तालिबान ने महिलाओं की जिंदगी पर लगाए क्रूर प्रतिबंध, स्कूल, जिम और नौकरी सब कुछ... जानें क्या-क्या हो चुका है बंद?
punjabkesari.in Tuesday, Sep 30, 2025 - 12:05 PM (IST)

नेशनल डेस्क। अफगानिस्तान में इंटरनेट और टेलीकॉम सेवाओं को पूरी तरह से बंद करने के तालिबान के हालिया आदेश ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान उनकी क्रूर नीतियों की ओर खींचा है। नेटब्लॉक्स (NetBlocks) के अनुसार पूरे देश में कनेक्टिविटी सामान्य स्तर से एक फीसदी से भी कम रह गई है जो एक पूर्ण ब्लैकआउट है। हालांकि अफगानिस्तान में इस तरह के प्रतिबंध कोई नए नहीं हैं। अगस्त 2021 में सत्ता में आने के बाद से ही तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों पर व्यापक पाबंदियाँ लगाई हैं जिससे उनकी जिंदगी पूरी तरह सिमट गई है।
तालिबान राज में महिलाओं के छीने गए अधिकार
तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्वतंत्रता से जुड़े अधिकार क्रमशः छीन लिए गए हैं।
1. शिक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध
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छठी कक्षा के बाद पढ़ाई पर रोक: तालिबान ने सबसे पहले लड़कियों के लिए छठी कक्षा से आगे की पढ़ाई पर पूरी तरह रोक लगा दी थी।
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विश्वविद्यालयों में प्रवेश बंद: धीरे-धीरे उच्च शिक्षा तक उनके प्रवेश को बंद कर दिया गया। आज लाखों लड़कियां और युवतियां स्कूल-कॉलेज जाने से वंचित हैं।
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2. रोजगार के अवसरों पर ताला
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सरकारी और NGO नौकरियों पर बैन: महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर भी बंद कर दिए गए हैं। तालिबान ने गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और संयुक्त राष्ट्र (UN) से जुड़े प्रोजेक्ट समेत कई क्षेत्रों में महिलाओं के काम करने पर रोक लगा दी।
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हजारों कामकाजी महिलाओं की रोजी-रोटी छिन गई और वे घरों में कैद होकर रह गईं।
3. ब्यूटी पार्लर और सार्वजनिक जीवन पर प्रतिबंध
महिलाओं की सार्वजनिक उपस्थिति और स्वतंत्रता को सीमित करने के लिए कई कड़े नियम बनाए गए हैं:
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ब्यूटी पार्लर बंद: जुलाई 2023 में तालिबान ने महिलाओं के लिए ब्यूटी पार्लर बंद करने का आदेश दिया। यह हजारों महिलाओं के रोजगार का एकमात्र साधन था।
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पार्क, जिम और पब्लिक बाथहाउस पर रोक: महिलाओं के पार्क, जिम और सार्वजनिक स्नानागार जैसी जगहों पर जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
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पुरुष अभिभावक की अनिवार्यता: यात्रा करने के लिए भी महिलाओं को अब पुरुष अभिभावक (पिता या पति) की आवश्यकता होती है जिसने उनकी स्वतंत्रता को पूरी तरह खत्म कर दिया है।
अंतरराष्ट्रीय आलोचना और तालिबान का तर्क
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने बार-बार तालिबान की नीतियों की कड़ी आलोचना की है क्योंकि ये सीधे तौर पर महिलाओं के बुनियादी अधिकारों का हनन हैं।
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तालिबान का तर्क है कि ये प्रतिबंध उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक व्याख्या पर आधारित हैं।
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हालांकि जमीनी हकीकत यह है कि आज अफगानिस्तान में लड़कियों की किताबें छिन चुकी हैं कामकाजी महिलाओं की रोजी-रोटी खत्म हो चुकी है और सामान्य जीवन जीने के अवसर लगातार सीमित हो रहे हैं जो अब इंटरनेट ब्लैकआउट के साथ चरम पर पहुँच गया है।