Somnath Jyotirlinga: 17 बार टूटा, हर बार बना, पढ़ें सोमनाथ मंदिर की अमर गाथा
punjabkesari.in Sunday, May 25, 2025 - 09:39 AM (IST)

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Somnath Jyotirlinga: ऐतिहासिक तीर्थ स्थल : ‘सोमनाथ’ सोमनाथ न केवल प्राकृतिक दृष्टि से परिपूर्ण धार्मिक स्थल है, बल्कि राष्ट्रीय महत्व का ऐतिहासिक स्थल भी है। यहीं पर गुजरात का अनूठा हैंडीक्राफ्ट पर्यटकों को आकर्षित करता है। गुजरात के लम्बे समुद्री किनारे से भी पर्यटक आकर्षित होते रहे हैं। सोमनाथ मंदिर ने कई विदेशी आक्रांताओं का सामना किया है।
अरब सागर की तूफानी लहरें जूनागढ़ के वेरावल स्थित मंदिर से हरदम टकराती रहती हैं। विदेशी आक्रांताओं द्वारा लूटे जाने एवं खंडित होने के बाद भी भारत की अनूठी कलात्मकता तथा संस्कृति का प्रतीक यह मंदिर अल्प समय में पुन: तैयार हो गया।
सोमनाथ मंदिर संभवत: विश्व का सर्वश्रेष्ठ एवं समृद्ध मंदिर था। 1026 ई. में जब मोहम्मद गौरी ने इसे लूटा तब यहां प्रतिदिन पूजा में कश्मीर से लाए फूलों तथा गंगा के पानी से अभिषेक होता था। यहां हजारों ब्राह्मण हमेशा शिवलिंग का पूजन करते थे तथा सोने की 200 कंडियों से बंधा घंटा मदिर की आरती में बजाया जाता था।
यहां 56 खंभे थे जिन पर लगा सोना विभिन्न शिवधर्मी राजाओं द्वारा दिया गया था। इन पर बेशकीमती हीरे, जवाहरात, रूबी, मोती, पन्ने आदि जड़े थे। तब जो शिवलिंग था वह 3 फुट ऊंचा था। कहा जाता है कि सोलंकी राजा भीमदेव ने बुंदेलखंड युद्ध में जीती हुई सोने की पालकी मंदिर को अर्पित की थी तथा उन्होंने ही विमल शाह को सोमनाथ मंदिर बनाने का आदेश दिया था।
मंदिर के गर्भगृह के तीन रास्ते हैं तथा यह अद्भुत है। करीब 36 खम्भों का सहारा लिए बना मंडप तथा उसकी छत अद्वितीय है। ऐसी मान्यता है कि पशुपथ धर्म के आचार्य को राजा भीमदेव ने यहां का मुख्य पुजारी नियुक्त किया था तथा यह कार्य करीब 300 वर्षों तक इसी सम्प्रदाय के पास रहा।
मंदिर के निर्माण की किंवदंतियां: सन् 1225 ई. में भाव बृहस्पति ने सोमनाथ के मंदिर के बारे में लिखा था। इसका टूटा पत्थर 3 भागों में प्रभास पाटन के भद्रकाली मंदिर के पास पाया गया। इसमें वर्णित कहानी की अनुसार, यह मंदिर सबसे पहले सोम ने बनाया तथा दूसरे भाग में रावण ने चांदी का मंदिर बनाया। फिर कृष्ण ने लकड़ी का तथा भीमदेव ने इसे पत्थर का बनाया। कथा के अनुसार कुमारपाल के समय में इस मंदिर का बहुत भारी जीर्णोद्धार हुआ जिसे आचार्य भाव बृहस्पति की देखरेख में करवाया गया।
उसके पश्चात मोहम्मद गजनी ने सबसे पहले इस मंदिर को लूटा, फिर अलाऊद्दीन खिजली के कमांडर अफजल खान ने तथा उसके बाद औरंगजेब ने भी इसे लूटा। इस प्रकार यह मंदिर करीब 17 बार लूटा या नष्ट किया गया, फिर भी आज यह विशाल मंदिर अपने पूर्ण दमखम तथा शौर्य के साथ खड़ा है। खुदाई के दौरान पाए गए अवशेषों से पता लगा है कि यह मंदिर मैत्रक के समय से राजा सोलंकी के समय तक करीब 13 फुट ऊंचाई पर था तथा इसमें शिव, नटराज, भैरव, योगी आदि की मूर्तियां थीं। राजा भीमदेव एवं उनकी कई कलाकृतियां आज भी सोमनाथ के म्यूजियम में मौजूद हैं।
प्रथम ज्योतिर्लिंग: मान्यता है कि भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्रथम स्थान सोमनाथ का है। प्रभास पाटन एक धार्मिक स्थल है, जहां मान्यता के अनुसार सरस्वती, हिरण्य तथा कपिला का संगम होता है। मान्यता के अनुसार भगवान शिव का कालभैरव लिंग प्रभास पाटन में ही है। चंद्रमा भी इस शिवलिंग की पूजा करता था और उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे वरदान दिया कि इस शिवलिंग का नाम चंद्रमा पर रखा जाएगा। इसी कारण इसका नाम सोमनाथ रखा गया।
खुदाई से प्राप्त अवशेषों तथा भारतीय एवं विदेशी इतिहासकारों के लेखन से यहां आर्यों के निवास की सूचना भी मिली है। ऐसा माना जाता है कि ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व का यह मंदिर करीब चौथी इस्वी में बना था।
नए मंदिर का निर्माण: भारत के लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल इस मंदिर के नवनिर्माण के प्रति समर्पित एवं कार्यशील थे। इस नए भव्य मंदिर का डिजाइन प्रसिद्ध आर्किटेक्ट प्रभाशंकर ने बनाया तथा भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने नए मंदिर को 11 मई, 1951 को राष्ट्र को समर्पित किया था।