भारतीय राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) का इतिहास, जानिए कब लहराया गया था पहली बार

punjabkesari.in Wednesday, Aug 14, 2019 - 09:10 PM (IST)

नैशनल डैस्क(रवि प्रताप): झंडा किसी भी देश की शान, सम्मान और स्वतंत्रता का प्रतीक होता है। महात्मा गांधी ने भी एक बार कहा था कि किसी भी देश के लिए अपना झंड़ा होना आवश्यक है। समय-समय पर लाखों लोग अपने झंड़े के लिए जान दे चुके हैं। इसलिए जरूरी है कि हम भारतीयों के पास भी एक तिरंगा झंडा (Tiranga Jhanda) हो जिसके लिए हम जी सके या फिर मर सकें।

भारतीय झंडे का मौजूदा स्वरूप जो आज हमें नजर आता है उसे संविधान सभा ने स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) से कुछ दिन पहले 22 जुलाई, 1947 को अपनाया था। तीन रंग का होने की वजह से भारतीय झंडे को तिरंगा भी कहते हैं।

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भारतीय ध्वज का बदलता स्वरूप आजादी से पहले

भारत में पहली बार अनाधिकारिक रूप से झंडा लहराने से लेकर आधिकारिक तौर पर लहराने तक कई बार राष्ट्रीय ध्वज (Indian Flag) ने अपना स्वरूप बदला है। अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के संघर्ष में राष्ट्रभक्तों ने इसकी जरूरत महसूस की।

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  • कहा जाता है कि भारत में पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त, 1906 को कलकत्ता के पारसी बागान स्कवायर (ग्रीन पार्क) में अनाधिकारिक रूप से फहराया गया था। आज की ही भांति इसमें तीन रंग की पट्टी थीं। लेकिन इनका रंग लाल, पीला और हरा था। सबसे ऊपर हरा था जिसमें आठ सफेद रंग के कमल के फूल अंकित थे। बीच में पीला था जिस पर वंदे मातरम् लिखा हुआ था और सबसे नीचे लाल रंग था जिसमें चांद और सूरज बने हुए थे। 

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  • दूसरी बार भारतीय ध्वज फ्रांस की राजधानी पेरिस में मैडम कामा ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 1907 में लहराया था। सबसे ऊपरी पट्टी को छोड़कर यह पहले झंडे से काफी हद तक मिलता-जुलता था। इसमें सात स्टार सप्तऋषि के प्रतीक थें। यहीं झंडा जर्मनी की राजधानी बर्लिन में समाजवादी सम्मेलन के दौरान भी लहराया गया। मैडम कामा का पूरा नाम भिकाजी रुसतम कामा था।

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  • वर्ष 1917 में होम रूल आंदोलन के दौरान डॉ. ऐनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने तीसरी बार भारतीय झंडे को लहराया था। इस समय आजादी की लड़ाई ने एक नया मोड़ लिया था। इस झंडे में पांच लाल और चार हरे रंग की हॉरिजेंटल पट्टियां थीं। 7 स्टार सप्तऋषियों के प्रतीक थे। बाएं हाथे के शीर्ष कोने पर इसमें यूनियन जैक (बिटेन का ध्वज) भी बना हुआ था।

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  • वर्ष 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में मिले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के युवाओं ने एक झंडा तैयार किया और उसे गांधीजी के पास ले गए। इसमें दो रंग थे लाल और हरा जो मुख्यः दो समुदायों हिंदू और मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता था। इसमें चरखा भी था जो राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक था। भारत के अन्य समुदायों के प्रतिनिधित्व को दर्शाने के लिए गांधी जी ने इसमें सफेद रंग को जोड़ने का सुझाव दिया था।

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  • कुछ लोग झंडे के साप्रदायिक प्रतिनिधित्व से खासे नाराज थे। इसी को ध्यान में रखते हुए नए झंडे को अपनाया गया। इसमें तीन रंग थे केसरी शीर्ष पर, सफेद बीच में और हरा नीचे था। सफेद के बीच में चरखा बना हुआ था। इसे पिंगली वेंकैया ने तैयार किया था। इस ध्वज को आधिकारिक रूप से कांग्रेस समिति ने वर्ष 1931 में अपनाया था।

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  • आजाद भारत की प्रक्रिया के दौरान राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जिस पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को सकारात्मक रुप से बदलाव के बाद चुनने के जिम्मेदारी दी गई। बाद में इस कमेटी ने चरखे को हटा कर अशोक चक्र को अपना लिया।  

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Edited By

Ravi Pratap Singh

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