रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस नजीर, राम मंदिर, तीन तलाक समेत इन मामलों में सुनाए अहम फैसले

punjabkesari.in Thursday, Jan 05, 2023 - 04:48 PM (IST)

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट के निवर्तमान न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर ने न्यायपालिका में महिलाओं के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की कमी को रेखांकित करते हुए बुधवार को कहा कि भारतीय न्यायपालिका को लैंगिक असमानताओं से मुक्त कहना वास्तविकता से कोसों दूर है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की ओर से आयोजित एक विदाई समारोह में न्यायमूर्ति नज़ीर ने कहा कि हालांकि, शीर्ष अदालत "अपनी स्थापना के बाद से एक लंबा सफर तय कर चुकी है" और भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ के मार्गदर्शन में "आज के समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार" है, लेकिन सुधार की गुंजाइश फिर भी मौजद है।

शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति नजीर का आज अंतिम कार्यदिवस था। उन्होंने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा उत्कृष्टता के लिए प्रयास किया है और मैं विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता हूं कि इसकी स्थापना के बाद से यह एक लंबा सफर तय कर चुका है। मुझे यकीन है कि सीजेआई (न्यायमूर्ति) चंद्रचूड़ के मार्गदर्शन में यह शीर्ष संस्था आज के समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है।" न्यायमूर्ति नजीर ने कहा, "हमेशा सुधार और बदलाव की गुंजाइश रहती है। उदाहरण के लिए, अगर मैं कहूं कि भारतीय न्यायपालिका हमारे समाज में मौजूद लैंगिक असमानताओं से मुक्त है, तो मैं वास्तविकता से कोसों दूर हूं। न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अब भी बहुत कम है।"

न्यायमूर्ति नजीर 17 फरवरी, 2017 को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे। वह उन संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं, जिसने 2016 में 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने की कवायद से लेकर सरकारी शिक्षण संस्थानों में दाखिले और नौकरियों में मराठा आरक्षण तथा उच्च लोक सेवकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार जैसे मामलों में अपने फैसले सुनाए। न्यायमूर्ति नजीर राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद और 'तीन तलाक' का मुद्दा तथा 'निजता के अधिकार' को मौलिक अधिकार घोषित करने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं।

अपने संबोधन में, न्यायमूर्ति नज़ीर ने यह भी कहा कि समाज में गलत सूचना के कारण लोग स्थिति को गलत मान लेते हैं और आज की स्थिति "पहले जैसी गंभीर नहीं है"। उन्होंने यह भी कहा कि महिला सशक्तीकरण से अधिक प्रभावी विकास का कोई साधन नहीं है। विदाई समारोह में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीशों और बार के सदस्य शामिल हुए। अपने संबोधन में, एससीबीए के अध्यक्ष विकास सिंह ने जोर देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष से बढ़ाई जानी चाहिए।

सिंह ने यह भी कहा कि "पहली पीढ़ी के वकील और अल्पसंख्यक समुदाय से" कर्नाटक के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति नज़ीर की नियुक्ति कॉलेजियम के "बहुत कुशलता से काम करने का स्पष्ट उदाहरण है।'' अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने छह साल तक शीर्ष अदालत की पीठ का हिस्सा रहने और संस्था को ताकत देने के लिए न्यायमूर्ति नजीर को धन्यवाद भी दिया। न्यायमूर्ति नज़ीर का जन्म पांच जनवरी, 1958 को हुआ था और उन्होंने 18 फरवरी, 1983 को वकालत के पेशे की शुरुआत की थी। उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय में वकालत की और 12 मई, 2003 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किए गए। बाद में उन्हें 24 सितंबर, 2004 को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

न्यायमूर्ति नज़ीर को 17 फरवरी, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। न्यायमूर्ति नजीर ने अपने भाषण में कनिष्ठ वकीलों को उचित वेतन और अवसर देने पर भी जोर दिया और कहा कि युवा वकीलों की ऊर्जा और क्षमता अद्वितीय है। उन्होंने एक संस्कृत श्लोक के साथ अपने संबोधन का समापन करते हुए कहा कि इस दुनिया में सब कुछ धर्म पर आधारित है, जो सर्वोच्च है। उन्होंने कहा कि धर्म उन्हें नष्ट कर देता है जो इसे नष्ट करते हैं और जो धर्म की रक्षा करते हैं उसकी रक्षा भी करता है।


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Content Writer

Yaspal

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