कब और कैसे हुई चंद्र देव की रचना, जानें यहां
punjabkesari.in Sunday, Aug 28, 2022 - 09:06 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
चंद्र देव जिनको सोम के रूप में भी जाना जाता है, उन्हें हिंदू धर्म में देवता का स्थान प्राप्त है। कहा जाता है जब पूरी दुनिया में रात्रि के समय हर तरफ अंधेरा छा होता है तब केवल चंद्रमा ही एकमात्र रोशनी का सहारा होता है। इसके प्रकाश का तेज पूरी सृष्टि को रोशन करने की क्षमता रखता है। ज्योतिश शास्त्र के अनुसार प्रत्येक मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा अपने संपूर्ण रूप में आता है, और अपनी रोशनी से सृष्टि को प्रकाशित करता है। परंतु क्या आप जानते इनका हिंदू धर्म में क्या महत्व है? क्यों इन्हें देवता का दर्जा प्राप्त है? आखिर इनकी उत्पत्ति का राज क्या है? तथा कैसे चंद्र देव को देवों के देव महादेव के मस्तक पर विराजमान होना का सौभाग्य प्राप्त हुआ?
तो चलिए इन सारे सवालों का जवाब अपने इसी एक आर्टिकल में आपको देते हैं और जानते हैं चंद्रदेव की उत्पत्ति का रहस्य-
पुराणों में चंद्रमा के जन्म की अलग-अलग कहानियां बताई गई है। अग्नि ,इंद्र ,सूर्य इन देवों की तरह ही सोम की स्तुति के मन्त्रों की भी रचना ऋषियों मुनियों द्वारा की गई है।
पुराणों के अनुसार चन्द्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई-
जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करने के बारे में सोचा तब उन्होनें सबसे पूर्व अपने मानस पुत्रों की उत्पत्ति की। उनमें से एक मानस पुत्र थे, ऋषि अत्रि जिनका विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ था जिनके गर्भ से दुर्वासा, दत्तात्रेय और सोम का जन्म हुआ था। धार्मिक किंवदंतियों के अुनुसार सोम चंद्र देव का ही एक रूप थे। ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी। जिसके बाद महर्षि अत्रि ने अनुत्तर नाम का तप किया। इसके दौरान एक दिन महर्षि के नेत्रों से आश्रु गिरने लगे जो बहुत प्रकाशमय थे। शास्त्रों में किए उल्लेख के अनुसार उन अश्रुओं को दिशाओं ने स्त्री रूप में आकर पुत्र प्राप्ति की कामना से ग्रहण किया जो उनके उदर में गर्भ रूप में स्थित हुआ। परंतु चूंकि वह अश्रु बेहद प्रकाशमय थे इसलिए दिशाओं रूपों स्त्री अधिक समय तक उन्हें धारण न कर सकी और त्याग दिया। ऐसा कहा जाता है कि उस त्यागे गए गर्भ को ब्रह्मा जी ने पुरुष रूप दे दिया जो चंद्रमा के नाम जग प्रख्यात हुए। जिसके बाद सभी देवताओं, ऋषियों और गन्धर्वों ने भी इनका वंदन किया। आगे चलकर चंद्रदेव के तेज से ही पृथ्वी पर दिव्य औषधियां उत्पन्न हुई। ब्रह्मा जी ने चन्द्र को नक्षत्र, वनस्पतियों, ब्राह्मण व तप का स्वामी नियुक्त किया।
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इसके अतिरिक्त अन्य स्कंद पुराण की प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार जब देवों और दैत्यों ने मिल कर क्षीर सागर का मंथन किया था तो उसमें से से 14 प्रकार के रत्न निकले थे, जिसमें एक चंद्रमा थे। पुराणों में किए वर्णन के अनुसार लोक कल्याण हेतु मंथन से प्राप्त कालकूट विष को पी जाने वाले भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर सुशोभित किया था। तो वहीं ग्रह के रूप में चंद्र देव की उत्पत्ति मंथन से भी पहले की सिद्ध होती है।
चंद्र देव को समर्पित है पूर्णिमा का दिन-
जैसे कि हमने उपरोक्त बताया कि प्रत्येक मास में पड़नी वाली पूर्णिमा तिथि चंद्रदेव को समर्पित है जिसके उपलक्ष्य में इस दिन इनकी विधि वत पूजा आदि का विधान रहता है। इस दिन व्यक्ति के लिए चन्द्र देव की पूजा अर्चना करना बेहद लाभदायक माना जाता है। पौधों व वनस्पति से भी इनका गहरा संबंध माना जाता है।