Smile please: अनुशासित राष्ट्र का स्वप्न देखने वाले, अपने घर में शुरु करें ये काम
punjabkesari.in Sunday, Dec 25, 2022 - 09:54 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Smile please: वर्तमान परिवेश में जो सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने आकर खड़ी है, वह है देश के युवाओं में बढ़ती जा रही कुंठा या हताशा। इतिहासकारों के शोध के अनुसार प्राचीन काल से ही अनुशासनहीनता और मूल मानव मूल्यों की कमी को सभ्यता के पतन के लिए एक प्रमुख कारक माना गया है। अत: जिस देश की जनता अनुशासनहीन होती है, वह देश कभी भी अपनी महान ऊंचाइयों तक ऊपर उठ नहीं सकता।
1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें
अनुशासन की कमी समूचे समाज में हताशा और असंतोष का माहौल पैदा कर देती है, जिसके फलस्वरूप लोग निहायत दिशाहीन एवं अनियंत्रित हो जाते हैं और फिर वे आगे चलकर आचरण की सब संहिताओं को अपदस्थ कर बड़े पैमाने पर अशांति फैलाने का कार्य करने लगते हैं।
तभी तो हम देख रहे हैं कि विश्व भर में हो रहे नागरिक दंगों के पीछे जन असंतोष एवं अविश्वास ही सबसे बड़ा कारण है, पर इसका निवारण आज तक किसी भी देश की सरकार या प्रशासन तंत्र ढूंढ नहीं पाया। वर्तमान समय की मांग है कि युवाओं को रचनात्मक गतिविधियों में संलग्न कर उनकी ऊर्जा को सकारात्मक तरीके से मार्गदर्शिता कर उन्हें महान सामाजिक परिवर्तन के लिए सक्रिय करें, ताकि वे कोई विनाशकारी भूमिका निभाने की बजाय सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए खुद को एवं अपने मित्रों को प्रोत्साहित करें।
छोटे बच्चे एवं युवा अपने माता-पिता और शिक्षकों को देख-देख कर कई बातें परोक्ष रूप से सीखते रहते हैं।
अत: माता-पिता और शिक्षकों पर यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वे युवा पीढ़ी को उनके प्रेम, त्याग, चरित्र, व्यवहार और सामंजस्य की भावना से निरंतर प्रेरित करते रहें, परन्तु यदि वे ऐसा करने में असफल हो जाते हैं तो फिर वही युवा पीढ़ी, जिसके अंदर जरूरत से ज्यादा भौतिक ऊर्जा मौजूद है, उत्तेजित होकर शालीनता की सभी हदें पार कर सिस्टम को उखाड़ फैंकने के लिए आमादा हो जाती है।
हाल ही में अमरीका के मनोचिकित्सकों के एक समूह के अनुसंधान में पाया गया कि बच्चों के भीतर बेचैनी और अनुशासनहीनता के लिए जिम्मेदार सबसे बड़ा कारण है स्कूलों में नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा की अनुपस्थिति एवं घर पर अपने बड़े-बुजुर्गों से प्रेरणा की कमी। सुनने में यह बड़ा आम-सा कारण लगता है, पर आज समस्त विश्व में फैली हुई अराजकता के पीछे हमारी यही उदासीनता मुख्य है।
आधुनिकीकरण के मोह में हम यह भूल गए हैं कि नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा व्यक्ति को आत्म नियंत्रण के साथ-साथ सहनशीलता, धैर्य, संयम, विनम्रता जैसे मूल्यों से सुसज्जित करती है और उसे एक बेचैन व्यक्ति से संतुष्ट एवं समर्पण और बलिदान की भावना वाले व्यक्ति के रूप में परिवर्तित करती है।
अत: बच्चों को प्रारंभिक चरण में ही मूल्यों की शिक्षा प्रदान करना समय की आवश्यकता है, जिससे वे अपनी संस्कृति व मूल्यों की विरासत से अवगत रहें और पश्चिमी संस्कृति के आक्रमण से खुद को सुरक्षित रख पाएं। बचपन में सिखाई हर बात व्यक्ति को वर्षों तक याद रहती है, अत: यदि हम एक अनुशासित राष्ट्र का स्वप्न देखते हैं तो उसकी शुरूआत हमें अपने ही छोटे से घर में अपने बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाकर करनी होगी।