शंघाई सहयोग संगठन में भारत की भूमिका के क्या हैं मायने!

punjabkesari.in Monday, Sep 19, 2022 - 11:28 AM (IST)

इंटरनेशनल डेस्क: समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के कई महत्वपूर्ण सामरिक मायने हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यप अर्दोआन समेत कई नेताओं से मुलाकात की, लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ से उनकी बातचीत नहीं हुई। इस बैठक में शामिल हुए नेताओं के महत्वपूर्ण बयान सामने आए हैं।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर ने कहा कि चीन और रूस के बीच यूक्रेन को लेकर पूरी तरह सहमति नहीं है। पुतिन ने साथ ही यह भी कहा कि रूस यूक्रेन पर चीन के संतुलित रुख का आदर करता है। जानकारों का कहना है कि यह संतुलित रुख उन तमाम अटकलों पर सवालिया निशान लगाता है जिसमें यह कहा जाता रहा है कि रूस और चीन मिलकर एक नये शीत युद्ध की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि फिलहाल ऐसा नहीं होने जा रहा है।

दूसरा दिलचस्प बयान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया है। पुतिन के साथ बात-चीत के दौरान मोदी का यह कहना कि आज के दौर में युद्ध की कोई जगह नहीं है, पश्चिमी मीडिया को चौंकाने वाला जरूर लगा होगा लेकिन यह भारत की मल्टी-एलाइनमेंट नीति का अभिन्न हिस्सा है। मोदी की यह दोस्ताना नसीहत संजीदा भी थी और रूस के लिये लाल झंडी भी कि भारत रूस के यूक्रेन पर आक्रमण को समर्थन नहीं करता है। चीन और भारत दोनों की बेबाकी से यह भी साफ है कि चीन और भारत दोनों एससीओ को अमेरिका या पश्चिम विरोधी खेमे का जामा पहनाने को फिलहाल तैयार नहीं हैं।  चीन के लिए इसकी उपयोगिता आने वाले दिनों में हो सकती है लेकिन भारत के लिए एससीओ का मध्यम मार्ग अपनाना जरूरी है।

भारत जैसे देश के लिए समुद्री सीमा से कहीं ज्यादा जमीनी सीमा महत्वपूर्ण है। खास तौर पर तब जब उसके उत्तर और उत्तर-पश्चिम दोनों ओर चीन और पाकिस्तान से सुरक्षा खतरा लगातार बना हो। एससीओ में शिरकत के बावजूद मोदी की अलग से ना पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ से मुलाकात हुई और ना ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से। जाहिर है कि इन देशों से रिश्ते तल्ख होने के बावजूद एससीओ जैसे संगठनों में शिरकत कहीं ना कहीं इन दोनों देशों के असर को कम करने के उद्देश्य से भी की जाती रही है।

इसी सिलसिले में भारत का अगले साल एससीओ की अध्यक्षता करना इस संगठन में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बहरहाल अगर बात एससीओ के सन्दर्भ में चीन, रूस, और भारत के समीकरणों और एससीओ के भविष्य को लेकर की जाए तो भारत और चीन की यूक्रेन को लेकर कही बातों से कहीं ना कहीं रूस को इस बात का एहसास हो रहा होगा कि उसके दोस्त भी अब यूक्रेन को लेकर चिंतित हैं और चाहते हैं कि युद्ध जल्द समाप्त हो। इन बयानों से चीन और भारत के साथ-साथ एससीओ पर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव कम होगा।


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Content Writer

Anil dev

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