हिंदू संस्कृति के प्रवर्तक थे आध्यात्मिक विभूति प्रमुख स्वामी जी महाराज

punjabkesari.in Monday, Dec 02, 2019 - 09:52 AM (IST)

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गांधी नगर गुजरात और नई दिल्ली के बाद अमेरिका के न्यूजर्सी क्षेत्र में इससे भी विशाल अक्षरधाम की स्थापना करने वाले भगवद्गुण सम्पन्न आध्यात्मिक विभूति प्रमुख स्वामी जी महाराज की अद्भुत देन से शालीनता एवं निष्ठायुक्त समर्पण का संदेश उदित हुआ। हिंदू संस्कार, हिंदू विचारधारा, हिंदू संस्कृति के प्रवर्तन में जिन संतों का विशेष योगदान रहा उनमें प्रमुख  स्वामी महाराज अग्रसर थे। 1200 मंदिरों के निर्माण द्वारा उन्होंने सभी के लिए हिंदुत्व के उदार मूल्य और वैश्विक विचार उद्घाटित किए।  उनके दिव्य व्यक्तित्व और कार्यों से समग्र विश्व लाभान्वित हुआ। अमेरिका में तृतीय गगनचुंबी भव्य पंचशिखरीय मंदिर का निर्माण करके स्वामी जी ने भारतीय संस्कृति और अक्षरपुरुषोत्तम उपासना का दुंदुभीनाद किया। इनकी साधना, स्फूर्ति, कांति एवं चुंबकीय व्यक्तित्व देख  कर सभी आश्चर्यचकित हो जाते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि मैं अपने आपको धन्य मानता हूं कि पूज्य स्वामी जी महाराज के साथ बहुत निकट से  बातचीत करने का मुझे वर्षों तक लाभ मिला। उन्होंने मुझे बहुत गहराई से प्रेरित किया। उन्होंने अपना समग्र जीवन शांति और समाजसेवा में समर्पित किया। आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर ने कहा था कि भारत में ऐसे विरले संत के होते हुए सनातन संस्कृति के ठहराव की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
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कैलीफोर्निया की सिलीकोन वैली के उपनगर मिलपिटास में स्वामी नारायण मंदिर में मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करते हुए स्वामी श्री ने कहा था कि कुछ लोग सवाल करते हैं कि मंदिरों की क्या आवश्यकता है? समाज को तो अस्पताल, महाविद्यालय, पाठशालाएं चाहिए क्योंकि इनसे लोग शिक्षित होते हैं लेकिन मंदिर भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, इनमें संतों के सत्संग से ज्ञान प्राप्त होता है, दुख दूर होते हैं। प्रार्थना करने से शांति प्राप्त होती है। पारिवारिक एवं सामाजिक परेशानियों का निराकरण होता है। आत्मा का ज्ञान प्राप्त होता है, शंकाएं दूर होती हैं। आत्मा का ज्ञान होने से चिंतन शांति प्राप्त होती है। शहर में सिनेमाघर, कैसीनो और शराब की दुकानों से क्या लाभ होता है? मंदिर तो ये सारी बुराइयां दूर करते हैं। भारतीय संस्कृति में सदियों से मंदिर परंपरा चली आ रही है। इनके दर्शन मात्र से शांति की अनुभूति होती है।

स्वामी का कहना था कि विज्ञान का विकास होने पर भी मनुष्य सुखी नहीं है। उसे शांति नहीं मिलती क्योंकि भौतिकवाद बढ़ रहा है। भौतिक सुख के लिए आपस में  कलह और अशांति होती है। हमारे आंतरिक दोष और रागद्वेष  के कारण समाज में बुरे कार्य भी होते हैं। दुनिया का बाह्य विकास हुआ है किंतु आंतरिक विकास के लिए संतों का अनुसरण और सभी के लिए कल्याण की भावना रखना ही हमारा धर्म है। हमारा जीवन निव्र्यसनी एवं सदाचारी होना चाहिए।
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भगवान स्वामीनारायण के पांचवें आध्यात्मिक उत्तराधिकारी प्रमुख स्वामी जी महाराज का जन्म 1921 में चाणसद गांव में हुआ। इन्होंने मात्र 8 वर्ष विद्या यास किया और 7 नव बर 1939 को गृह त्याग करके अहमदाबाद में शास्त्री जी महाराज के वरदहस्त से पार्षदी दीक्षा और 10 जनवरी 1940 को अक्षरदेहरी, गोंडल में भगवती दीक्षा प्राप्त की। इन्हें 23.1.1971 को संस्था का प्रमुख घोषित करते हुए 'प्रमुखस्वामी जी महाराज का नाम दिया गया था।
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दूसरों की भलाई में अपना भला है। इस जीवन सूत्र के साथ लाखों लोगों  को आत्मीय स्नेह से अध्यात्म पथ दिखाने वाले प्रमुख स्वामी जी महाराज एक विरल संतविभूति थे। आप वात्सल्यमूर्ति संत थे, आप के सान्निध्य में शंकाओं का निवारण होता, दुविधाएं दूर होतीं। आघात अदृश्य होते थे, मन शांति की अनुभूति में सराबोर हो जाता था। परोपकारी एवं लोकहित के रक्षक करुणामूर्ति संत ने हजारों गांवों-शहरों को अपनी चरण धूल से पावन किया। आपकी सिद्धियों का रहस्य था : परब्रह्मा का साक्षात्कार। आपकी परम कारुणिक अध्यात्म ब्राह्यी स्थिति के कारण बौद्ध धर्माध्यक्ष दलाई लामा से लेकर आम आदमी तक लाखों लोगों ने हृदय से चाहा। 


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