Varuthini Ekadashi: वरुथिनी एकादशी की पूजा से मिलेगा दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर फल
punjabkesari.in Monday, Apr 21, 2025 - 04:31 PM (IST)

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Varuthini Ekadashi 2025: पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य अन्न दान और कन्या दान और वर्षों तक तप करने पर मिलता है, उतना ही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। शास्त्रों के अनुसार वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है।
Do not do these things on the day of Varuthini Ekadashi वरुथिनी एकादशी के दिन न करें ये काम: वरुथिनी शब्द संस्कृत भाषा के 'वरुथिन्' से बना है, जिसका मतलब है प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी पर भगवान विष्णु के वराह अवतार स्वरूप का पूजन किया जाता है। वरूथिनी एकादशी के व्रत में कुछ वस्तुओं का पूर्णतया निषेध है, इस दिन तेलयुक्त भोजन, जुआ, दिन में निद्रा, पान, दातून, परनिंदा, क्रोध असत्य बोलना कार्य वर्जित है। रात्रि में भगवान का नाम स्मरण करते हुए जागरण करें और द्वादशी को तामसिक भोजन का परित्याग करके व्रत का पालन किया जाता है। इस व्रत में अन्न न खाने की वर्जना के साथ-साथ कांसे के बर्तन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए व मधु यानि शहद नहीं खाना चाहिए।
Varuthini Ekadashi puja method वरुथिनी एकादशी पूजा विधि: घर की उत्तर दिशा में पीला वस्त्र बिछाकर वराह अवतार या भगवान विष्णु का चित्र स्थापित करके विधिवत पंचोपचार पूजन करें। पीतल के दिये में गाय के घी का दीप करें, सुगंधित धूप करें, तुलसी पत्र चढ़ाएं, केसर से तिलक करें, पीले फल जैसे आम या केले का भोग लगाएं तथा किसी माला से इस विशेष मंत्र का 1 माला जाप करें। पूजन के बाद भोग गाय को खिलाएं।
वरूथिनी एकादशी की व्रत पूजा से भौतिक सुख प्राप्त होते हैं, सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है, पाप व ताप दूर होते हैं, अनन्त शक्ति मिलती है और भक्त की हर संकट से रक्षा होती है।
Varuthini Ekadashi Puja Mantra वरुथिनी एकादशी पूजा मंत्र: भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें और साथ ही यथाशक्ति श्री विष्णु के मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करते रहें।
Ekadashi Mantra एकादशी मंत्र
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:
ॐ विष्णवे नमः
ॐ नारायणाय नमः
ॐ अं वासुदेवाय नमः
ॐ आं संकर्षणाय नमः
ॐ अं प्रद्युम्नाय नमः
ॐ अ: अनिरुद्धाय नमः
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।