Bhagavad Gita: क्या आपको भी नहीं मिल रहा दान करने का फल, भगवत गीता से जानें क्या है कारण ?

punjabkesari.in Tuesday, Jan 07, 2025 - 08:18 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Bhagavad Gita: भगवद गीता सात्विक दान को प्रोत्साहित करती है। हालांकि, यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति के भीतर कौन-सा गुण (सात्विक, राजसिक या तामसिक) हावी है। जब दान किसी को नुकसान पहुंचाने के इरादे से दिया जाए। ऐसे मामलों में दाता और प्राप्तकर्ता दोनों को गलत समझा जा सकता है। भगवद गीता के अनुसार, दान को 3 प्रकारों में बांटा जा सकता है-

PunjabKesari  Bhagavad Gita

Satvik Daan सात्विक दान: सात्त्विक दान वह है जो कर्तव्य के रूप में दिया जाता है। इसे समय, स्थान और प्राप्तकर्ता की उपयुक्तता को ध्यान में रखकर दिया जाना चाहिए। प्राप्तकर्ता को इस दान के बदले में कोई सेवा या लाभ नहीं देना चाहिए। स्वामी रामसुखदास जी बताते हैं कि यह दान वास्तव में त्याग है, जिसमें कुछ भी पाने की इच्छा नहीं होती। ऐसा दान जो पुण्य (धार्मिक लाभ) पाने की इच्छा से किया जाए, वह सात्त्विक दान नहीं होता। अगर पुण्य पाने की कामना हो, तो यह दान राजसिक बन जाता है।

PunjabKesari  Bhagavad Gita
Rajasic Daan राजसिक दान: राजसिक दान वह है जो किसी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ की इच्छा से दिया जाता है। इस दान को देने में व्यक्ति को दर्द या पछतावा महसूस होता है। या फिर यह दान किसी दबाव (जैसे चंदा या संग्रह) या मनाने के बाद दिया जाता है। राजसिक दान में दाता अपने फायदे के लिए लाभ की उम्मीद करता है।

PunjabKesari  Bhagavad Gita
Tamasic Daan तामसिक दान: जब दान किसी अनुचित व्यक्ति को या बिना समय और स्थान का विचार किए दिया जाता है, तो इसे तामसिक दान कहते हैं। अगर दान बिना सम्मान या अपमानजनक तरीके से दिया जाए, तो वह भी तामसिक दान बन जाता है।

PunjabKesari  Bhagavad Gita


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Related News