अब जल्द ही प्लास्टिक- कांच की जगह कागज की बोतलों में मिलेंगी कोल्ड ड्रिंक्स और बियर
punjabkesari.in Wednesday, May 20, 2020 - 06:19 PM (IST)

नैशनल डैस्क। बेवरेज की दिग्ज कंपनियों कोका कोला और कार्ल्सबर्ग सिंगल यूज प्लास्टिक को त्याग करने की पहल शुरू कर दी है। दोनों दिग्गजों ने डच बायोकेमिकल कंपनी एवंटियम द्वारा पौधे से विकसित किए जा रहे एक प्लास्टिक के इस्तेमाल पर अपनी सहमति जताई है। दोनों कंपनियों ने लक्ष्य रखा है कि 2023 तक कोल्ड ड्रिंक्स और बीयर उपभोक्ताओं को कागज की बोतलों में पैक की हुई मिले। एवंटियम के मुख्य कार्यकारी टॉम वैन एकेन के मुताबिक इस प्रोजैक्ट पर निवेश के लिए 2020 के अंत तक हरी झंडी मिलने की संभावना है। इस साल की गर्मियों के अंत तक प्रोजैक्ट में अन्य कंपनियों की साझेदारी की भी घोषणा की जाएगी।
कैसे तैयार होगी पैकिंग
इस तकनीक के तहत कोल्ड ड्रिंक्स के लिए कार्डबार्ड की एक बोतल तैयार की जाएगी। जिसमें अंदर से पौधों से विकसित प्लास्टिक की कोटिंग की जाएगी। इसके इस्तेमाल के बाद इस बोतल को आसानी से रिसाइकल भी किया जा सकेगा और जमीन पर पड़े रहने के बाद यह सड़ कर खाद में तबदील हो जाएगा। जबकि वर्तमान में सिंगल यूज प्लास्टिक और कांच को रिसाइकल करना बहुत ही कठिन है। कांच भले ही प्लास्टिक जितना नुकसानदायक नहीं है, लेकिन इसे रिसाइकल करना इतना आसान नहीं है। कांच और प्लास्टिक की बोतलें जंगलों से लेकर समुद्र में जानवरों तक के लिए मुश्किलें पैदा करती हैं। कांच की बोतलों से जब सूर्य की रौशनी टकराती है, तो यह जंगलों में आग लगने का कारण भी बनती हैं। इसकी सतह पर पड़ी सूखी घास इस वजह से जल जाती है।
क्या कहते हैं आंकड़े
सफर्र अगेंस्ट सीवेज द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार प्लास्टिक प्रदूषण अब दुनिया भर में हर समुद्र तट पर देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों के पास हाल ही में आर्कटिक महासागर की बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक भी गहराई से पाए गए हैं। 1950 में 2.5 बिलियन की वैश्विक आबादी ने लगभग 1.5 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन किया, जबकि 2016 तक सात बिलियन से अधिक की आबादी ने 320 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया। यह आंकड़ा 2034 तक दोगुना होने की उम्मीद है। एवंटियम प्रारंभ में मकई, गेहूं और बीट से चीनी का उपयोग करते हुए प्रतिवर्ष पौधों से विकसित करीब 5 हजार टन प्लास्टिक का निर्माण करेगी। इसका इस्तेमाल इस तरीके से किया जाएगा कि खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर इसका असर न पड़े।