भारत के मदरसों में पढ़ाने वाले मौलानाओं को कितना वेतन मिलता है?

punjabkesari.in Thursday, May 01, 2025 - 07:07 PM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत में मदरसे केवल धार्मिक शिक्षा के केंद्र नहीं बल्कि मुस्लिम समाज की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ाने का माध्यम हैं। यहां कुरान, हदीस, अरबी भाषा और इस्लामी तालीम सिखाई जाती है। इन मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षक को मौलाना कहा जाता है। ये समाज में एक सम्मानजनक स्थान रखते हैं, लेकिन आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो उनकी स्थिति अक्सर बेहद साधारण होती है।

सरकारी और गैर-सरकारी मदरसों में क्या है अंतर?
भारत में दो तरह के मदरसे होते हैं – सरकारी सहायता प्राप्त और निजी (प्राइवेट) मदरसे। इन दोनों के बीच मौलानाओं की सैलरी में बड़ा फर्क देखने को मिलता है।

सरकारी मदरसों में क्या वेतन तय है?
कुछ राज्य सरकारें – जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम – अपने राज्य के मान्यता प्राप्त मदरसों को वित्तीय सहायता देती हैं। इन मदरसों में पढ़ाने वाले मौलानाओं को उनकी योग्यता और अनुभव के आधार पर मासिक वेतन मिलता है। उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा बोर्ड के अंतर्गत आने वाले शिक्षकों को ग्रेड के अनुसार ₹12,000 से ₹20,000 तक वेतन मिलता है। बिहार में राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त शिक्षकों को ₹6,000 से ₹15,000 तक सैलरी दी जाती है। पश्चिम बंगाल में उच्च ग्रेड वाले मौलानाओं को ₹16,000 से ₹20,000 तक भुगतान होता है। इन राज्यों में भी सैलरी आमतौर पर सरकारी स्कूलों के शिक्षकों से कम होती है।

प्राइवेट मदरसों में मौलानाओं की चुनौतियां
निजी या गैर-सरकारी मदरसे मस्जिदों, ट्रस्ट या समुदाय विशेष द्वारा संचालित किए जाते हैं। यहां मौलानाओं को नियमित वेतन नहीं मिलता या फिर बहुत कम सैलरी दी जाती है। प्राइवेट मदरसों में अधिकांश मौलाना ₹3,000 से ₹8,000 तक ही मासिक कमाते हैं। कई बार उन्हें वेतन मासिक नहीं बल्कि दान और धार्मिक कार्यक्रमों से मिलने वाली रकम के जरिए दिया जाता है। कुछ मदरसे तो ऐसे हैं जहां मौलाना बिना वेतन केवल इबादत और सेवा भावना से काम करते हैं।

कई बार धार्मिक कार्य बन जाता है आय का जरिया
कम वेतन के कारण कई मौलाना अतिरिक्त आय के लिए निकाह पढ़ाना, जनाज़ा पढ़ाना, या कुरानखानी जैसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। इसके बदले उन्हें ‘हुजरा’ या ‘फीस’ दी जाती है। इसके अलावा कुछ मौलाना अपने घरों में बच्चों को ट्यूशन भी देते हैं या ऑनलाइन इस्लामी शिक्षा के माध्यम से कमाई करते हैं।

शिक्षा के साथ अब डिजिटल बदलाव की जरूरत
आज जब देश में शिक्षा डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रही है, तो मदरसों में भी आधुनिक तकनीक की जरूरत महसूस की जा रही है। यदि सरकारें इन शिक्षण संस्थानों में कंप्यूटर शिक्षा, अंग्रेजी और गणित जैसे विषयों को भी जोड़े और मौलानाओं को प्रशिक्षित करें तो यह बदलाव न सिर्फ छात्रों के लिए लाभकारी होगा बल्कि मौलानाओं की आय भी बढ़ सकती है।

 


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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