Smile please: ‘परिश्रम’ है उन्नति का आधार
punjabkesari.in Thursday, Feb 16, 2023 - 07:55 AM (IST)

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Smile please: कला-कौशल की बड़ी-बड़ी सिद्धियां श्रमहीनता एवं अभ्यास-शून्यता से व्यर्थ हो जाती हैं। एक शिल्पकार, चित्रकार अथवा कलाकार अपनी सिद्धि के संतोष में यदि अभ्यास का परित्याग कर दे तो क्या वह दक्ष बना रह सकता है ? जिस श्रम की बदौलत वह एक से एक ऊंचे और बढ़िया निर्देशन तैयार करता रहता है, उसी के अभाव में आगे प्रगति करना तो दूर, पीछे की विशेषताएं भी खो देगा।
यही कारण है कि संसार में सैंकड़ों उदीयमान कलाकार और शिल्पकार ऐसे हुए हैं जो अपनी ऊंची संभावनाओं की एक झलक दिखाकर बुझ गए और संसार उनकी असफलता पर तरस खाता रह गया इसलिए आवश्यक है कि अपनी योग्यताओं एवं विशेषताओं को तरुण बनाए रखने के लिए अविराम परिश्रम में संलग्र रहा जाए।
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कला-कौशल की भांति अनवरत श्रमशीलता का नियम धनोपार्जन के क्षेत्रों में भी लागू होता है। जो व्यापारी, व्यवसायी अथवा उद्योगी अपने कार्य में निरंतर परिश्रम करते रहते हैं, वे न केवल अपने व्यवसाय को सुरक्षित बनाए रखते हैं, बल्कि बढ़ाया भी करते हैं। उपार्जन की ओर ध्यान लगा रहने से मनुष्य का मस्तिष्क अपव्यय की ओर से हट सकता है। जब मन और मस्तिष्क अपव्यय की ओर से हटा रहता है, जब मन और मस्तिष्क की गति आय की दिशा में लगी हुई है, तो उसकी विपरीत दिशा का अपव्यय की ओर न जाना स्वाभाविक ही है, किंतु ज्यों ही आय की ओर से उन्हें छुट्टी मिली नहीं कि वे व्यय की ओर चल पड़ते हैं।
एकमात्र व्यय की ओर चले हुए मन-मस्तिष्क फिर केवल व्यय तक ही सीमित नहीं रह सकते, अपव्ययता से होते हुए अनिवार्य रूप से व्यर्थ-व्ययता और व्यसन-व्ययता तक पहुंच जाएंगे इसलिए स्वयं को व्यस्त रखना भी आवश्यक है। राष्ट्र की उन्नति भी करती है लोगों के परिश्रम पर निर्भर व्यक्तिगत जीवन की तरह निरंतर श्रमशीलता का नियम समाजों एवं राष्ट्रों के उत्थान-पतन में भी लागू होता है। जिस समाज अथवा राष्ट्र के नागरिक जितने अधिक श्रमशील होंगे, वह राष्ट्र व समाज उतनी ही अधिक उन्नति करता जाएगा।
बड़े-बड़े साम्राज्य, बड़े-बड़े समाज, बड़ी-बड़ी सभ्यताएं और बड़ी-बड़ी संस्कृतियां मनुष्य की श्रम साधना से ही बनीं और फिर उसी की श्रम उपेक्षा की प्रवृत्ति के कारण मिट गईं। श्रम की बदौलत ही इंसान ने आज इतनी तरक्की की है इसलिए क्या व्यक्ति और क्या राष्ट्र, जो भी अपनी उन्नति चाहता है और अपनी वर्तमान उपलब्धियों को भविष्य में सुरक्षित रखना चाहता है, उसे अविरल कठिन परिश्रम का महामंत्र अपनाकर आलस्य एवं प्रमाद के अभिशाप से सदा दूर रहना चाहिए।