भूत-प्रेत दोष को पहचानें: अतृप्त आत्माएं व्यक्ति के शरीर में पहुंचकर, खेलती हैं भीषण खेल

punjabkesari.in Tuesday, Dec 06, 2016 - 07:58 AM (IST)

मानव जीवन में तंत्र-मंत्र विज्ञान की विभिन्न प्रकार से उपयोगिता है। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक सौष्ठव में वृद्धि के साथ ही दीर्घायु बनाने में भी तंत्र-मंत्र की विशिष्ट भूमिका है। कष्टसाध्य तथा असाध्य रोगों में इसके प्रभाव को सफलता प्राप्त है। सृष्टि रचना के पश्चात समस्त प्राणी वर्ग को चार भागों में बांटा गया था। सम्पूर्ण विश्व इन्हीं वर्गों 1. अंडज, 2. पिंडज, 3. स्वेदज और 4. उद्विज में समाहित है।


मनुष्य साधना के बल पर जीता है, साधना द्वारा विजय प्राप्त करता है। साधना विजय की प्रथम सीढ़ी तथा मुक्ति का मार्ग है, परंतु क्या हमने कभी यह भी सोचा है कि साधना की नींव श्रद्धा है और जहां श्रद्धा है, वहीं सिद्धि है। श्रद्धा के अभाव में सफलता संदिग्ध रहती है।


तंत्र का प्रयोग हमारे पूर्वजों ने सफलतापूर्वक सम्पन्न किया था और उनका जीवन आनंददायक और तनावरहित था। तंत्र में न तो शराब की आवश्यकता होती है और न मांस की। तंत्र में संभोग की भी आवश्यकता नहीं होती। तंत्र जीवन का सौंदर्य है और आनंदमय जीवन की प्राप्ति का साधन है। 


आज जीवन बहुत अधिक जटिल बन गया है। मनुष्य के लिए सफलता प्राप्त करने का एकमात्र साधन तंत्र ही शेष है। यह भी भ्रम है कि अगर तंत्र साधना सही ढंग से न हो, साधना में कमी रह जाए तो उसका विपरीत प्रभाव होने लगता है। तंत्र सीधा, सरल और तुरंत प्रभाव देने में सहायक है, इसे पुरुष या स्त्री कोई भी सम्पन्न कर सकता है। तंत्र के द्वारा हम अपने जीवन की समस्याओं को सुलझा कर सफलता पा सकते हैं।


तंत्र साधना एवं भावना का परस्पर घनिष्ठ संबंध है। साधक जैसी भावना करता है, वैसी ही सफलता उसे प्राप्त होती है। भावना साधना को गति प्रदान करती है। मंत्र सिद्धि के लिए साधना शक्ति का होना परम आवश्यक है।


दरिद्रता, शरीर के रोगों को दूर करने के लिए, किसी को भी वश में करने के लिए, कलह दूर करने और सुख प्राप्ति के लिए, भूतों व प्रेतों को वश में करने, भविष्य कथन के लिए, शत्रुओं को समाप्त करने, प्रसिद्धि प्राप्त करने, व्यापार, वृद्धि व सफलता के लिए तंत्र का प्रयोग किया जा सकता है, पर इसके अलावा भी तंत्र द्वारा समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।


तंत्र जितना चर्चित है उतना ही विवादास्पद भी है। इसके कारण हैं आम लोगों को तंत्र के विषय में जानकारी न होना, तंत्र के विषय में मिथ्या मानसिकता ने तंत्र विद्या को और अधिक अविश्वसनीय बनाया तथा दूसरा तंत्र क्षेत्र में अनधिकृत लोगों के प्रवेश ने इस विद्या का नाश कर डाला। कई बार ऐसा भी होता है कि अतृप्त आत्माएं व्यक्ति के शरीर में पहुंचकर, उसके साथ भीषण खेल खेलती हैं। अपनी इच्छाओं को उसके माध्यम से पूरा करती हैं। उन चेष्टाओं व लक्षणों के आधार पर हर व्यक्ति को प्रेतग्रसित घोषित कर सकते हैं।


भूत-प्रेत बाधाग्रस्त व्यक्ति के क्या लक्षण होते हैं, लिखने से पहले भूत-प्रेत बाधा दूर करने का प्रयोग प्रस्तुत है : 
यंत्रम् 
9      1     17     10
11    16    4       5
2      7     9      18
15    12    6       3


जब किसी व्यक्ति को भूत आदि की बाधा हो तो इस यंत्र को अनार की कलम से भोजपत्र पर शुद्ध केसर से लिखें और पानी में घोल कर पिला दें, तो भूत आदि का प्रभाव दूर हो जाता है। संभव हो, तो निम्र मंत्र का जाप भी करें : 
ॐ नम: वज्र का कोठा, जिससे पिंड हमारा बैठा।
ईश्वर कुंजी ब्रह्मा का ताला, मेरे आठो याम का।।
जाति हनुमंत रखवाला, गुरु गोरख की आण।
मेरी शक्ति, गुरु की भक्ति, फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा।।


किसी भी मंत्र-तंत्र साधना प्रयोग को करने से पूर्व अगर शरीर की रक्षा कर ली जाए, तो साधक को किसी प्रकार से कोई भी हानि नहीं हो सकती, अत: किसी भी तंत्र-मंत्र के प्रयोग को करने से पूर्व शरीर रक्षा का मंत्र जप कर लेना चाहिए। तंत्र विज्ञान के निष्कर्ष मानव के लिए सर्वथा उपयोगी, परिणाम में हितकारी तथा आश्चर्य को उत्पन्न करने वाले हैं। ब्राहमयामल ग्रंथ में वर्णन आता है कि सूर्य-चंद्र ग्रहण, दीपोत्सव पर्व के दिनों में, रवि पुष्य योग तथा महानवमी के दिन तंत्र साधना का विधान कर लिया जाए तो साधक सर्वसिद्धि प्राप्त करता है।
सूर्येन्दुग्रहणे प्राप्ते दीपोत्सव दिनत्रये।
पुष्यमूलार्क योगे च महानवमीवासरे।।
खदिरेण च कीलेन प्रोद्धरेता महौषधि:।
बलिपूजाविधानेन सर्वकर्मसु सिद्धिदा।।


तंत्र शास्त्र की दृष्टि से महत्वपूर्ण तथा तांत्रिक कार्यों में उपयोगी कुछ बातों का परिचय निम्र है : 
 * रात को अप्रिय स्वप्न आएं तो यह पिशाच बाधा का लक्षण है।

 * स्त्री का गर्भ गिर जाए, अकाल मृत्यु आदि प्रेत बाधा का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

 * सुनसान जगह में कहीं कोई लघुशंका करता है तो समझें वह भूत-प्रेत दोष से बाधित हो चुका है। 
 


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