श्रीमद्भगवद्गीता: मानव को केवल कर्म करने का अधिकार

punjabkesari.in Sunday, Jun 27, 2021 - 10:32 AM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।

अनुवाद तथा तात्पर्य : तुम्हें अपना कर्म (कर्तव्य) करने का अधिकार है, किन्तु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो। तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्मों के फलों का कारण मानो, न ही कर्म करने में कभी आसक्त होओ।

यहां पर तीन विचारणीय बातें हैं-कर्म (स्वधर्म), विकर्म तथा अकर्म। कर्म (स्वधर्म) वे कार्य हैं जिनका आदेश प्रकृति के गुणों के रूप में प्राप्त किया जाता है।
अधिकारी की स मति के बिना किए गए कर्म, विकर्म कहलाते हैं और अकर्म का अर्थ है अपने कर्मों को न करना।

भगवान ने अर्जुन को उपदेश दिया कि वह निष्क्रिय न हो अपितु फल के प्रति आसक्त हुए बिना अपना कर्म अर्थात युद्ध करे।  (क्रमश:)


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Content Writer

Jyoti

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