आखिर क्यों भगवान शिव ने धारण किया हाथी का रूप
punjabkesari.in Saturday, Mar 02, 2019 - 01:59 PM (IST)
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हिंदू धर्म में शनिदेव को न्याय प्रिय देव के रूप में जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार शनिदेव हर किसी को उसके कर्मों के हिसाब से ही दंड देते हैं। उन्होंने कभी किसी के साथ अन्याय नहीं किया। यहां तक वे देवताओं को भी उनके कर्मों के अनुसार ही दंड देते हैं। हिंदू धर्म में शनिदेव को लेकर एक और मान्यता प्रचलित है कि शनिदेव की कुदृष्टि से भी आज तक कोई भी नहीं बच पाया है, यहां तक कि कोई देव भी नहीं। एक पौराणिक मतानुसार कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव भी उनकी दृष्टि से नहीं बच पाए थे। तो आज हम आपको भगवान शिव और शनिदेव से जुड़ी एक ऐसी ही पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में शायद ही किसी ने सुना हो।
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शनिदेव भगवान शंकर के धाम पहुंचे और उन्होंने भगवान शंकर को प्रणाम करके कहा कि मैं कल आपकी राशि में आने वाला हूं अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है। शनिदेव की बात सुनकर भगवान शंकर बोले कि आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे।
शनिदेव बोले, हे प्रभु कल सवा प्रहर के लिए आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी। शनिदेव की बात सुनकर भगवन शंकर चिंतित हो गए और शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे।शनि की दृष्टि से बचने के लिए अगले दिन भगवन शंकर मृत्युलोक आए। भगवान शंकर ने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय व्यतीत करना पड़ा और शाम होने पर भगवान शंकर ने सोचा, अब दिन बीत चुका है और शनिदेव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं होगा। इसके उपरांत भगवान शंकर पुनः कैलाश पर्वत लौट आए।
भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में जैसे ही कैलाश पर्वत पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि शनिदेव वहां पहले से ही मौजूद हैं। भगवान शंकर को देख कर शनिदेव ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। भगवान शंकर मुस्कराकर शनिदेव से बोले कि आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ।
यह सुनकर शनिदेव मुस्कराए और बोले मेरी दृष्टि से न तो देव बच सकते हैं और न ही दानव यहां तक कि आप भी मेरी दृष्टि से बच नहीं पाए।
शनिदेव की बात को सुनकर भगवान शंकर आश्चर्यचकित रह गए। इस पर शनिदेव ने कहा, मेरी ही दृष्टि के कारण आपको सवा प्रहर के लिए देव योनी को छोड़कर पशु योनी में जाना पड़ा। इस प्रकार मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ गई और आप इसके पात्र भी बन गए।
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