न्यायालय का वक्फ (संशोधन) अधिनियम को चुनौती देने वाली नयी याचिका पर विचार करने से इनकार

punjabkesari.in Monday, Apr 28, 2025 - 02:33 PM (IST)

नेशनल डेस्क : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक नयी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह इस मुद्दे पर ‘‘सैकड़ों'' याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर सकता। भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता सैयद अली अकबर के वकील से लंबित पांच मामलों में हस्तक्षेप आवेदन दायर करने को कहा, जिन पर अंतरिम आदेश पारित करने के लिए पांच मई को सुनवाई होगी।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आप इसे वापस लें। हमने 17 अप्रैल को एक आदेश पारित किया था जिसमें कहा गया था कि केवल पांच याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी।'' उन्होंने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता के लिए सलाह मिलने पर लंबित याचिकाओं में आवेदन दायर करने का रास्ता खुला रहेगा।'' पीठ ने 17 अप्रैल को अपने समक्ष कुल याचिकाओं में से केवल पांच पर सुनवाई करने का फैसला किया और मामले का शीर्षक दिया: ‘‘इन री: वक्फ (अमेंडमेंट) एक्ट, 2025''।

कानून के खिलाफ दायर करीब 72 याचिकाओं में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलेमा-ए-हिंद, द द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक), अधिवक्ता तारिक अहमद के प्रतिनिधित्व वाले एयूक्यूएएफ के कर्नाटक राज्य औकफ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अनवर बाश, कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी एवं मोहम्मद जावेद की याचिकाएं शामिल हैं। तीन वकीलों को नोडल वकील नियुक्त करते हुए पीठ ने वकीलों से कहा कि वे आपस में तय करें कि कौन बहस करेगा। याचिकाकर्ताओं को सरकार के जवाब के पांच दिनों के भीतर, उस पर अपने जवाब दाखिल करने की अनुमति दी गई।

 पीठ ने कहा, ‘‘हम स्पष्ट करते हैं कि अगली सुनवाई (पांच मई) प्रारंभिक आपत्तियों और अंतरिम आदेश के लिए होगी।'' केंद्र ने 17 अप्रैल को पीठ को आश्वासन दिया कि वह पांच मई तक ‘‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ'' सहित वक्फ संपत्ति को न तो अधिसूचित करेगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्ड में कोई नियुक्ति करेगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह आश्वासन तब दिया जब उन्होंने प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि संसद ने वक्फ कानून को ‘‘उचित विचार-विमर्श'' के साथ पारित किया था और सरकार का पक्ष सुने बिना इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। बाद में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने संशोधित वक्फ अधिनियम का बचाव करते हुए एक प्रारंभिक 1,332-पृष्ठ का हलफनामा दायर किया और संसद द्वारा पारित ‘‘संवैधानिकता की परिकल्पना वाले कानून'' पर अदालत द्वारा किसी भी तरह की ‘‘पूर्ण रोक'' का विरोध किया। मंत्रालय ने शीर्ष अदालत से कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने का आग्रह करते हुए कहा कि इनमें कुछ प्रावधानों के संबंध में ‘‘शरारतपूर्ण झूठी बातें'' कही गई हैं। केंद्र ने हाल में अधिनियम को अधिसूचित किया है। इस अधिनियम को दोनों सदनों में जबरदस्त चर्चा के बाद संसद से पारित होने पर पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली। राज्यसभा में विधेयक का 128 सदस्यों ने समर्थन और 95 सदस्यों ने विरोध किया जबकि लोकसभा में 288 सदस्यों ने इसका समर्थन और 232 सदस्यों ने विरोध किया। 


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News Editor

Radhika

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