के बीच संतुलन बनाए रखना होगा। पीठ ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) को आपराधिक मामलों में पुलिस की मीडिया ब्रीफिंग के लिए नियमावली तैयार करने के संबंध में एक महीने में गृह मंत्रालय को सुझाव देने का निर्देश दिया। जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की सदस्यता वाली पीठ ने कहा, “सभी डीजीपी दिशा-निर्देशों के लिए अपने सुझाव एक महीने में गृह मंत्रालय को दें...राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सुझाव भी लिए जा सकते हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब जांच जारी हो तो पुलिस द्वारा “समय से पहले” किया गया कोई भी खुलासा मीडिया ट्रायल को बढ़ावा देता है जो न्याय के रास्ते से भटका सकता है क्योंकि यह सुनवाई करने वाले जज को भी प्रभावित कर सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि एसओपी न होने की स्थिति में पुलिस के खुलासे की प्रकृति एक समान नहीं हो सकती क्योंकि यह अपराध की प्रकृति और पीड़ितों, गवाहों व आरोपियों समेत अलग-अलग हितधारकों पर निर्भर करती है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी और पीड़ित से जुड़े ऐसे प्रतिस्पर्धी पहलू हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि उनका अत्यधिक महत्व है। शीर्ष अदालत उन मामलों में मीडिया ब्रीफिंग में पुलिस द्वारा अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनकी जांच जारी है।
इस मामले में अदालत की मदद के लिए न्याय मित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि प्रेस को रिपोर्टिंग से रोका नहीं जा सकता है, लेकिन सूचना के स्रोत, जो अक्सर सरकारी संस्थाएं होती हैं, को विनियमित किया जा सकता है। उन्होंने 2008 के आरुषि तलवार हत्याकांड का हवाला दिया जिसमें कई पुलिस अधिकारियों ने मीडिया के सामने घटना के संबंध में अलग-अलग बयान दिए थे। 13 वर्षीय आरुषि तलवार और एक बुजुर्ग घरेलू सहायक हेमराज की नोएडा के एक घर में हत्या कर दी गई थी और इस वारदात में आरुषि के माता-पिता पर संदेह किया गया था।