प्रकृति की गोद में बसा इंद्रेश्वर धाम, किसी जमाने में महाराजा प्रताप सिंह यहां किया करते थे यहां विश्राम

punjabkesari.in Monday, Jul 13, 2020 - 06:56 PM (IST)

साम्बा (संजीव): जिले के पुरमण्डल क्षेत्र में प्रकृति की गोद में स्थित इन्द्रेश्वर धाम बेहद रणनीक देवस्थान है। पुरमंडल के तलैड़ में इस देवस्थान को माँ देविका का अवतरण स्थान कहा जाता है व इन्द्रेश्वर धाम की सुन्दर गुफ ाएं लोगों का मन मोह लेती हैं। यहां सुंदर झील भी है। देवस्थान पुरमण्डल में पापनाशिनी देविका नदी जिस स्थान पर प्राक्टय रूप से पृथ्वी पर अवतरित हुई है, वह स्थान इन्द्रेश्वर के नाम से विख्यात है। यह स्थान पुरमण्डल से उत्तर दिशा में 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां भगवान इन्द्रेश्वर का बहुत ही प्राचीन मन्दिर है। चूंकि यह स्थान पहाड़ की तलहटी पर स्थित है इसलिए इस गांव का नाम तलैड़ है।

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प्राचीन कथाओं के अनुसार महाऋ षि कश्यप की तपस्या के फ लस्वरूप देवी पार्वती ने देविका नदी के रूप में पृथ्वी पर आने से पहले भगवान शिव से अनुरोध किया कि पृथ्वी पर मैं यहां-यहां जाऊं, तहां-तहां आप भी विराजमान रहेंगे। इस प्रकार देवस्थान पुरमण्डल से लेकर उत्तरवाहिनी तक देविका नदी के तट पर भगवान भोले शंकर भिन्न-भिन्न स्थानों पर आठ लिंगों के रूप में विराजमान हैं। जिनमें प्रथम भगवान इन्द्रेश्वर है और बाकी दूसरे लिंगों के नाम: उमापति, वीरेश्वर, शड्गेश्वर, विल्वकेश्वर, भूतेश्वर, काशीश्वर तथा गयेश्वर हैं। भगवान इन्द्रेश्वर के प्रसंग में पदम पुराण पाताल खण्ड में इस प्रकार वर्णित है –

प्रथमं इन्द्रेश्वरं नाम इन्द्रघाटेतिविश्रुत। 

इन्द्रलोके वसेश्रत्र स्नानदानै: मुनीश्वर।। अर्थात: पहला इन्द्रेश्वर नामक लिंग है। इस स्थान पर स्नान-दान करने से इन्द्र लोक में निवास प्राप्त होता है।    


महात्मा चंबानाथ ने पहाड़ी काट कर बनाई गुफाएं व झील
विभाजन से पहले यहां महात्मा चंबा नाथ जी रहा करते थे। उन्होंने यहां पर पहाडिय़ों को काट-काट कर सुन्दर गुफ ाओं का निर्माण किया था जिनमें वह स्वयं रहते थे तथा आने-जाने वाले यात्रियों को भी ठहराते थे। एक गुफ ा के अंदर एक जलकुण्ड भी था जिसका पानी पीने तथा सब्जी व फ लदार वृक्षों की सिंचाई के काम में लाया जाता था। मन्दिर के साथ एक सुन्दर बाग था जिसमें फ लदार वृक्ष लगाए गए थे। वहां वह सब्जि़यां भी लगाया करते थे जिनका स्वाद आम सब्जिय़ों से बड़ा ही भिन्न होता था। महात्मा चम्बा नाथ जी ने उस समय भी बारिश तथा आस-पास के नालों का पानी इक_ा करके वहां एक सुन्दर झील का निर्माण किया था। वह झील उस जमाने में यात्रियों के लिये एक आकर्षण का केन्द्र होने के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिए जल आपूर्ति का एक बहुत बड़ा स्रोत भी थी।

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झील सदा जल से लबालब भरी रहती थी और जो पानी ऊपर से बहता था वहां लोगों ने पनचक्कियां लगाई हुई थीं। इतना सुन्दर तथा रमणीक स्थान था कि उसकी शोभा शब्दों में वर्णन करना कठिन है। क्षेत्र के पुराने बुद्धिजीवियों जिनमें संत राम गोस्वामी, सीता राम नम्बरदार पुरमण्डल तथा किरपू राम महाशा चौकीदार (गँाव रजूल) के कथनानुसार महाराजा प्रताप सिंह जी हाथी पर सवार होकर इस स्थान पर अक्सर आते थे। वह यहां झील में नाव पर बैठ कर सैर का आनन्द लिया करते थे। रात को विश्राम महात्मा जी के आश्रम में ही होता था। 12 महीने यात्रियों का आना-जाना लगा रहता था जिनके विश्राम की व्यवस्था मुख्य गुफ ा के साथ बनाई गई दूसरी गुफ ाओं में की जाती थी। 

PunjabKesariसरकारों की अनदेखी के चलते तबाही के कगार पर पहुंचा इंद्रेश्वर धाम
पुरमंडल निवासी जवाहर लाल बडू जानकारी देते हुए बताते हैं कि ऐसा रमणीक स्थान इस इलाके में मिलना बहुत ही कठिन है। परन्तु वर्तमान सरकारों की अनदेखी के कारण यह अदभुत धार्मिक तीर्थस्थल इस समय तबाही के कगार पर है अथवा तबाह हो ही चुका है। भूस्खलन के कारण बाग बगीचे सब खत्म हो गए हैं। झील सूख गई है और उसका स्थान अतिक्रमण का शिकार हो गया है। आजकल इस स्थान पर लोग खेती-बाड़ी कर रहे हैं। जे. एल. बडू का कहना है कि वर्तमान सरकार धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बहुत ही सराहनीय कदम उठा रही है, ऐसे में सरकार से अनुराध है कि इस स्थान की भी सुध ली जाए और देवस्थान पुरमण्डल उत्तरवाहिनी को स्वतंत्र पर्यटन स्थल बनाने के मास्टर प्लान में इन्द्रेश्वर तीर्थस्थल को भी शामिल किया जाए ताकि यात्री यहां आसानी से आजा सकें व इलाके के युवाओं को रोजगार प्राप्त हो तथा इलाके की सामाजिक-आथर््िाक स्थिति में सुधार आए। 
 
 


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Monika Jamwal

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